वैश्विकी : शक से परे नहीं शी के इरादे
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के हाथों सत्ता को और अधिक केंद्रित करने की प्रक्रिया शुरू हो गई है. राष्ट्रपति पद के अधिकतम कार्यकाल के प्रतिबंध को हटाया जा रहा है.
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इस आशय का संवैधानिक संशोधन किया जा रहा है, जिसके पारित हो जाने के बाद शी जिनपिंग आजीवन अपने पद पर बने रहेंगे. इस संभावित बदलाव के विरुद्ध चीन में आवाजें उठने लगी हैं. दुनिया भी इस व्यापक बदलाव को शक की नजर से देख रही है. उसे लग रहा है कि चीन लोकतंत्र की तरफ से अधिनायकवाद की ओर बढ़ रहा है.
लेकिन ऐसा लगता नहीं है कि इन प्रतिक्रियाओं से शी जिनपिंग के इरादों पर कोई विपरीत प्रभाव पड़ेगा. इस समय चीन की कम्युनिस्ट पार्टी में सत्ता का कोई भी ऐसा केंद्र नहीं है, जो उन्हें चुनौती दे सके. उन्होंने पार्टी की 19वीं कांग्रेस के पहले ही भ्रष्टाचार के खिलाफ चलाये गए अभियान की आड़ में अपने विरोधी नेताओं को दंडित करके जेल में डाल दिया था या किनारे लगा दिया था. बावजूद इसके वह सत्ता को केंद्रीभूत करने का एक भी अवसर को गंवाना नहीं चाहते. लेकिन एक ही व्यक्ति के हाथों में सत्ता का इस तरह केंद्रीभूत हो जाना चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी का दार्शनिक सिद्धांत और उसके प्रति घोषित प्रतिबद्धता के विरुद्ध जाता है. पार्टी में उत्तराधिकार के सवाल पर जिस तरह के सत्ता संघर्ष हुए हैं, उनसे लगता है कि मौजूदा वक्त में एक व्यक्ति के हाथ में सत्ता का केंद्रीकरण वर्तमान सत्ता संतुलन को प्रभावित करेगा.
पूर्व राष्ट्रपति डेंग शियाओपिंग के कार्यकाल में जब चीन आर्थिक शक्ति बन रहा था, तब चीन की व्यवस्था बनाये रखने के लिए और स्थिरता प्रदान करने के लिए राष्ट्रपति के कार्यकाल को सीमित किया गया था. अब इसी तर्क का सहारा लेकर कार्यकाल की सीमा को हटाया जा रहा है. शी जिनपिंग के दो पूववर्ती राष्ट्राध्यक्षों-डेंग शियाओपिंग और हू जिन्ताओ ने अपने दो कार्यकाल पूरा करने के बाद पद छोड़ दिया था. इन दोनों नेताओं ने अगली पीढ़ी के नेतृत्व को विकसित भी किया था, जिनमें शी जिनपिंग भी शामिल हैं. लेकिन शी के द्वारा दो कार्यकाल की परम्परा को तोड़ा जा रहा है. इससे चीन में माओ जेदांग के व्यक्ति पूजा की प्रवृत्ति वाले युग की वापसी होने का खतरा दिखाई दे रहा है. अगर ऐसा हुआ तो उत्तराधिकार के लिए आंतरिक सत्ता-संघर्ष तीव्र हो सकता है.
यह भी गौर करने वाली महत्त्वपूर्ण बात है कि चीन में ऐसे समय में शक्तिशाली और मजबूत नेतृत्व उभर रहा है, जब दुनिया के बाकी देश नेतृत्व के संकट से जूझ रहे हैं. अमेरिका में ओबामा वि को सही परिप्रेक्ष्य में देखने वाले नेता थे. वह अमेरिका प्रथम के साथ-साथ बाकी दुनिया को प्राथमिकता के एजेंडे पर सवरेपरि रख कर चल रहे थे. उनकी जगह ट्रंप का नेतृत्व संकुचित और स्व-हित वाला है. भारत में भी हिन्दू बोध से ग्रसित नेतृत्व उभर रहा है और उदारपंथी नेतृत्व सिकुड़ रहा है. ऐसी सूरत में शी जिनपिंग का नेतृत्व एक मात्र ऐसा नेतृत्व है, जो व्यापक परिप्रेक्ष्य के साथ आगे बढ़ेगा. इसलिए वहां संकुचित नेतृत्व उभरने का संकट हाल-फिलहाल टल गया है. शी जिनपिंग का नेतृत्व चीन को आर्थिक विकास की ओर ले जाएगा. उसका दुनिया में प्रभाव बढ़ेगा. चीन की सैन्य शक्ति बढ़ेगी. इसलिए अगल दशक चीन का है.
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