पहले जैसी मिली आजादी

Last Updated 29 Jan 2018 05:23:13 AM IST

बांबे हाई कोर्ट ने हाल ही में सुनाए अपने एक अहम फैसले में, सीबीआई की विशेष अदालत के उस फैसले को खारिज कर दिया है, जिसमें उसने सोहराबुद्दीन फर्जी मुठभेड़ मामले की सुनवाई की कार्यवाही की रिपोर्टिग या प्रकाशन पर रोक लगा दी थी.


मीडिया पहले जैसी आजादी मिली

जस्टिस रेवती मोहिते डेरे ने इस मामले में अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि आरोपितों द्वारा सनसनी फैलाने की चिंता मात्र, इस तरह के पाबंदी आदेश जारी करने का पर्याप्त आधार नहीं हैं. इस तरह की पाबंदी नाजायज है और यह आदेश पत्रकारों को अभिव्यक्ति की आजादी के संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन करता है. अदालत का इस बारे में साफ कहना था कि प्रेस के अधिकार, अभिव्यक्ति की आजादी प्रदान करने वाले संवैधानिक अधिकार में निहित हैं.

एक खुली सुनवाई की रिपोर्टिग में प्रेस न केवल अपने अधिकार का इस्तेमाल करती है, बल्कि आम जनता को इस तरह की सूचनाएं मुहैया कराने के बड़े मकसद को पूरा करती है. अदालत ने अपने फैसले में यहां तक कहा कि इंसाफ सिर्फ होना ही नहीं चाहिए, बल्कि होते हुए दिखना भी चहिए. खुली अदालत का मकसद ही यही है और मीडिया इस संदेश को जनता तक पहुंचाने का एक सशक्त माध्यम है.

जाहिर है कि अदालत ने जो कुछ कहा, उसमें कोई भी बात गलत नहीं है. अदालत ने अपना फैसला, संविधान और कानून की रोशनी में ही दिया है. प्रेस की आजादी को लेकर जस्टिस मोहिते डेरे का यह अहमतरीन फैसला ऐसे दौर में आया है, जब मीडिया सत्ता के बेहद दबाव में है. अपना काम कर रहे पत्रकारों को लगातार धमकियों और हिंसा का सामना करना पड़ रहा है. संदेह, सवालों और हरदम नये विवादों में घिरे रहे सोहराबुद्दीन शेख फर्जी मुठभेड़ मामले की सुनवाई मुंबई की एक विशेष सीबीआई अदालत में चल रही है, जिसने बीते साल 29 नवम्बर को बचाव पक्ष की एक अर्जी के बाद मीडिया को अदालती कार्यवाही की रिपोर्टिग करने से रोक दिया था.

अदालत के इस आदेश को गैरकानूनी बताते हुए इसके खिलाफ दो याचिकाएं बांबे हाईकोर्ट में दाखिल की गईं. एक याचिका बृहनमुंबई पत्रकार संघ ने तो दूसरी याचिका विभिन्न अखबारों और समाचार चैनलों की ओर से नौ पत्रकारों ने दायर की. याचिकाकर्ताओं ने अदालत से गुजारिश की कि सीबीआई जज द्वारा बचाव पक्ष की गलत रिपोर्टिग की आशंका पर जल्दबाजी में आदेश दिया गया है, जबकि पिछले पांच सालों से मीडिया इस मामले की रिपोर्टिग कर रही है और अब तक गलत रिपोर्टिग का एक भी मामला सामने नहीं आया है. यह मामला लोगों से जुड़ा है और इसमें कई पूर्व पुलिस अधिकारी आरोपी हैं, लिहाजा मामले में मौके पर कवरेज बेहद जरूरी है. बहरहाल, इन याचिकाओं पर जब अदालत में सुनवाई शुरू हुई तो बचाव पक्ष के वकील द्वारा इस मामले को 'संवेदनशील' बताते हुए कहा गया कि इस मामले में बड़ी राजनीतिक पार्टियों का नाम है और गवाहों और वकीलों दोनों की ही जान को खतरा हो सकता है.



बचाव पक्ष की इस दलील सुनने के बाद, जस्टिस डेरे ने सीबीआई की विशेष अदालत के फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा कि मामला कितना भी गंभीर हो, क्या आप उस प्रावधान के बारे में बता सकते हैं, जिसके अनुसार यह आदेश दिया गया है? अगर ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, तो क्या किसी ट्रायल कोर्ट जज को इस तरह का आदेश देने का अधिकार है? संवैधानिक मुद्दों पर जोर देने के साथ अदालत ने यह बात भी मानी कि सीबीआई के विशेष जज ने अपनी शक्तियों से बाहर जाकर मीडिया रिपोर्टिग पर पाबंदी का आदेश दिया है. जबकि सीआरपीसी में इस तरह का आदेश देने का कोई प्रावधान नहीं है.

हाईकोर्ट का हालिया फैसला कई मायनों में ऐतिहासिक है. गाहे-बगाहे कोई ना कोई दलील देकर कभी अभियुक्त, तो कभी अभियोजन पक्ष अदालत में मीडिया रिपोर्टिग पर पाबंदी लगाने की कोशिश करते रहते हैं. ऐसे में ये फैसला नजीर साबित होगा. इस मामले की सुनवाई सालों से चल रही है. कभी भी मीडिया की रिपोर्टिग पर न तो कोई उंगली उठी और न ही पाबंदी लगी. फिर बिना किसी आधार के उस पर पाबंदी लगा दी गई, वह भी एक आरोपी की मांग पर. इस मोड़ पर मीडिया पर पाबंदी का कोई तुक नहीं है. यह मीडिया की अभिव्यक्ति की आजादी के खिलाफ है. यही वजह है कि हाई कोर्ट ने, सीबीआई की विशेष अदालत के फैसले को सिरे से खारिज कर दिया और मीडिया को उसके काम के लिए पहले सी आजादी प्रदान कर दी.

जाहिद खान


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