न्यूनतम गारंटी स्कीम : राहुल ने बनाई बढ़त या..
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की इस घोषणा के बाद चुनावी चर्चा में एक नया आयाम जुड़ गया है कि यदि चुनाव बाद कांग्रेस सत्ता में आएगी तो वह हर गरीब को न्यूनतम आय की गारंटी देगी।
न्यूनतम गारंटी स्कीम : राहुल ने बनाई बढ़त या.. |
स्थिति यह है कि राजनीतिक दलों से लेकर समाचार चैनलों तक इसकी चर्चा गर्म है। जहां भारतीय जनता पार्टी इसके विरोध में अपनी आवाज बुलंद कर रही है, वहीं अनेक विद्वान और चिंतक इसे समय की मांग बता रहे हैं। राहुल गांधी की इस घोषणा ने पहले के सारे चुनावी आख्यानों को पीछे धकेल दिया है। ‘चौकीदार चोर है’ और ‘मैं भी चौकीदार हूं’ से लेकर राष्ट्रवाद और पुलवामा आतंकवादी घटना के साथ-साथ पाकिस्तानी आतंकवादियों के खिलाफ हवाई हमले तक कि पृष्ठभूमि में पहुंचते नजर आने लगे हैं। बताया जा रहा है कि राहुल गांधी का यह नया वादा देश के लिए अनेक गंभीर संकट लेकर आएगा और कि यह केवल चुनावी जुमला है, जिसे जमीनी हकीकत में बदलना संभव नहीं हैं।
इसमें कोई संदेह नहीं कि राहुल गांधी का न्यूनतम आय गारंटी का वादा एक चुनावी कवायद है, लेकिन केवल इसीलिए यह महत्त्वहीन नहीं हो जाता। वास्तव में ऐसी योजना समय की मांग है। पिछले कुछ वर्षो से दुनिया के अनेक देश बढ़ती असमानता और मशीन द्वारा पैदा की जा रही बेरोजगारी से निपटने के लिए आय पुनर्वितरण के विचार के साथ प्रयोग कर रहे हैं। भारत में भी बढ़ती असमानता और बेरोजगारी की समस्या गंभीर रूप से विद्यमान हैं। विगत में इनसे निपटने के जितने भी उपाय किए गए हैं, वे कुल मिलाकर विफल ही साबित हुए हैं। राहुल गांधी के इस साहस की सराहना करनी होगी कि बढ़ती असमानता और बेरोजगारी को लगाम लगाने के लिए वह लीक से हटकर एक नये विचार का प्रयोग करने के लिए तैयार हैं, जो प्रत्येक वंचित लोगों और परिवारों को एक गरिमापूर्ण जिंदगी की गारंटी देता है।
इस तथ्य से कोई इनकार नहीं कर सकता कि भारत में बेरोजगारी की दर भयावह स्थिति तक जा पहुंची है। केंद्र की मोदी सरकार ने तो बेरोजगारी के आंकड़ों को प्रकाशित करना ही बंद कर दिया है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने 2018 की अपनी रिपोर्ट में साफ कहा है कि 2016 से भारत की बेरोजगारी प्रति वर्ष 3.5 प्रतिशत की दर से बढ़ती जा रही है और फिलहाल देश में बेरोजगारों की संख्या लगभग तीन करोड़ पहुंच चुकी है। इसके अलावा, अन्य सर्वेक्षण बेरोजगारों की संख्या को और भी ज्यादा बता रहे हैं। केवल 2018 में एक करोड़ दस लाख लोगों के रोजगार छिन गए। स्थिति यह है कि हर साल एक करोड़ 30 लाख युवा श्रमिक बनने को मजबूर हैं यानी वे किसी तरह भूख से अपनी मौत को बचा रहे हैं। इसी तरह असमानता भी लगातार बढ़ती जा रही है। प्रसिद्ध फ्रांसीसी अर्थशास्त्री थॉमस पिकेटी ने 2017 में किए गए अपने अध्ययन में बताया है कि ब्रिटिश औपनिवेशिक काल से लेकर इतिहास के किसी भी दौर में भारत में इतनी असमानता कभी नहीं रही। स्थिति यह है कि आज देश के 22 प्रतिशत आय पर केवल एक प्रतिशत लोगों का कब्जा है। इसी तरह देश का 79 प्रतिशत धन एक प्रतिशत लोगों की जेब में पहुंच चुका है।
