विज्ञापन :प्रतिबंध हल नहीं

Last Updated 19 Feb 2018 05:05:52 AM IST

बच्चों की सेहत को ध्यान में रखने का दावा करते हुए सूचना एवं प्रसारण राज्यमंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने लोक सभा में बताया है कि कार्टून चैनल पर जंक फूड के विज्ञापन नहीं दिखाए जाएंगे.


विज्ञापन :प्रतिबंध हल नहीं

हालांकि बाद में सरकार ने यह भी कहा कि जंक फूड के विज्ञापन पर प्रतिबंध का उनका ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं है और नौ बड़ी कंपनियां अपनी मर्जी से ऐसा कर रही है.
एक रिपोर्ट की मानें तो 5 वर्ष से कम उम्र के 38 फीसदी भारतीय बच्चे ‘गंभीर कुपोषण‘ के शिकार हैं, जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की मानें तो 13 वर्ष से कम उम्र के 22 फीसद बच्चे मोटापे के भी शिकार हैं. हालांकि, सरकार का दावा है कि बच्चों को बीमारियों से बचाने के उद्देश्य से ही ऐसा कदम उठाया गया है, लेकिन सरकार के इन गाइडलाइंस पर कुछ लोगों की नाराजगी भी सामने आई है. दरअसल, ऐसे बहुतेरे सवाल हैं, जो इस प्रतिबंध के बाद जहन में आते हैं. सवाल इसलिए भी जरूरी है क्योंकि विज्ञापनों का प्रसारण, चैनलों और उत्पादन करने वाली कंपनियों दोनों के लिए ही कमाई का जरिया है. इस निर्देश से दोनों को ही आर्थिक नुकसान उठाना पड़ेगा. ऐसे में अहम सवाल है कि क्या सरकार ने ऐसे विज्ञापनों के लिए कोई खास आधार तैयार किया है?

दरअसल, सरकार को उन विज्ञापनों पर ही रोक लगाने चाहिए, जो निहायत जरूरी लगे. क्योंकि विज्ञापनों का सामान्यीकरण होना चैनलों, कंपनियों और विज्ञापनों में अभिनय करने वालों सभी के लिए ही आर्थिक नुकसान का मामला है. इससे इतर, सरकार का यह कदम उन बच्चों को भी प्रभावित करने वाला है जो मनोरंजन उद्योग से जुड़े हुए हैं. चूंकि जंक फूड के बहुतेरे विज्ञापन हैं, जिनमें छोटे-छोटे बच्चे अभिनय करते हुए दिखते हैं. स्वाभाविक है कि इनमें बच्चों का प्रयोग बच्चों को लुभाने के लिए ही किया जाता है. अब जबकि सरकार ने विज्ञापन पर रोक लगा दिया है, ऐसे में उनके मनोरंजन उद्योग में काम करने के संवैधानिक अधिकार का भी हनन है. हालांकि,  यह पहला मौका नहीं है जब विज्ञापनों को लेकर विवाद हुआ हो. दरअसल, पिछले वर्ष दिसम्बर में ही सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने सभी चैनलों के लिए एक एडवाइजरी जारी की थी. चैनलों से यह कहा गया कि ऐसे अभद्र और अश्लील विज्ञापन, जो बच्चों की सुरक्षा को खतरे में डालत हो या गलत चीजों में उनकी रुचि पैदा करता हो, सुबह के छह बजे से रात के दस बजे के बीच न दिखाएं. पिछले ही वर्ष राखी सावंत द्वारा कंडोम के एक विज्ञापन पर और सन्नी लियोन द्वारा नवरात्रि के मौके पर एक कंडोम विज्ञापन पर कुछ संगठनों ने नाराजगी जाहिर की थी. सरकार का तर्क था कि इससे बच्चों की मानसिकता साफ-सुथरी बनी रहेगी और वो बुरा असर करने वाली चीजों से दूर रहेंगे. लेकिन यहां पर भी सरकार ने अपनी चूक पर गौर नहीं किया. सवाल है कि क्या केवल कंडोम के विज्ञापन से समाज में अश्लीलता और अभद्रता फैलती है?
दरअसल, कुछ ऐसे भी सामान्य उत्पाद हैं, जिनका विज्ञापन लोगों को उत्तेजित करने वाला है. मसलन, बनियान और अंडरगारमेंट्स के विज्ञापन भी ‘परिवार समय’ में देखने में असहजता महसूस होती है. यहां तक कि मोटरसाइकिल तक जैसे विज्ञापन भी परिवार के साथ बैठकर देखना मुश्किल होता जा रहा है.  फिर ऐसे में यह सवाल लाजिमी है कि केवल कंडोम जैसे विज्ञापन पर ही प्रतिबंध क्यों लगना चाहिए? क्योंकि मोटरसाइकिल के विज्ञापन भी बच्चों की सुरक्षा को खतरे में डालते हैं. ऐसे में लगता है कि विज्ञापन के मानकीकरण और उसके आधार को तय करने में ही समस्या है. इस तरह विज्ञापनों पर बैन के कई सारे फायदे और नुकसान भी हैं. लिहाजा इनके सभी पक्षों पर गौर करते हुए एक बीच का रास्ता निकाला जाना चाहिए.
प्रतिबंध लगाना कभी भी समस्या का हल नहीं हो सकता. न तो जंक फूड पर बैन लगाने से बच्चों की रुचि जंक फूड खाने में कम होगी और न ही कंडोम के विज्ञापन पर प्रतिबंध लगाने से समाज में अश्लीलता के प्रसार पर लगाम लगेगा. मगर इससे प्रतिकूलत: हजारों लोग प्रभावित होंगे. विज्ञापन करने के तरीके में बदलाव करना एक उपाय हो सकता है, जिससे बच्चों पर बुरा असर पड़ने का खतरा नहीं रहेगा. जरूरत है तो सरकार और कंपनियों के बीच एक समन्वय और सह-अस्तित्व की भावना पैदा करने की.

रिजवान अंसारी


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