जयंती : आजाद फौज के नेताजी

Last Updated 23 Jan 2019 02:38:41 AM IST

स्वाधीनता संग्राम में नवीन प्राण फूंकने वाले नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 को ओडिशा (उड़ीसा) के कटक में हुआ था।


जयंती : आजाद फौज के नेताजी

उन्हें स्वामी विवेकानंद की आदर्शता और कर्मठता ने सतत आकर्षित किया। अपनी स्कूली पढ़ाई कटक के मिशनरी स्कूल व कॉलेजियट स्कूल से करने के बाद 1915 में प्रेसीडेंसी कॉलेज में प्रवेश लिया। वहां अंग्रेज प्रोफेसर ओटन द्वारा भारतीयों के लिए अपशब्द का प्रयोग करने पर बोस को सहन नहीं हुआ और उन्होंने प्रोफेसर को थप्पड़ जड़ दिया। इसको लेकर उन्हें को कॉलेज से निकाल दिया गया। बाद में 1917 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी के पिता आशुतोष मुखर्जी की मदद से उनका निष्कासन रद्द कर दिया गया। तभी से बोस के अंतर्मन में क्रांति की आग जलने लग गई थी और उनकी गिनती भी विद्रोहियों में की जाने लगी थी।
दरअसल, बोस के पिता जानकी नाथ बोस पश्चिमी सभ्यता के रंग में रंग गए थे और वे वोस को सिविल सेवा के पदाधिकारी के रूप में देखना चाहते थे। पिता का सपना पूरा करने के लिए बोस ने सिविल सेवा की परीक्षा दी ही नहीं अपितु उस परीक्षा में चौथा पायदान भी हासिल किया। लेकिन उस समय बोस के मन में कुछ और ही चल रहा था। सन 1921 में देश में बढ़ती राजनीतिक गतिविधियों के समाचार पाकर एवं ब्रिटिश हुकूमत के अधीन अंग्रेजों की हां-हूजूरी न करने की बजाय उन्होंने महर्षि अरविन्द घोष की भांति विदेशों की सिविल सेवा की नौकरी को ठोकर मारकर मां भारती की सेवा करने की ठानी और भारत लौट आए।

स्वदेश लौट कर आने के बाद बोस अपने राजनीतिक गुरु  देशबंधु चितरंजन दास से न मिलकर गुरु  रवीन्द्रनाथ टैगोर के कहने पर वे महात्मा गांधी से जा मिलें। अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी बोस के हिंसावादी व उग्र विचारधारा से असहमत थे। जहां गांधी उदार दल के नेतृत्वकर्ता के रूप में अगुवाई करते थे, वहीं बोस जोशीले गरम दल के रूप में अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए विख्यात थे। बेशक महात्मा गांधी और नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की विचारधारा भिन्न-भिन्न थी, पर दोनों का मकसद एक ही था ‘भारत की आजादी’। सच्चाई है कि महात्मा गांधी को सबसे पहले नेताजी ने ‘राष्ट्रपिता’ के संबोधन से संबोधित किया था। सन 1938 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष निर्वाचित होने के बाद नेताजी ने राष्ट्रीय योजना आयोग का गठन किया। कहा जाता है कि यह आयोग गांधीवादी आर्थिक विचारों के प्रतिकूल था।
सन 1939 में बोस पुन: गांधीवादी प्रतिद्वंद्वी को हरा कर विजयी हुए। बार-बार के विरोध व विद्रोही अध्यक्ष के त्यागपत्र देने के साथ ही गांधी ने कांग्रेस छोड़ने का निर्णय ले लिया। इसी बीच सन 1939 में अमेरिका द्वारा जापान के नागासाकी और हिरोशिमा पर परमाणु बम गिराने के साथ ही द्वितीय विश्व युद्ध का आरंभ हो गया। नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने तय किया कि वो एक जन आंदोलन प्रारंभ कर समस्त भारतीयों को इस आंदोलन के लिए प्रोत्साहित करेंगे। आंदोलन की भनक लगते ही ब्रिटिश सरकार ने नेतृत्वकर्ता के तौर पर बोस को दो हफ्तों के लिए जेल में रखा और खाना तक नहीं दिया। भूख के कारण जब उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने लगा तो ब्रिटिश हुकूमत ने जनाक्रोश को देख उन्हें रिहा कर उनकी घर पर ही नजरबंदी शुरू कर दी। समय और परिस्थिति से भांप कर वे ब्रिटशों की आंखों में धूल झोंक कर जापान भाग गए। जापान पहुंच कर बोस ने दक्षिणी-पूर्वी एशिया से जापान द्वारा एकत्रित करीब चालीस हजार भारतीय स्त्री-पुरु षों की प्रशिक्षित सेना का गठन करना शुरू कर दिया। भारत को स्वतंत्र कराने के उद्देश्य से 21 अक्टूबर, 1943 को ‘आजाद हिन्द फौज’ का गठन किया। सन 1943 से 1945 तक आजाद हिन्द फौज अंग्रेजों से युद्ध करती रही।
अंतत: वह ब्रिटिश शासन को यह महसूस कराने में सफल रहे कि भारत को स्वतंत्रता देनी ही पड़ेगी। रंगून के जुबली हॉल में अपने ऐतिहासिक भाषण में नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने संबोधन के समय ही ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ और ‘दिल्ली चलो’ का नारा दिया। सक्रिय राजनीति में आने व आजाद हिन्द फौज की स्थापना से पहले बोस ने सन 1933 से 1936 तक यूरोप महाद्वीप का दौरा भी किया था। उस वक्त यूरोप में तानाशाह शासक हिटलर का दौर था। वहां हिटलर की नाजीवाद और मुसोलिनी की फासीवाद विचारधारा हावी थी और इंग्लैंड उसका मुख्य निशाना था। बोस ने कूटनीतिक व सैन्य सहयोग की अपेक्षा खातिर हिटलर से मित्रवत नाता भी कायम किया। साथ ही 1937 में ऑस्ट्रियन युवती एमिली से शादी भी की और दोनों की अनीता नाम की एक बेटी भी हुई। अधिकांश लोग ये मानते हैं कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु ताईपे में विमान हादसे में हुई। लेकिन एक तबका ऐसा भी है जो विमान हादसे की बात को स्वीकार नहीं करता।

देवेन्द्र सुथार


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