मानव तस्करी : अपर्याप्त हैं कानून

Last Updated 02 Mar 2018 01:54:17 AM IST

भारत के स्वैच्छिक क्षेत्र, जो मानव तस्करी के संबंध में महिलाओं और बच्चों के लिए काम कर रहे संगठन हैं, ने नये कानून बनाने के लिए महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा उठाए गए प्रयासों का पुरजोर स्वागत किया है.


मानव तस्करी : अपर्याप्त हैं कानून

गौरतलब है कि मानव तस्करी जैसे घृणित अपराध के लिए आंकड़े न केवल भयावह हैं, बल्कि इसकी असाधारण वृद्धि को दशर्ते हैं, और इसे व्यापक व्यवस्था की मांग करते हैं.   2016-एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि 23,117 (इनमें से 61% बच्चे) शिकारों के बचाव के देश भर में तस्करी के 8,132 मामले दर्ज किए गए थे. 45% पीड़ितों की ‘जबरन श्रम’  के उद्देश्य से तस्करी की गई थी. इसके बाद ‘वेश्यावृत्ति के लिए यौन शोषण’ (22%), आदि. यह पहला उदाहरण है जिसमें एएचटीयू से डाटा को तस्करी के आंकड़ों को प्रतिबिंबित करने के लिए जोड़ा गया है. यह कानून मानवीय तस्करी के सभी पहलुओं का ध्यान रखता है- रोकथाम, बचाव, पुनर्वास, जबरन श्रम जैसे मानव तस्करी के बढ़ते रूपों समेत लैंगिक परिपक्वता के लिए रासायनिक पदाथरे और हार्मोन का प्रयोग आदि और इस उद्देश्य के लिए महिला या बच्चे की तस्करी को बढ़ावा देने और उसे सुविधाजनक बनाने के लिए.

विधेयक, समयबद्ध परीक्षण और पीड़ितों के प्रत्यावर्तन के लिए नामित न्यायालयों का भी प्रयोजन है-एक वर्ष की अवधि के भीतर संज्ञान लेना अत्यंत स्वागतयोग्य कदम है. विधेयक विदेशों में स्थित संपत्ति को जब्त करने का भी प्रावधान करता है, जो इस अपराध से निपटने के लिए अच्छा प्रयास है, जो अब एक वैश्विक अपराध हो गया है. इस विधेयक का पूरी तरह से पालन करने के लिए प्रत्येक जिला, राज्य और केंद्रीय स्तरों पर समर्पित तंत्र बनाया गया है. हम विशेष रूप से मानव तस्करी के प्रावधान से खुश हैं, जो भारत के संविधान में परिभाषित और प्रदत्त कुछ अग्रणी अपराधों में शुमार है. लेकिन दुर्भाग्य से इस कानून को जो संविधान में प्रदान किया गया था पर जो ‘निर्भया’ 2013 की दुर्घटना  तक परिभाषित नहीं किया गया था. अपराध कानून संशोधन अधिनियम, जिसके तहत तस्करी धारा 370 में परिभाषित किया गया था. भारतीय दंड संहिता, मानव तस्करी की एक नई परिभाषा के निर्माण के बावजूद जहां वाणिज्यिक सेक्स, जबरन श्रम, बाल मजदूरी, अंग व्यापार, जबरन विवाह और अवैध रूप से बच्चों को अपनाने को कवर किया गया था, कानून इसके व्यापक रूप में प्रदान नहीं किया गया था, जिससे सभी प्रावधानों की आवश्यकता हो.

सिविल सोसाइटी संगठन व्यापक कानून का इंतजार कर रहे थे, और पैरवी कर रहे थे. अब जब इस विशेष विधेयक को मंत्रिमंडल ने संसद के रास्ते में मानव तस्करी के पीड़ितों के पुनर्वास, पीड़ितों और उनके परिवारों के लिए आपराधिक जांच, अभियोजन, मुआवजे के सभी पहलुओं के पुनर्वास के लिए अनुमोदित किया है, तो  कानून के अनुसार संसद के माध्यम से जल्द ही विधेयक राष्ट्रीय स्तर पर आतंकवाद के ब्यूरो के कार्यों को पूरा करने के लिए गृह मंत्रालय के अधीन एनआईए की सभी मानव शक्ति और संसाधनों वाली एक मौजूदा एजेंसी भी प्रदान करता है, जो इसके लिए एक नया रूप बनाने से ज्यादा बेहतर साबित होगा.

आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम, 2013 के अधिनियमन के बाद धारा 370 ने मानव तस्करी को परिभाषित किया लेकिन इन पहलुओं को अब भी अनदेखा किया जा रहा था. मानव तस्करी के मुद्दों का पूरा चरित्र मुख्य रूप से उस कारण के लिए बदलेगा जो अभी तक अनैतिक यातायात (रोकथाम) अधिनियम, 1956 में केवल व्यावसायिक सेक्स या आम भाषा में, ‘वेश्यालय’ या ‘वेश्यालय संबंधी मुद्दों’ या ‘वेश्यावृत्ति’, जो एक अभिव्यक्ति के रूप में हमारे लिए स्वीकार्य नहीं है, महिलाओं, पीड़ितों को फिर से पीड़ित करने के कारण प्रचलित अनैतिक यातायात (रोकथाम) अधिनियम के तहत 70-80% मामलों की मांग की जा रही है, जिसका मतलब है कि पीड़ित खुद फिर पीड़ित हो जाता है, जो पूरी तरह अस्वीकार्य है. इसके लिए व्यापक कानून की आवश्यकता थी, जिसे अब पूरा किया जा रहा है. संविधान में हमारी प्रतिबद्धता को पूरा करना, संयुक्त राष्ट्र प्रोटोकॉल के जरिए संयुक्त राष्ट्र में हमारी प्रतिबद्धता है,  जिसमें मानव व्यवहार के सभी पहलुओं और रूपों को शामिल किया गया है.

हम नये बिल का दृढ़ता से समर्थन करते हैं. चाहते हैं कि इस कानून को संसद द्वारा पारित किया जाना चाहिए और वास्तव में अभियोजन पक्ष, जांच और संगठित मानव तस्करी और सिंडिकेट को जबरदस्त सजा के लिए काम करना चाहिए क्योंकि मानव तस्करी का अपराध दुनिया के तीन सबसे घातक अपराधों में से एक है. अन्य दो ड्रग्स और हथियारों से संबंधित अपराध हैं. यह अपराध सबसे  घृर्णित है क्योंकि मनुष्यों का सौदा करता है, और  वास्तव में सबसे कमजोर और असहाय इंसानों में से कुछ का. इस दृष्टिकोण से 28 फरवरी एक ऐतिहासिक दिन है, और हमें इसे एक पर्व के रूप में मानना चाहिए. विभिन्न एजेंसियां जो इसके लिए काम करती हैं, वे श्रम विभाग, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, पुलिस, न्यायपालिका और स्वैच्छिक संगठनों से संबंधित हैं, सभी के लिए महत्त्वपूर्ण भूमिकाएं हैं.

मानव तस्करी की पूरी तस्वीर को अब परिभाषित किया जा रहा है, जो दुनिया में कहीं भी परिभाषा का सबसे व्यापक रूप है क्योंकि अब इसमें भीख मांगना भी शामिल है, और अन्य प्रकार के अपराध जो मानव तस्करी के नाम पर किए गए हैं, एक पुलिस अधिकारी और ऐसे व्यक्ति के रूप में जो लंबे समय तक अनैतिक आवागमन (रोकथाम) अधिनियम लागू कर रहा है, मुझे लगता है कि मौजूदा कानून बहुत ही अपर्याप्त है क्योंकि यह केवल वेश्यावृत्ति के बारे में बात करता है जो पुरानी अवधारणा है, और दूसरी बात है कि हमारा फोकस अब व्यावसायिक तस्करी के अन्य रूपों  पर भी है. विशेष रूप से जबरन श्रम और बाल श्रम जो बड़े पैमाने पर बढ़ गए हैं. एक और महत्त्वपूर्ण क्षेत्र, जो कानून से अछूता रह गया है, लापता बच्चों के मुद्दे से सम्बंधित है. देश में करीब 1.25 लाख बच्चे लापता हैं, जिनमें से अधिकांश का पता लगाना असंभव हो गया है. मेनका गांधी ने इस बारे में लापता 3 लाख बच्चों का एक आंकड़ा बताया है. संभव है कि इन बच्चों की बड़ी संख्या मानव तस्करी, जबरन श्रम के रूप इस्तेमाल हो रही हो. पुलिस, श्रम विभाग, चाइल्डलाइंस और स्वैच्छिक संगठनों की भूमिका इन मामलों में बेहद महत्वपूर्ण है. इसलिए कानून का इन सभी एजेंसियों को साथ लेकर चलना उसकी बड़ी सफलता का सबब बनेगा.

आमोद कंठ


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