मोदी का मालदीव दौरा : मौजूदगी से बनेगी बात

Last Updated 19 Nov 2018 05:32:44 AM IST

मालदीव की राजधानी माले में यह दृश्य देखने के लिए भारतीय तरस रहे थे।


मोदी का मालदीव दौरा : मौजूदगी से बनेगी बात

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह के शपथ ग्रहण समारोह में सर्वोच्च रैंकिंग वाले राजकीय अतिथि थे। शपथ ग्रहण समारोह के दौरान मोदी मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद और मौमून अब्दुल गयूम के बीच में बैठे थे। यह दृश्य हर उस व्यक्ति को भावुक कर रहा था, जो मालदीव के साथ भारत के पारंपरिक रिश्तों से वाकिफ हैं। इसमें चीन के संस्कृति और पर्यटन मंत्री लू शुगांग भी शामिल हुए लेकिन वो एक सामान्य अतिथि की तरह थे। माले हवाई अड्डे पर मोदी का जैसा शानदार स्वागत हुआ वह यह बता रहा था कि स्थितियां पूरी तरह बदल गई हैं।
पूर्व राष्ट्रपति और भारत के मित्र समझे जाने वाले मोहम्मद नाशीद समेत कई नेताओं से गले मिलने की तस्वीरें भी सुखद थीं। वस्तुत: गर्मजोशी के ये हाव-भाव बता रहे थे कि पूर्व शासन द्वारा अकारण उदण्डतापूर्वक भारत को मालदीव से बाहर करने और चीन द्वारा स्थानापन्न कराने की नीति पर विराम लगने की शुरु आत हो गई है। राष्ट्रपति सोलिह और नाशीद दोनों और उनकी मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी भारत की ईमानदार मित्रता और इसके नि:स्वार्थ सहयोगी व्यवहार के समर्थक हैं। शपथ ग्रहण के बाद मोदी और सोलिह दोनों ने एक-दूसरे की चिंताओं और भावनाओं का सम्मान करने और हिन्द महासागर के इस क्षेत्र में शांति एवं स्थिरता बनाए रखने पर जो सहमति व्यक्त की उसके मायने व्यापक हैं। राष्ट्रपति सोलिह ने संबंधों में भारत को प्राथमिकता देने का संकेत देकर तस्वीर साफ कर दिया। पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन की मूर्खता से मालदीव चीन के कर्ज में बुरी तरह फंसा हुआ है। उन्होंने चीन के काम करने की खुली छूट दे दी।

