नजरिया : पहल को अंजाम तक पहुंचाएं

Last Updated 25 Feb 2018 06:24:09 AM IST

समृद्धि की बारिश कहें या विकास का सैलाब? लखनऊ में संपन्न दो दिवसीय इनवेस्टर्स समिट में प्रदेश सरकार ने 1045 एमओयू यानी मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग पर दस्तखत किए.


नजरिया : पहल को अंजाम तक पहुंचाएं

500 से ज्यादा कंपनियों का मेला लगा. देश-विदेश के 6000 डेलिगेट्स का जमावड़ा लगा. चुनिंदा 100 उद्योगपतियों ने अपने पिटारे खोल दिए. 4.28 लाख करोड़ से ज्यादा के निवेश का दावा किया गया और 40 लाख नई नौकरियों से सृजन का वादा. तो क्या अच्छे दिन आ गए?
इन्वेस्टर्स समिट यानी निवेशकों का सम्मेलन बीजेपी सरकारों की खासियत रही है. बतौर मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुजरात में ऐसे सम्मेलन खूब किए. चूंकि अब वे देश के प्रधानमंत्री हैं, इसलिए उनकी पार्टी की जिन-जिन राज्यों में सरकारें हैं, वे उनके ही नक्शेकदम पर चलकर अपने सूबे को विकास मार्ग पर आगे बढ़ाती दिख रही हैं. यूपी में 21-22 फरवरी 2018 को हुए इन्वेस्टर्स मीट में सवा चार लाख करोड़ के निवेश के प्रस्ताव आने की घोषणा की गई है. इन्वेस्टर्स समिट को सफल बनाने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने देशभर में भी विभिन्न राज्यों का दौरा किया. निवेशकों से व्यक्तिगत मुलाकातें आयोजित कीं और आखिरकार एक बड़े इवेंट को सफल करने में कामयाब रहे. यूपी के लिए यह ऐतिहासिक है और दूसरे प्रदेशों के लिए प्रेरणा.

