मीडिया : समाचार एंकर की भूमिका

Last Updated 20 Jan 2019 06:00:31 AM IST

हमारे खबर चैनल खबरों से उतने नहीं भरे होते, जितने आरोप-प्रत्यारोप की उत्तेजना और शोर से भरे होते हैं। हमने अपने चैनलों को ऐसा ही बनने दिया है।


मीडिया : समाचार एंकर की भूमिका

हर शाम हर खबर चैनल किसी ‘दंगल’ की तरह खुलता है। हम हैं ही ऐसे दंगली! बिना हंगामा किए हम किसी को सुन सकते हैं, न सह सकते हैं। अगर आज हमारे ‘पब्लिक स्फीयर’ में असहिष्णुता, घृणा और बदलेखारी भरी है तो उसका एक बड़ा कारण हमारे मीडिया का भी मिजाज है! हम जीवन में उसे ही तो कॉपी करते हैं!
दो-तीन ताजा उदाहरण देखें :
एक दिन,जेएनयू के दस छात्रों पर देशद्रोह का मुकदमा चलाने के लिए पुलिस ने 1200 पेज की चार्जशीट दायर की। सभी चैनल पर इसके औचित्य-अनौचित्य पर बहसें रहीं। एक हिंदी एंकर ने अपने इंट्रो में ही इन दस छात्रों को ‘आरोपित देशद्रोही’ कहने की जगह सीधे ‘देशद्रोही’ कहा। एक ओर दो बीजेपी-संघी वक्ता रहे। एक लिबरल रहा। इसके अतिरिक्त एक संघ-पक्षधर वकील भी रहीं। लिबरल ने कहा जब तक अदालत में सिद्ध नहीं हो जाता, इनको देशद्रोही नहीं कहा जा सकता। आप ‘आरोपित देशद्रोही’ कहिए। एंकर ने आरोप लगा दिया: देशद्रोहियों की हिमायत भी देशद्रोह है! पुलिस ने जिसे देशद्रोही कह दिया, वही देशद्रोही हो गया!

एक नामी-गिरामी अंग्रेजी एंकर इन दिनों कुछ ज्यादा ही नाराज दिखता है, ज़ब-जब प्रोमो में उसका चित्रा आता है, वह ‘लुक बेक इन एंगर’ वाली गुस्सेल स्टाइल में दूसरों को घूरता नजर आता है। गुस्से के साथ उसके चेहरे में हिकारत का भाव दिखता है मानो पलटकर किन्हीं कीड़े-मकोड़ों को देख रहा हो। तीन बरस पहले उसे 10 लाख रुपये महीने मिला करते थे। अब इतने गुस्से पर पंद्रह लाख से क्या कम मिलते होंगे? जाहिर है उसका गुस्सा बड़ा कीमती है। एक शाम टीवी स्कीन पर देवनागरी में इबारत लिखी नजर आती है : जो हिंदुस्तान की खाते हैं और पाकिस्तान की गाते हैं,उनको करेगा बेनकाब ये चैनल।
इसके बाद अंग्रेजी एंकर का वही चित्र आया जिसमें वह गुस्से और हिकारत से भर कर देखता दिखता है। उसके बाद उनने न केवल देशद्रोहियों को ‘बेनकाब’ किया बल्कि देशद्रोहियों की ठुकाई भी की। पहले दो-तीन दक्षिणपंथी ठोकते रहे फिर जब ठुकने वाला हर दांव बचाता रहा तो एंकर जी अपने तर्कों का सोटा लेकर उतरे और देखते-देखते ‘टुकड़े टुकड़े गैंग’ के ‘टुकड़े टुकड़े’ कर दिए! ऐसे ही एक अंग्रेजी चैनल रोज बताता रहता है कि ‘मॉब लिंचिंग’  एक जघन्य अपराध है जिसकी सजा सख्त है..
लेकिन ज्यों ही उसका एंकर एंकरी करता है तो अपने एक तरफा आग्रहों से किसी ‘लिंचर’ जैसा ही दिखने लगता है। एक बहस भरी शाम में वह कहने लगा कि ये जो केरल के कम्युनिस्ट हैं, एकदम हिंदूद्रोही हैं। ये धर्म को नहीं मानते। धर्म को दूषित करते हैं। हिंदू आस्था पर चोट करते हैं। सबरीमाला इसका गवाह है। ऐसी बातें भाजपा वाला करे तो समझ में आता है एंकर किसलिए करता है? क्या वह भी वैसा ही हो गया है? हमें लगा कि अपने यहां भी ‘देसी मेकार्थी’ पैदा होने लगे हैं! कहने को अपना मीडिया एकदम आजाद है, लेकिन जिस मीडिया में ऐसे अनुदार और एक विचार की ओर झुके एंकर साफ दिखते हों उसे कैसे स्वायत्त कहा जा सकता है? इन दिनों हर चैनल के पास ऐसे दो-चार‘दक्ष’ एंकर हैं। उनमें से कुछ ऐसे ‘स्पेशलिस्ट’ भी हैं, जो बीजेपी प्रवक्ताओं से दो हाथ आगे रहते हैं।
यह स्थिति एंकरी के बारे में सोचने को मजबूर करती है। पत्रकारिता की पाठ्यपुस्तकों में टीवी एंकर का काम बड़ा ही ‘बुनियादी’ बताया गया है। उसके अनुसार अच्छा एंकर खबरों को सिर्फ पेश करने का काम करता है। संपादन के बाद खबरों को जस का तस बताता है। वह कभी भी किसी एक पक्ष की ओर नहीं झुकता। इसी से खबरों की विसनीयता बढ़ती है। एंकर का मतलब जहाज का एंकर। एंकर हिला कि जहाज गया! लेकिन अपने यहां ऐसे एंकरों की पूरी फसल ही उगी लगती है जो अक्सर एक पक्ष के लठैत नजर आते हैं। माना कि एंकर लकड़ी या पत्थर की तरह तटस्थ या भावहीन या विचारहीन नहीं हो सकता। उसके अपने भी विचार हो सकते हैं। विचारधारा हो सकती है। फिर भी, अच्छा एंकर वही माना जाता है, जो खबर और अपने विचार के बीच एक सुरक्षित दूरी रखकर चलता है।
लेकिन ‘सुरक्षित दूरी’ की बात तो छोड़िए अपने कई एंकर तो एक खास विचारधारा के प्रचारकर्ता और अभियानकर्ता तक  बन उठते हैं! यह हमारे मीडिया का एक गंभीर ‘विचलन’ है!

सुधीश पचौरी


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