नौसेना : सामरिक ताकत में होगा इजाफा

Last Updated 19 Nov 2018 05:25:07 AM IST

देश के रक्षा कवच को मजबूत करते हुए स्वदेशी तकनीक से बनी परमाणु पनडुब्बी आईएनएस अरिहंत को नौसेना में शामिल कर लिया गया है।


नौसेना : सामरिक ताकत में होगा इजाफा

अपना पहला गश्ती अभियान पूरा करने के बाद देश की पहली परमाणु पनडुब्बी आइएनएस अरिहंत को देश को समर्पित करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि यह पनडुब्बी 125 करोड़ भारतवासियों की सुरक्षा की गारंटी है। अरिहंत शांति के दुश्मनों के लिए कड़ा संदेश और परमाणु ब्लैकमेलिंग का जवाब है।
असल में आईएनएस अरिहंत भारत में ही बनाई और डिजाइन की गई देश की पहली परमाणु पनडुब्बी है। जमीन और आकाश के बाद अब पानी के भीतर से परमाणु वार करने की भारत की क्षमता को पूरा करने की दिशा में यह एक बड़ा कदम है। असल में पानी के  अंदर परमाणु हमला  करने की क्षमता किसी भी परमाणु देश के सामरिक हितों के लिए बहुत जरूरी है क्योंकि परमाणु हमला होने की स्थिति में पलटवार करने के लिए पानी के भीतर के हथियार सुरक्षित रहते हैं। अरिहंत का मतलब होता है दुश्मन को नष्ट करने वाला। यह जल, थल और नभ में मार करने में सक्षम है। इसे न्यूक्लियर ट्रायड भी कहा जाता है, जिसका अर्थ होता है तीनों स्तर की सुरक्षा। आईएनएस अरिहंत की इस सफलता से भारत वायु, जल और थल तीनों से परमाणु हमला करने वाला देश बन गया है। आईएनएस अरिहंत ने पहले परमाणु हमला ना करने के भारत की नीति को असली धार दी है, क्योंकि माना जाता है कि दुश्मन अपने पहले परमाणु हमले में ही पलटवार करने की ताकत को खत्म करने की कोशिश करता है।

दरअसल, डीजल और इलेक्ट्रिक पनडुब्बी को कुछ दिन में पानी के भीतर से ऊपर आना ही पड़ता है। परमाणु पनडुब्बी के साथ ऐसी मजबूरी नहीं है। परमाणु रिएक्टर से चलने वाली परमाणु पनडुब्बी महीनों गहरे पानी में डूबी रहती है। इसलिए दुश्मन उसका पता नहीं लगा पाता। परमाणु बम वाली कुल 16 मिसाइलों से लैस आईएनएस अरिहंत दुश्मन को तबाह कर सकती है। इसमें 750 किलोमीटर  तक मार करने वाली यू-15 सागरिका और 3,500 किलोमीटर तक मार करने वाली य-4 मिसाइलें हैं। दोनों को पानी के भीतर से छोड़ा जा सकता है। हालांकि इस ताकत को जुटाने में भारत को कई चुनौतियों से पार पाना पड़ा क्योंकि कोई भी देश परमाणु पनडुब्बी की तकनीक देने के लिए राजी नहीं था। दुनिया के गिने चुने देश ही अभी तक परमाणु पनडुब्बी बना सके हैं। इनमें अमेरिका, चीन, फ्रांस, रूस और ब्रिटेन शामिल हैं। इस तरह भारत दुनिया का छठा देश होगा, जो परमाणु पनडुब्बी बनाने में कामयाब हो गया है। वास्तव में नौसेना में इस तरह की आत्मनिर्भरता देश के रक्षा हितों के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है। एडवांसड टेक्नोलॉजी वेसेल (एटीवी) कार्यक्रम के तहत आईएनएस अरिहंत का निर्माण किया गया है। विशाखापत्तनम स्थित नौसैनिक डॉकयार्ड में करीब 15000 करोड़ की लागत से इसे बनाया गया है। लगभग 5 साल पहले ही साल रूस निर्मिंत परमाणु क्षमता युक्त पनडुब्बी आईएएनएस चक्र-2 को नौ सेना में शामिल कर लिया गया था। मूल रूप से के-152 नेरपा नाम से निर्मिंत अकुला-2 श्रेणी की इस पनडुब्बी को रूस से एक अरब डॉलर के सौदे पर 10 साल के लिए लिया गया है। आईएनएस अरिहंत और आईएनएस चक्र की मौजूदगी से हिन्द महासागर में सामरिक स्थिरता के साथ-साथ भारतीय सामरिक और आर्थिक हितों की सुरक्षा सुनिश्चित होगी। अगर हम एक विकसित देश बनने की इच्छा रखते हैं तो  आतंरिक और बाहरी चुनौतियों से निपटने के लिए हमें दूरगामी रणनीति बनानी पड़ेगी। क्योंकि भारत पिछले छह दशक के दौरान अपनी अधिकांश सुरक्षा जरूरतों की पूर्ति दूसरे देशों से हथियारों को खरीदकर कर रहा है।
भारत की स्थिति पड़ोसी देश चीन मुकाबले बहुत अच्छी नहीं है। चीन के पास इस समय लगभग 5 परमाणु पनडुब्बियों समेत करीब 50 से 60 पनडुब्बियां हैं, जबकि भारत के पास लगभग 15 पनडुब्बियां हैं। जल में मारक इस रेस में अमेरिका 70 से ज्यादा परमाणु पनडुब्बियों के साथ पहले नंबर पर है, जबकि 30 परमाणु पनडुब्बियों के साथ रूस दूसरे नंबर पर है। यूके के पास 12 और फ्रांस के पास 12 परमाणु पनडुब्बियां हैं। जहां चीन, अमेरिका और रूस की पनडुब्बियां 5000 किलोमीटर तक मारक क्षमता वाली हैं, वहीं आईएनएस अरिहंत की क्षमता 750 से 3500 किलोमीटर तक की है। निस्संदेह स्वदेशी परमाणु पनडुब्बी आइएनएस अरिहंत के नौसेना में शामिल होने से देश की सामरिक ताकत बढ़ेगी। लेकिन देश की रक्षा जरूरतों पर विदेशी निर्भरता खत्म करने के लिए हमें खुद की औद्योगिक सैन्य संस्कृति विकसित करनी होगी। तभी विकसित राष्ट्र बनने का हमारा सपना साकार हो सकता है।

शशांक द्विेवेदी


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