ट्रैफिकिंग : महिलाओं के लिए खतरा
जनवरी 2019 में जारी हुई संयुक्त राष्ट्र संघ की ग्लोबल ट्रैफिकिंग रिपोर्ट 2018 ने बताया है कि वैसे तो अनेक तरह की ट्रैफिकिंग विश्व स्तर पर प्रचलित है, पर इनमें यौन शोषण के लिए महिलाओं व लड़कियों की ट्रैफिकिंग सबसे अधिक है।
ट्रैफिकिंग : महिलाओं के लिए खतरा |
इस तरह की अंतरराष्ट्रीय ट्रैफिकिंग की गिरफ्त में आई अधिकांश महिलाओं को अमेरिका, पश्चिमी व दक्षिण यूरोप और मध्य-पूर्व क्षेत्र में पहुंचाया जाता है। आंकड़ों के अनुसार ट्रैफिकिंग के दर्ज मामलों में विश्व स्तर पर वृद्धि हो रही है।
हाल के वर्षो में यौन शोषण के लिए होने वाली ट्रैफिकिंग की वृद्धि का एक अन्य कारण यह है कि अब पोनरेग्राफी फिल्मों, वीडियो आदि के बनाने के लिए भी बहुत सी महिलाओं व बच्चों की ट्रैफिकिंग हो रही है।
यूरोप में कुछ स्थानों पर ऐसी जिन महिलाओं को छुड़ाकर आश्रय गृहों में पहुंचाया गया, उनके बीच किए गए अनुसंधान से पता चला कि उनका दुख-दर्द बहुत गहरा है। लंदन स्कूल ऑफ हाईजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन के लिए कैथी जिमरमैन ने ‘मुस्कान पर डाका’ रिपोर्ट लिखी है। इसके अनुसार इनमें से 95 प्रतिशत महिलाओं (व लड़कियों) को शारीरिक व यौन हिंसा सहनी पड़ी थी, 60 प्रतिशत में अनेक शारीरिक समस्याएं व इनफेक्शन उत्पन्न हो चुकी थी, 95 प्रतिशत डिप्रेशन से पीड़ित थीं व 38 प्रतिशत में आत्महत्या जैसे विचार प्रवेश कर चुके थे। प्रो. डोना ह्यूग्स ने अपने अध्ययन में बताया है कि पोनरेग्राफी की फिल्में तैयार करने के लिए भी बड़ी संख्या में विदेशी बच्चों व महिलाओं को यूरोप के कुछ विशेष क्षेत्रें में लाया जा रहा है। लातविया में स्थित एक केंद्र के बारे में उन्होंने बताया है कि इसमें पोनोग्राफी व वेश्यावृत्ति के कामों में 2000 महिलाओं व बच्चों को फंसाया गया। यदि इस तरह के मात्र एक अड्डे में इतनी महिलाओं व बच्चों को फंसाया गया तो इससे समस्या की व्यापकता का अंदाजा लगाया जा सकता है।
सेक्स टूरिज्म के नाम पर थाईलैंड, ब्राजील, नीदरलैंड, फिलीपींस में बड़े-बड़े अड्डे बने हैं, जहां विशेष तौर पर पर्यटक यौन संबंधों के लिए या अश्लील शो देखने के लिए जाते हैं व इन बड़े अड्डों में बहुत ट्रैफिकिंग होती है। यहां प्राय: अनेक अपराध माफिया सक्रिय होते हैं। आज विश्व में ऐसी लाखों महिलाएं या लड़कियां हैं, जिन्हें उनकी इच्छा के विरुद्ध वेश्यावृत्ति, पोनरेग्राफी व यौन शोषण में धकेल दिया गया है। यह वे महिलाएं व किशोर आयु की लड़कियां हैं, जिन्हें उनकी आर्थिक तंगी व अन्य मजबूरियों का लाभ उठाकर एक ओर तो तरह-तरह से बहकाया गया या भ्रम में रखा गया। जापान के संदर्भ में यहां के ही एक अनुसंधानकर्ता सीया मोरिता ने अपने शोध पत्र में बताया है कि दक्षिणी-पूर्वी एशिया से जापान की सेक्स इंडस्ट्री के लिए कुछ दशकों के दौरान 5 लाख से 10 लाख बच्चों व महिलाओं को लाया गया। अध्ययन में इस ट्रैफिकिंग को कई अरब डालर के मुनाफे का व्यापार बताया गया है, जबकि इसमें विदेशी महिला ‘गुलामों’ की स्थिति इतनी बुरी रही कि उनमें से अनेक ने आत्महत्या कर ली। इस व्यापार को बढ़ाने के लिए विश्व स्तर पर अरबों डालर उपलब्ध हो रहे हैं। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि दसियों हजारों साधन-संपन्न अपराधी व सफेदपोश अपराधी इस अवैध व्यापार से जुड़े हैं। इस ट्रैफिकिंग को कम करने के लिए अधिक अंतरराष्ट्रीय सहयोग की जरूरत है।
कई प्रयास केवल इन महिलाओं को छुड़ाकर इन्हें अपने मूल देश में भेज देने तक सीमित हैं। इस तरह छुड़ाई गई कई महिलाएं फिर से गिरोहों के चंगुल में फंस सकती हैं। कुछ स्थानों से छुड़ाई गई महिलाओं के लिए शेल्टर बनाए गए पर यहां महिलाओं को बहुत कम समय तक रखा जाता है। इतने कम समय में उन्हें जोर-जुल्म व अत्याचार से उत्पन्न तनाव से उबरने का अवसर नहीं मिल पाता है। अनेक निर्धनता व शोषण से प्रभावित क्षेत्रों में या युद्ध व गृह युद्ध से तबाह हुए क्षेत्रों में ट्रैफिकिंग के एजेंट विशेष तौर पर सक्रिय हैं। इन समुदायों पर विशेष ध्यान देते हुए यहां की महिलाओं को सहायता पहुंचाना व रोजगार के अवसर पंहुचाना भी बहुत जरूरी है। कुछ देशों में वेश्यावृत्ति के बड़े अड्डों को सरकारी सहमति से इस आधार पर विकसित किया गया है कि इससे पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। पर इनका यह पक्ष छिपा कर रखा जाता है कि इनके कारण ट्रैफिकिंग को बढ़ावा मिलता है। पर्यटन की यह सोच मूलत: अनुचित है व इसे चाहे बाहरी तौर पर कितने ही आकषर्क रूप में प्रस्तुत किया जाए पर इसका समग्र असर महिलाओं व किशोरियों के बढ़ते उत्पीड़न के रूप में ही होता है।
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