आर्गेनिक फू़ड : एक भ्रम का मायाजाल
जहां देश की राजनीति में किसानों पर चर्चा आम हो गई है। वहीं देश की बढ़ती संपन्नता से आ रही स्वास्थ्य जागरूकता ने आग्रेनिक फूड की मांग को और तेज़ कर दिया है।
आर्गेनिक फू़ड : एक भ्रम का मायाजाल |
तो ऐसे में जैविक खाद्यान्न के लिए जैविक कृषि भी लाजिमी है, अन्यथा आर्गेनिक फूड का मिलना संभव ही नहीं है। आर्गेनिक का मतलब ऐसे पदार्थ हैं, जिनमें कृत्रिम रसायनों का प्रयोग न हो, यानी पूर्णत: प्राकृतिक रूप से अपघटित और उगने वाले पदार्थों पर आधारित कृषि से प्राप्त भोजन ही आर्गेनिक फूड हो सकता है। जहां तक भारतीय कृषि का सवाल है, तो हरित क्रांति और फूड एक्ट काल से ही हम बेतहाशा रसायनों का प्रयोग अधिक फसलों की अधिक उपज पाने के लिए कर रहे हैं। साथ ही, तरह-तरह के अनुवांशिकी प्रयोग वाले हाइब्रिड बीज भी हमें चाहिए होते हैं।
ऐसे में क्या आग्रेनिक फूड वाकई इस समय संभव है या यह भी बाज़ार का रचा हुआ एक भ्रम है! कई कंपनियां बताती हैं कि उनके उत्पाद को उगाने के दौरान किसी भी तरह के कृत्रिम रसायनों खादों आदि का प्रयोग नहीं किया गया है। लेकिन तमाम शोध और अनुभव ये बताते हैं कि लंबे समय से तरह-तरह के रसायनों का उपयोग करने के कारण कृषि योग्य जमीनें प्रदूषित हो चुकी हैं और यहां तक कि भूगर्भीय जल और नदियों के प्रदूषण के साक्ष्य हमारे सामने हैं। ऐसे में रसायन मुक्त भोजन आज क्या वाकई संभव है, यानी ऐसा भोजन जो बिना रसायन वाली भूमि और जल से उपजा हो।
ऐसे ही तमाम तरह की कंपनियां शहद को लेकर दावे करती हैं कि उनका शहद शुद्ध और प्राकृतिक है, लेकिन अगर हम उनके दावों को मान भी लें तो क्या रसायनों से उग रहे पौधों और खेतों से शहद की मक्खी द्वारा लिए गए पराग से बना शहद वाकई आर्गेनिक होगा? इसी तरह से तमाम बहुराष्ट्रीय कंपनियां तमाम तरह के कीटनाशक बेच रही हैं, जो कीड़ों की पूरी प्रजनन शक्ति पर असर डालकर उनका नाश करने का दावा करती हैं। तो क्या यह अतिसूक्ष्म रूप से फैलने वाला संपर्क जहर जो फ़सलों पर छिड़का जाता है, उसका दुष्प्रभाव खाने वालों पर नहीं होगा? और साथ ही छिड़काव के दौरान मिट्टी पर गिरने के बाद क्या उसके द्वारा अवशोषित नहीं किया जाता होगा?
जाहिर है कि महंगे आर्गेनिक फूड के नाम पर भी हम सिर्फ संभावित रूप से कम रसायन वाला भोजन ही खा रहे हैं, न कि रसायन मुक्त भोजन, जैसा दावा कंपनियां करती हैं। दरअसल,आर्गेनिक फूड का सपना तब तक सच नहीं हो सकता है, जब तक किसानों को रसायनों से दूर न रखा जाए। चूंकि वर्तमान में किसान के पास अपनी इस रसायनों द्वारा पैदा हुई उपज के लिए भी दाम नहीं है, तो वह कैसे अपने खेतों को अगले दो-तीन साल तक रसायन मुक्त करते हुए आर्गेनिक फूड की अपनी तैयारी कर सकता है! आर्गेनिक फूड के लिए आर्गेनिक जमीन चाहिए, ऐसे में जमीन को अचानक ही रसायन मुक्त किया जाना एक यूटोपिया ही होगा। तब अच्छा खाने की तलाश कर रहे लोगों के सामने दो ही विकल्प बचते हैं। पहला, या तो वह बाज़ार में मौजूद आर्गेनिक फूड के भ्रम को ही सच मानें और उसे खाकर खुश होते रहें। या फिर सरकार और समाज पर दबाव डालकर रसायनों के प्रयोग को न्यूनतम करने के लिए व्यवस्था बनाएं। आर्गेनिक खेती का प्रमुख घटक या खाद के रूप में गोबर का प्रयोग होता है। इसके लिए पशुपालन पहले की ही तरह एक अनिवार्य आवश्यकता बन जाएगा। और जब पशुधन की उपलब्धता अधिक हो जाएगी तो नकली दूध जैसा संकट भी दूर हो सकता है।
लेकिन यह एक अहम प्रश्न है कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों के अरबों रुपयों के रासायनिक व्यापार और तमाम सारे दबावों के बीच सरकारें क्या वाकई आर्गेनिक खेती को बढ़ावा देने के लिए तैयार हैं? बात बहुत सीधी है कि जब तक हवा, जमीन और पानी प्रदूषण मुक्त नहीं होगा, आर्गेनिक फूड संभव नहीं हो सकता। और इसमें जमीन की भूमिका सबसे अहम है, क्योंकि लगातार रसायनों के प्रयोग से रसायनों का रिसाव भू-गर्भीय जल तक हो चुका है। कई राज्यों में विकृत बच्चे पैदा हो रहे हैं और कुछ राज्यों में कैंसर एक आम रोग हो चुका है। अत: हमें रसायनों से मुक्त आर्गेनिक फूड की ओर जाना पड़ेगा ही पर यह बाज़ार के बस का नहीं है। इसके लिए हमें आर्गेनिक कृषि करनी पड़ेगी, तभी हम आर्गेनिक फूड से अपनी आने वाली नस्लों को बेहतर बीमारी मुक्त जीवन दे सकते हैं। अन्यथा बाज़ार अगर रचना करेगा तो विशेष लोगों के लिए ही होगा।
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