नजरिया : चुनावी महासमर की आहट
लोकसभा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आक्रामक भाषण से संकेत मिलते हैं कि नई लोक सभा का बिगुल बज चुका है.
नजरिया : चुनावी महासमर की आहट |
अपने एक घंटे बीस मिनट के भाषण में मोदी ने कांग्रेस पर जोरदार हमला बोला. कुछ वैसा ही, जैसा वह चुनाव के समय बोलते रहे हैं. हालांकि, लोक सभा का कार्यकाल अभी एक साल से ज्यादा बचा है. लेकिन एक साथ चुनाव कराने की चर्चा, बजट में किसानों के लिए खजाने का खुलना और गरीबों के लिए ढेर सारी योजनाओं का एलान चुनावी दस्तक जैसा सुनाई दे रहा है.
तो क्या मोदी सरकार आश्वस्त हैं कि वह फिर सत्ता में लौट रही है? 2019 में भी उसकी लोकप्रियता 2014 जैसी बरकरार है? 2014 के वादे पूरे हो गए हैं? नोटबंदी से आम लोग खुश हैं, जीएसटी से व्यापारियों को राहत मिली है? युवाओं के लिए रोजगार का सृजन हुआ है? समर्थन मूल्य मिलने से किसान खुश हैं और नई स्वास्थ्य बीमा योजना ने गरीबों का दुख दूर कर दिया है?
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर हुई चर्चा का समापन जिस तरीके से किया, उसकी मिसाल शायद ही मिलेगी. उपलब्धियां गिनाई, मगर कांग्रेस की पूर्ववर्ती सरकारों को कोसते हुए. विपक्ष के सवालों के जवाब देने से बचते हुए उन्होंने कांग्रेस पर ही कई सवाल दागे. बेरोजगारी, एनपीए जैसे मुद्दे पर भी पीएम मोदी उल्टे कांग्रेस से सवाल करते दिखे. राजनीतिक जगत में बेहतरीन वक्ता के रूप में जो जगह नरेन्द्र मोदी ने करोड़ों लोगों के दिलों में बनाई है, यह भाषण उससे हटकर नजर आया.
हालांकि, नरेन्द्र मोदी नहीं चाहेंगे कि चुनाव में बेरोजगारी मुद्दा बने, लेकिन इसे मुद्दा बनने का आधार भी तैयार हो गया है. पकौड़ा बेचने को रोजगार बताकर पहले पीएम ने रोजगार को लेकर नई सरकारी सोच सामने रखी थी. अब संसद में प्रधानमंत्री ने रोजगार को लेकर एक और सोच देश के सामने रखी है. पीएम मोदी ने कहा है कि भारत में आज का मध्यम वर्ग नौकरी की भीख नहीं मांगता.
नरेन्द्र मोदी ने कहा, ‘मैं जरा कांग्रेस के मित्रों से पूछना चाहता हूं कि आप बेरोजगारी आंकड़ा पूरे देश का देते हैं, पर रोजगार का आंकड़ा भी देशभर का दीजिए. रोजगार और बेरोजगारी के नाम पर देश को गुमराह न करें. आज का मध्य वर्ग नौकरी की भीख नहीं मांगता. आज आईएएस के बच्चे भी स्टार्टअप शुरू कर रहे हैं.
एक तरफ रोजगार को लेकर पीएम का ये नजरिया है और दूसरी तरफ एक ऐसी कड़वी सच्चाई जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. भारत दुनिया में सबसे बड़ा बेरोजगारों का देश बन चुका है. इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन ने अनुमान लगाया है कि 2018 में भारत में 1.86 करोड़ लोग बेरोजगार रहने वाले हैं, जिनकी संख्या 2019 में बढ़कर 1.89 करोड़ हो जाएगी. सरकार के श्रम मंत्रालय के श्रम ब्यूरो का सर्वे बताता है कि बेरोजगारी दर पिछले पांच साल के उच्च स्तर पर पहुंच गई है. भारत ‘बेरोजगारों का हब’ बन चुका है.
संसद में अपने भाषण में प्रधानमंत्री ने एनपीए यानी नॉन परफॉर्मिंंग एसेट का मुद्दा भी पूरी गम्भीरता से उठाया. उन्होंने कहा कि देशहित में पूरा सच सामने रखने से वे बचते रहे. एनपीए का जो आंकड़ा कांग्रेस 36 फीसद बता रही थी, दरअसल 80 फीसद से ज्यादा थी. मनमाने तरीके से सरकारी धन को लुटाया गया. बैंकों पर दबाव डालकर चहेतों को लोन दिलवाए गए. पीएम ने कहा कि बैंक, सरकार और बिचौलियों के गठजोड़ ने देश को लूटा है. प्रधानमंत्री के शब्दों में, ‘आपके (कांग्रेस) पापों को जानते हुए मैंने देश की भलाई के लिए खुद को मौन रखा और आरोप झेलता रहा. ये एनपीए आपका पाप था. हमारी सरकार आने के बाद एक भी लोन ऐसा नहीं दिया गया, जिसमें एनपीए की नौबत आई हो.’