मोटा-मोटी आकलन यह है कि चीन का करीब 1.5 अरब डॉलर का कर्ज मालदीव पर होगा। सोलिह ने कहा कि यह पूरा हिसाब नहीं है, कर्ज ज्यादा हो सकता है। 4 लाख की आबादी वाले देश के लिए यह कितना बड़ा कर्ज है, इसे समझना कठिन नहीं है। सोलिह सरकार ने चीन के कर्जे और उसके रिस्ट्रक्चरिंग पर काम आरंभ कर दिया है। इसमें भारत सबसे बड़ा सहयोगी हो सकता है। भारत के हित में यही है कि कठिनाई के बावजूद तुरंत मालदीव को इतनी वित्तीय मदद दे, जिससे वह चीनी कर्ज दबाव से मुक्त हो सके। वस्तुत: रणनीतिक रूप से इस महत्त्वपूर्ण देश से भारत को यामीन ने व्यवहार में निष्क्रिय और अंशत: बाहर कर दिया था। यामीन ने भारत की परियोजनाओं को रोक देने की स्थिति पैदा की, चीन को ठेके पर ठेके दिए, यहां तक कि बिजली पैदा करने का ठेका पाकिस्तान को दिया गया। चीन के साथ मुक्त व्यापार समझौता और भारतीयों के लिए वर्क वीजा पर भी अघोषित प्रतिबंध लग गया था। मालदीव, मॉरीशस और सेशेल्स जैसे देशों को हेलिकॉप्टर, पेट्रोल बोट और सैटेलाइट सहयोग देना हिन्द महासागर में भारत की नौसेना रणनीति का हिस्सा रहा है। यामीन अपने क्षेत्र में इसे खत्म करने का उदण्ड प्रयास कर रहे थे। हिन्द महासागरीय क्षेत्र का सबसे निकट का देश होने के कारण भारत की सामुद्रिक क्षेत्र सुरक्षा को देखते हुए इसका महत्त्वपूर्ण स्थान है। यामीन ने कई द्वीप चीन को सौंपे। उनके जहाज वहां बेरोकटोक आने-जाने लगे। चीनी पोत और पनडुब्बियों ने वहां लंगर भी डाल रखा है। उनके फैसलों से हमारे यहां उत्तेजना पैदा हुई थी। सरकार पर वहां कुछ करने का दबाव था। मालदीव की विपक्षी पार्टयिां भी भारत से हस्तक्षेप कर शासन को उखाड़ फेंकने का अनुरोध कर रहीं थीं। पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद अब्दुल गयूम और मोहम्मद नशीद ने अपने निर्वासन स्थल से ही कई बार भारत से सैनिक हस्तक्षेप की गुहार लगाई। बावजूद भारत ने सैनिक हस्तक्षेप करना मुनासिब नहीं समझा। नरेन्द्र मोदी की विदेश नीति में नेबर फस्र्टयानी पड़ोसी पहला प्रमुख स्तंभ है। इसके तहत उन्होंने सभी पड़ोसी देशों की यात्रा कीं। चाहते हुए भी मालदीव नहीं जा सके। 2015 में निर्धारित यात्रा प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण रद्द करनी पड़ी थी। भारत ने धैर्य के साथ मालदीव के लिए रणनीति बनाकर काम करना आरंभ किया। यह संदेश दिया गया कि भारत अपने समर्थकों के साथ है। यामीन ने संसद से 9 विपक्षी सांसदों की सदस्यता रद्द कर दी। जब सर्वोच्च न्यायालय ने इसके विपरीत फैसला दिया तो पुलिस ने न्यायालय को ही घेर लिया। देश में 5 फरवरी को आपातकाल लागू कर इन्हें भी जेल के अंदर बंद कर दिया। भारत ने आपातकाल और विरोधियों को दमन करने की नीति की न केवल आलोचना की बल्कि साफ मांग की कि मोहम्मद नशीद को वापस बुलाए, सभी राजनीतिक बंदियों को रिहा करे और चुनावी और राजनीतिक प्रक्रिया की विसनीयता बहाल करे। भारत ने सीधा हस्तक्षेप फिर भी नहीं किया। वस्तुत: भारत ने शांति से नेपथ्य में रहते हुए उनकी विदाई के लिए हरसंभव कोशिशें कीं। विश्व स्तर पर प्रचार किया कि मालदीव के वर्तमान शासन के तहत निष्पक्ष चुनाव नहीं हो सकता। भारत की सक्रियता से अमेरिका और ब्रिटेन ने बयान जारी कर दिया कि अगर निष्पक्ष चुनाव नहीं हुए तो मालदीव पर प्रतिबंध लगा दिया जाएगा। इससे मालदीव के विपक्षी नेताओं का मनोबल बढ़ा और जनता के बीच भी संदेश गया। यामीन दबाव में आ गए। भारत ने विपक्षी दलों के बीच एकता कायम कराई, जिनने गठबंधन करके संयुक्त उम्मीदवार के तौर पर सोलिह को उतारा। किंतु 24 सितम्बर को चुनाव परिणाम आ जाने के बावजूद यामीन सत्ता पर काबिज रहने की कोशिश कर रहे थे।
भारत ने इस बार अपनी ताकत उनको दिखाई। भारत ने उनको अच्छी भाषा में समझा दिया कि आप जनादेश का सम्मन करिए नहीं तो हमें कुछ करना होगा। चीन भी जनादेश नकारकर सत्ता में बैठे रहने के लिए सरेआम मदद नहीं कर सकता था। डेढ़ महीने की रस्साकशी में राजनीतिक स्थिति को यहां तक लाने में मुख्य भूमिका भारत की ही रही है। अब प्रधानमंत्री के वहां जाने से ही यह संदेश चला जाएगा कि नई सरकार के साथ भारत खड़ा है। मोहम्मद नशीद के स्वदेश लौटने के बाद उनका प्रभाव सरकार पर रहेगा। पूर्व राष्ट्रपति गयूम भी भारत के साथ रहेंगे। प्रधानमंत्री के साथ राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की मौजूदगी बता रही है कि सामरिक संबंधों पर भी निर्णय हुए हैं। यामीन की भारत विरोधी नीतियों के कारण कई चीजें नये सिरे से आरंभ करने की जरूरत है तो कई को नई परिस्थितियों के अनुरूप ढालने की। तो हम मालदीव भारत संबंधों में फिर नये सिरे से एक बेहतर दौर की संभावना देख सकते हैं।

अवधेश कुमार


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