कहने की आवश्यकता नहीं कि यदि एक प्रतिशत धनवानों और बाकी देश के बीच यह घृणित असमानता जारी रहती है, तो देश की सामाजिक और लोकतांत्रिक संरचना पूरी तरह ध्वस्त हो जाएगी। जाहिर है कि आज एक ऐसी व्यवस्था बनाने की जरूरत आन पड़ी है, जहां इस भयावह बेरोजगारी और बढ़ती असमानता को रोका जा सके। राहुल गांधी की न्यूनतम आय गारंटी योजना को गलत समझने वाले तर्क दे रहे हैं कि इतना धन आएगा कहां से? ऊपरी तौर पर यह सवाल बड़ा महत्त्वपूर्ण लगता है, लेकिन जब हम देश की अन्य आर्थिक परिघटनाओं पर नजर डालते हैं तो उनका सवाल अप्रासंगिक हो उठता है। सरकार और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया हर साल कॉरपोरेट लोन डिफॉल्टर्स के लाखों करोड़ रु पये माफ कर देती है यानी एनपीए में डाल देती है। अभी हाल ही में सरकार ने ऐसे डिफॉल्टर्स के 41 हजार करोड़ रुपये माफ कर दिए हैं। इसके अलावा, बजट में भी कॉरपोरेट टैक्स के नाम पर उन्हें रियायत दी जाती है। रिजर्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार 2016-17 और 2017-18 में क्रमश: 108,500 करोड़ और 162,700 करोड़ रु पये एनपीए खाते में डाल दिए गए।
इसी तरह 2016-17 में 86,154 करोड़ रुपये और 2017-18 में 85,026 करोड़ रुपये के कॉरपोरेट टैक्स की छूट दे दी गई। इन आंकड़ों से स्पष्ट हो जाता है कि न्यूनतम आय गारंटी योजना का वित्तपोषण करना कोई कठिन नहीं होगा। इसके अलावा, अन्य तरीकों से भी धन जुटाया जा सकता है, जैसे संपत्ति कर, धन कर, विरासत टैक्स और छिपे करदाताओं पर टैक्स लगाकर इस योजना को अंजाम दिया जा सकता है। यहां इस बात का उल्लेख करना प्रासंगिक होगा कि भारत में न्यूनतम आय गारंटी योजना का प्रयोग किया जा चुका है। 2011-2012 के दौरान यूनिसेफ द्वारा पोषित यह योजना मध्य प्रदेश के 11 गांवों में चलायी गई थी। यह योजना 12 से 17 महीने के लिए चलाई गई थी और तब इसकी राशि 1200 रु पये तय की गई थी। इसके परिणाम भी सकारात्मक आए थे। राहल गांधी के न्यूनतम आय गारंटी ने इतना तो किया ही कि इसने वंचित आबादी को बहस के केंद्र में ला खड़ा किया। अब आगे जिस दल की भी सरकार बने, उसे वंचितों को केंद्र में रखना ही होगा और यह एक सकारात्मक कदम साबित होगा। भारत जैसे अत्यंत निर्धन देश में यह सरकार का उत्तरदायित्व है कि वह अपना ध्यान गरीबों पर केंद्रित करे। हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि ऐसे कदम यूरोप और अमेरिका में भी उठाए गये हैं, जो भारत की तुलना में अधिक विकसित और धनी हैं। यह कार्यक्रम ब्राजील और नामीबिया में भी लागू है, जबकि दुनिया के अनेक जाने-माने अर्थशास्त्री समेत विश्व बैंक भी ऐसे कार्यक्रम का हिमायती है। वितरण की यह नई राजनीति है, जो देश के हित में है।
इसमें नये ढंग के कल्याणकारी राज्य की अवधारणा है, जो अधिक रोजगार पैदा करने पर केंद्रित नहीं है, बल्कि नये और प्रभावशाली वितरण के उपायों से संबंधित है। दुनिया के देश इस सच्चाई को स्वीकार करने लगे हैं कि कुशल मजदूर परिदृश्य से लगातार गायब होते जा रहे हैं। दक्षिणी ध्रुव के देशों के लिए तो यह ज्यादा ही सच है। नया कल्याणकारी राज्य आवश्यकता से अधिक उत्पादन और बेरोजगारी को एक साथ मात देने का लक्ष्य रखता है और राहुल गांधी का की न्यूनतम आय गारंटी योजना उसी दिशा में उठाया गया एक कदम है। संक्षेप में कहें, तो यह आज के समय की मांग है, जिसे अनसुनी करना अपने पांव पर कुल्हाड़ी मारना है।
| Tweet |