निस्संदेह प्रधानमंत्री ने एनपीए को लेकर जो आरोप पूर्ववर्ती सरकार पर लगाए हैं, उसके लिए कांग्रेस जवाबदेह है. मोदी सरकार में बैंकों के पास धन आए हैं ताकि एनपीए की स्थिति से निपटा जा सके. मगर, घुमा-फिराकर जनता पर ही दोबारा बोझ डाला गया है. अगर सरकार एनपीए के मामले में दोषी बैंक अधिकारियों और डिफॉल्टर पूंजीपतियों को सजा दिलाने का काम करती, तो उसके बेहतर परिणाम मिल सकते थे. प्रधानमंत्री ने मेक इन इंडिया को लेकर उठाए जाते रहे सवालों को भी उठाया. पूंजी निवेश बढ़ने और भारत को मैन्युफैक्चरिंग हब में बदलने की कोशिश का जिक्र किया. मगर, इन सबके लिए जरूरी औद्योगीकरण की ठोस तस्वीर सामने नहीं आ सकी है.
ये सच है कि ईज ऑफ डुइंग बिजनेस के मामले में भारत ने जबरदस्त छलांग लगाई. पूंजी निवेश भी बढ़ा. वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2016-17 में देश में अन्य किसी वर्ष की तुलना में सबसे अधिक 43.47 बिलियन डॉलर का निवेश हुआ. मगर, ये आंकड़े भी देश में औद्योगीकरण को बढ़ावा देते नहीं दिखे. भारत असेम्बलिंग हब और मुनाफा कमाने की जगह बनकर रह गया. अगर वास्तव में एफडीआई ने अपना असर दिखाया होता, तो मैन्युफैक्चरिंग हब बनने से भारत को कोई नहीं रोक सकता था.
संसद में दिए अपने भाषण में प्रधानमंत्री ने विरोधियों पर करारा हमला बोला. बिना नाम लिए भोपाल गैस त्रासदी के जिम्मेदार एंडर्सन को भारत से सेफ एक्जिट देने की बात उठाई तो राजीव गांधी के बड़ा पेड़ गिरने वाले बयान की भी याद दिलाई. प्रधानमंत्री ने इमरजेंसी को याद करते हुए पूछा कि आपको लाखों को जेल बंद करने वाला भारत चाहिए, बोफोर्स घोटाले वाला भारत चाहिए या कि न्यू इंडिया वाला भारत.
संसद के भीतर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पूरी तरह से इलेक्शन मोड में दिखे. अपनी उपलब्धियों को गिनाते हुए भी वे इस मोड में दिख सकते थे. अपनी सरकार की उपलब्धियों को उन्होंने गिनाया भी, मगर उन उपलब्धियों को गिनाने का तरीका राजनीतिक अधिक था. कांग्रेस के कामकाज के मुकाबले, कांग्रेस की उपलब्धियों के मुकाबले बीजेपी और बीजेपी सरकार ने अधिक काम किए, इस पर जोर था. यह गलत नहीं है लेकिन इशारे करता है कि चुनाव अब नजदीक आ चुके हैं.
प्रधानमंत्री के भाषण से एक बात ये भी तय हो गई है कि नरेन्द्र मोदी सरकार की उपलब्धियों को लेकर बीजेपी चुनाव मैदान में नहीं उतरेगी. वह 5 साल बनाम 70 साल जैसे जुमलों के सहारे कांग्रेस की कमियां गिनाकर चुनावी पिच तैयार करेगी. भ्रष्टाचार के मुद्दे पर बीजेपी चुनाव मैदान में उतरने वाली है और एक बार फिर इस मुद्देपर कांग्रेस का राजनीतिक कत्ल करने की उन्होंने ठान ली है, इसका भी संकेत मिल गया है. प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में आने वाले चुनाव में चुनावी मुद्दे का आधार तय कर दिया है. इसके अलावा संसद में दिए अपने भाषण में पीएम नरेन्द्र मोदी ने एनडीए कुनबे को मजबूत करने और यूपीए कुनबे को कमजोर करने की कोशिश करते रहने का संकेत भी दिया है. उनका पूरा भाषण सवालों के जवाब देने के बजाय सवाल उठाता दिखा.
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