एक आयोजन के हिसाब से, उम्मीद के हिसाब से यह इन्वेस्टर्स समिट सफल है, इसमें कोई संदेह नहीं. लेकिन, इसकी असली सफलता तभी मानी जाएगी जब वास्तव में इन समझौतों पर अमल हो पाएगा. सही मायने में निवेशक निवेश करेंगे. आम तौर पर देखा यही गया है कि निवेशक इन मौकों का इस्तेमाल अधिक से अधिक सुविधाएं पाने के लिए करते हैं. अनुकूल रियायत हासिल करने के बाद वे अपने फंड का कहीं और उपयोग कर लेते हैं. यही वजह है कि योजनाएं अधर में लटकी रहती हैं. इन्वेस्टर्स समिट में शरीक हुए जी समूह के प्रमुख सुभाष चंद्रा के वक्तव्य भी इसकी तस्दीक करते हैं, ‘पहले 30,000 करोड़ रु पये के समझौतों पर हस्ताक्षर होते थे और वास्तविक निवेश केवल 3,000 करोड़ रु पये का ही होता था. लेकिन अब परिस्थितियां बदल गई हैं.’
झारखण्ड बहुत बड़ा उदाहरण है जहां अजीम प्रेमजी जैसे निवेशकों ने राज्य सरकार से तमाम तरह की सुविधाएं हासिल कर लेने के बावजूद वास्तव में निवेश करने से खुद को दूर रखा. गुजरात में भी दावे के अनुरूप निवेश नहीं आए. यही हाल छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र का भी रहा है.
मोदी सरकार के नाम से जिन उद्योगपतियों के नामों को जोड़ा जाता रहा है उनमें अम्बानी और अदानी शामिल हैं. इनमें से एक मुकेश अम्बानी ने 3 साल में 10 हजार करोड़ और दूसरे अदानी ने 5 साल में 5 हजार करोड़ का निवेश करने की घोषणा की है. अम्बानी ने 3 साल में 1 लाख नौकरियां देने का वादा भी किया है. मगर, इनकी घोषणाएं 2022 तक का इंतजार कराने वाली हैं इसलिए रणनीतिक भी मानी जा रही है.
यूपी सरकार निवेशकों के सम्मेलन में आने वाले तीन सालों में 40 लाख रोजगार पैदा होने की बात कर रही है. मगर, ये रोजगार कैसे पैदा होंगे, कब पैदा होंगे और क्या तय समय के भीतर 40 लाख लोगों को नौकरी मिल जाएगी- इस बारे में कुछ साफ नहीं किया गया है. ऐसे में आशंका उठनी स्वाभाविक है कि कहीं ये सपना 2019 के लिए तो नहीं बेचे जा रहे हैं. हालांकि 2003 में मुख्यमंत्री के तौर पर खुद नरेन्द्र मोदी ने इनवेस्टर्स मीट ‘वाइब्रेंट गुजरात’ शुरू कर जिस तरह विकास की गाड़ी को रफ्तार देने की कोशिश की और विकास को लेकर एक अलग छवि बनाई, कुछ वैसी ही उम्मीद वो यूपी में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में देखना चाहते हैं.
यूपी अगर समृद्धि और विकास के रास्ते पर एक इन्वेस्टर्स समिट के आयोजन से ही आ चुकी है, तो जब वास्तव में निवेश होगा तब यूपी का क्या होगा. हर आयोजन के लिए परिणाम से पहले ही पीठ थपथपाने वाली बीजेपी एक नया स्लोगन लाई है- ‘वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रॉडक्ट.’ प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि जो जिले जिस खास वस्तु के लिए मशहूर रहे हैं, उसी पर ध्यान फोकस किया जाए. यह नीति हो सकती है, लेकिन इन्वेस्टर्स समिट का हिस्सा नहीं. यूपी को जब तक बुनियादी सुविधाएं नहीं मिलेंगी, आए दिन यहां दंगे बंद नहीं होंगे, कानून व्यवस्था की स्थिति को लेकर निवेशकों को भरोसा नहीं होगा तब तक निवेशक उत्तर प्रदेश का रु ख कैसे करेंगे- ये बड़ा सवाल है. ईज ऑफ डूइंग बिजनेस का जिक्र यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने भी किया.
उन्होंने कहा कि इस मामले में यूपी पहले से बेहतर हुआ है. मगर, इस दावे का कोई ओर-छोर नजर नहीं आता, न इसका कोई स्रोत ही उन्होंने बताया. फिर भी अगर ऐसा है, तो यह यूपी के हित में है. दरअसल दोनों दिशा में प्रयास साथ-साथ किए जाने चाहिए, चाहे इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास हो या फिर निवेशकों को आकर्षित करने का काम.
यूपी में रीयल एस्टेट का कारोबार थमा हुआ है. निवेशकों के पैसे डूब रहे हैं. छोटे-बड़े निवेशकों के हजारों करोड़ रु पये इसमें फंसे हुए हैं. इसका कोई समाधान लेकर सरकार सामने नहीं आती. जब अदालतें ही ऐसे मसलों पर फैसला करेंगी, तो सरकार की क्या भूमिका रह जाती है. ऐसे में निवेशकों का सरकार पर भरोसा कैसे बना रहेगा.
निवेशकों को आकर्षित करने की होड़ में एक और गलती आम तौर पर सरकारें करती रही हैं. बिना गारंटी के उन्हें बैंकों से सस्ते ऋण उपलब्ध कराती रही हैं. जमीन उन्हें सस्ते में मिल जाती है. फिर भी रोटोमैक जैसी कम्पनियों का ईमान खराब हो जाता है. वे बैंक को भी चूना लगाती हैं और निवेश योजनाओं को भी. ऐसे निवेश से भी बचने की जरूरत है.
 पूरे देश में ही अभी निवेश के प्रति एक अजीबोगरीब संकोच निवेशक दिखा रहे हैं. यह वातावरण नोटबंदी और जीएसटी के बाद से बना है. आर्थिक विश्लेषक मानते हैं कि जो कोर इंडस्ट्रीज हैं वह भी अपनी क्षमता के अनुसार उत्पादन नहीं कर पा रही हैं. इसकी वजह ये है कि बाजार में मांग नहीं है. मांग पर असर डालने वाली नीतियों में जीएसटी को दोष दिया जा रहा है. ऐसी स्थिति में यूपी में हिन्दुस्तान से अलग कोई वातावरण निर्मिंत होने वाला है, विश्वास नहीं होता.
देश में मांग का बढ़ना जरूरी है. तभी उत्पादन बढ़ेगा. जब उत्पादन बढ़ेगा तो निवेशक उसका फायदा उठाने की सोचेंगे और नए निवेश करेंगे. अन्यथा वे भी वेट एंड वॉच की स्थिति में अधिक दिनों तक नहीं रह सकेंगे. पूंजी तो ऐसे भी स्थिर नहीं रहती. वह अपना मार्ग ढूंढ़ ही लेती है. अभी पूंजी निवेश के ख्याल से उत्तर प्रदेश की भूमि समतल मार्ग नहीं बना पाई है. फिर भी यूपी के मुख्यमंत्री ने निवेशकों को लुभाने की जो पहल की है वह बेकार नहीं जाएगी और उसका हाल अतीत में हुए निवेश जैसा नहीं होगा, ऐसी उम्मीद की जानी चाहिए. बीती ताहि बिसारि दे. इच्छाशक्ति से ही उम्मीदें साकार होती हैं. देश के शीर्ष उद्योगपति मुकेश अंबानी ने भी कहा कि उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश बनाना मोदी जी का सपना है और हम सब मिल कर इसे पूरा करेंगे. तो उम्मीद रखनी चाहिए कि ऐसा ही होगा और यह सामूहिक कोशिश देश की उत्पादन क्षमता और रोजगार में बढ़ोतरी के साथ प्रति व्यक्ति आय और देश के विकास का ग्राफ नई ऊंचाई तक ले जाएगी.

उपेन्द्र राय


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