मुद्दा : नर्क जैसी हैं उत्तराखंड की जेलें

Last Updated 13 Feb 2018 01:59:56 AM IST

संसार के हर धर्म में धारणा है कि ईश्वर ने अच्छे और बुरे कर्मो के फल भुगतने के लिए स्वर्ग और नर्क बनाया है.


मुद्दा : नर्क जैसी हैं उत्तराखंड की जेलें

लेकिन हमारी सरकारों ने नारकीय जीवन को साकार करने के लिए जेलों के रूप में नर्क का सृजन कर ईश्वर से वह विशेषाधिकार छीन लिया है. जिन बंदियों का आरोप सिद्ध न हुआ हो उनको भी सरकारी जेलें नर्क का अनुभव करा रही हैं. बंदियों को न तो भरपेट भोजन मिलता है, और ना ही व्याधि की स्थिति में उनकी पीड़ा कम करने की कोई व्यवस्था है. भीड़ के कारण बंदियों को सोने का तक पूरा समय नहीं मिल पाता.

वर्तमान में उत्तराखंड की कुल 11 जेलों में 4815 कैदी बंद हैं, जबकि स्वीकृत क्षमता केवल 3378 बंदियों की है. विचाराधीन कैदियों को दोष सिद्ध होने तक निर्दोष माना जाता है. यह प्राकृतिक न्याय का भी सिद्धांत है. लेकिन सच्चाई यह है कि जेल के अंदर मनोवैज्ञानिक और शारीरिक यातनाएं झेलनी पड़ती हैं. बहुत सारे विचाराधीन कैदियों को कोई कानूनी सहायता नहीं मिल पाती. वकील से बात करने का मौका भी नहीं मिलता. राज्य सरकार के पास बंदीजनों के स्वास्थ्य और उनकी दैहिक तकलीफों के लिए कोई संवेदना नहीं है.

आज भी किसी भी जेल में कोई नियमित डॉक्टर तैनात नहीं है. जेलों में 15 स्वीकृत पदों में से केवल 7 फार्मासिस्ट तैनात हैं. 2000 में राज्य के गठन के बाद  वर्ष 2016 तक के 16 सालों में राज्य की जेलों में 188 बंदी अपनी जानें गंवा चुके थे. हैरानी का विषय यह है कि इनमें से ज्यादातर कुपोषण के कारण तपेदिक से मरे. टीबी के मरीजों के अलावा एड्स के मरीज भी मौजूद हैं. राज्य गठन के बाद 16 सालों के बाद हरिद्वार जेल में 67 बंदी मर गये. इसी तरह देहरादून की सुद्धोवाला तथा पुरानी जेल में 62, हल्द्वानी की जेल में 32, सितारगंज में 18 और रुड़की जेल में 7 बंदियों की मौत हुई. भरपेट भोजन न मिलने से भी बंदी कुपोषण के शिकार हो रहे हैं.

जेल विभाग से मिली एक सूचना के अनुसार प्रदेश की जेलों में एक बंदी पर सुबह का नाश्ता, दिन का भोजन, चाय और रात के भाजन पर सरकार का 35 से लेकर 40 रुपये तक खर्च होता है. प्रत्येक माह एक बंदी को राशन के अलावा 100 ग्राम टूथपेस्ट, कपड़े धोने के लिए 120 ग्राम वजन का साबुन तथा 75 ग्राम नहाने का साबुन दिया जाता है. जाहिर है कि साफ-सफाई के प्रति घोर लापरवाही के कारण बंदियों के जीवन से भी खिलवाड़ किया जा रहा है. ऐसी भी अधिकृत जानकारी मिली है कि जो जेलें जिला अदालतों से काफी दूर हैं, वहां विचाराधीन बंदियों को सुबह 10 बजे अदालत पहुंचाने के लिए सुबह 8 या 9 बजे ही गाड़ियों में बिठा दिया जाता है, और शाम ढले जेल पहुंचने पर ही भोजन नसीब हो पाता है.

टिहरी जेल से मिली एक आरटीआई सूचना के अनुसार एक बंदी को प्रति दिन चाय के लिए 50 ग्राम, नाश्ते के लिए 40 ग्राम तथा दोनों वक्त के भोजन के लिए 525 ग्राम लकड़ी उपलब्ध करायी जाती है. सोमवार से लेकर रविवार तक बंदियों के लिये राशन तय है, जिसमें सेमवार को एक बंदी को 90 ग्राम वजन की पाव रोटी या बन और 45 ग्राम गुड़, भोजन में 45 ग्राम अरहर की दाल, सायंकाल के भोजन के लिए 45 ग्राम उड़द की दाल दी जाती है. इस राशन में आधा ग्राम मिर्च, 2 ग्राम नमक, 1 ग्राम तेल और 2 ग्राम आमचूर भी दिया जाता है.

जेल प्रशासन को भी पता नहीं कि बड़ी संख्या में बंद सांस रोगी या तपेदिक कहीं एचआईवी से संक्रमित तो नहीं हैं. सूचना के अािधकार के तहत मिली जानकारी के अनुसार टिहरी जेल में एक कैदी एड्स संक्रमित है जबकि एक अन्य की तपेदिक के कारण फेफड़ा फट जाने से मौत हो चुकी है. टिहरी जेल में ही एक बंदी गंभीर सांस रोग से पीड़ित है. रुड़की जेल में क्षय रोग से एक की मौत की पुष्टि हुई है और एक अन्य की लीवर सिरोसिस से. हल्द्वानी उपकरागार में तपेदिक से दो कैदी पीड़ित हैं. चमोली के पुरसाड़ी कारागार में एक कैदी की मौत कैंसर से हुई. हरिद्वार जेल में 67 बंदियों की मौतों के बाद भी 2 कैदी तपेदिक से पीड़ित हैं.

देश में आजादी के बाद जेल सुधार की दिशा में कई समितियां बनाई गईं. इनमें मुख्य रूप से वर्ष 1983 में मुल्ला समिति, 1986 में कपूर समिति, 1987 में बनी अय्यर समिति थी. लेकिन इन सारी समितियों के सुझावों को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया. इसके अतिरिक्त, सजा-काल को स्वरोजगार की तैयारी से जोड़ने का सुझाव भी दिया गया था. मगर आज भी जेल सुधार की दिशा में कोई ठोस पहल शुरू न होना दर्शाता है कि हमारी राज व्यवस्था पाप से नहीं बल्कि पापी से घृणा करती है.

जयसिंह रावत


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