सामयिक : गणतंत्र में शामिल आसियान
पिछले तीन वर्षों में भारतीय विदेश नीति में कई विशेषताएं देखी गई हैं. भारत की अहमियत दुनिया में बढ़ी है.
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दावोस से भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नये विश्व बनाने की बात कही है. यदि गणतंत्र दिवस समारोह को दस आसियान देशों के साथ मिल-जुलकर मनाने की बात से जोड़ा जाए तो इसमें नये विश्व की झलक देखी जा सकती है. मोदी ने परम्पराओं को तोड़ते हुए एक से अधिक देशों के राष्ट्राध्यक्षों को बुलाकर बहुपक्षीय रणनीति को नये सिरे से प्रभावित करने की कोशिश की है.
अब तक गणतंत्र दिवस समारोह एक राष्ट्र प्रमुख को बुलाकर मनाने की बात होती थी. 2015 में अमेरिका के निवर्तमान राष्ट्रपति बराक ओबामा आए थे. 2016 में फ्रांस के राष्ट्रपति हॉलैंड ने शिरकत की थी और पिछले वर्ष अमीरात के राजकुमार मुख्य अतिथि थे. 69 वां गणतंत्र दिवस आयोजन कई महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं की वषर्गांठ भी है. 50 वर्ष पूरा हो रहा है आसियान की स्थापना का. 25 वर्ष ‘लुक ईस्ट पॉलिसी’ का हो गया. 15 वर्ष से डायलॉग पार्टनर के रूप में और 5 वर्षो से भारत और आसियान सामरिक रूप में जुड़े हुए हैं. वर्षो की गणना महज प्रतीकात्मक नहीं है, बल्कि एक नये समीकरण की तलाश है. आज 70 वर्ष उपरांत उसे नये जोश और सोच के साथ जोड़ा जाना निश्चित रूप से नये विश्व की परिकल्पना है. यदि इस नये पहल की विवेचना की जाए तो इसकी तह में नयी विश्व व्यवस्था की स्पष्ट झलक दिखाई देती है. भारत की नजर में दक्षिण पूर्व एशिया कई तरीकों से भारतीय सुरक्षा और रणनीति के लिए काफी अहम है. भारत और आसियान की कुल जनसंख्या 1.9 बिलियन से ज्यादा है तथापि व्यापार का आकार आज भी अत्यंत छोटा है. हालांकि 25 वर्षो में चार गुनी बढ़ोतरी भी हुई है.
इस सम्मलेन के कई मायने हैं पहला; भारत एक बहुपक्षीय विश्व की बात पर बल देता है, जैसा की दुनिया शताब्दियों से एक देश के चंगुल में फंसकर कुंठित होती रही है. पहले ब्रिटिश राज, पुन: अमेरिकी दबदबा और नई शक्ति के रूप में चीन का अभ्युदय इस बात की विवेचना कर रहा है कि चीन दुनिया की सबसे बड़ी शक्ति के रूप में उभर रहा है. 1960 से लेकर 90 तक चीन भी ‘मल्टी पोलर’ विश्व की वकालत करता था, लेकिन आज चीन उसके विपरीत नीति पर काम कर रहा है. इसलिए भी भारत का आसियान संपर्क चीन की इस दंभ को तोड़ने में सहायक होगा. तकरीबन आसियान के हर देश चीन की अधिनायकवादी सोच से चोटिल है. साउथ चाइना सी में चीन किसी भी देश को बराबरी का अधिकार नहीं देता. इंडोनेशिया जब साउथ चाइना सी के नजदीक ‘इकानॉमिक जोन पार्क’ बनाने की पहल करता है तो चीन इसका विरोध करता है. वियतनाम पहले से चीन के विरोध में अपनी आवाज बुलंद कर चुका है. अब दूसरी पाली में संघर्ष समुद्री ठिकानो में है. चीन ने साउथ चाइना सी में 9 डॉटेड लाइन की लकीर खींच चुका है, जिसे वह अपनी समुद्री क्षेत्राधिकार के अंतर्गत मानता है. इस सोच के कारण चीन के तकरीबन सभी पड़ोसी देश, मसलन साउथ कोरिया, जापान, ताइवान, फिलीपींस, वियतनाम, ब्रुनेई, मलयेशिया और इंडोनेशिया है. चीन 9 डॉटेड लाइन के बीच हवाई पट्टी बना रहा है, जो चीन के सैनिक ठिकानों को स्थापित करने में मदद करेंगे. इंडोनेशिया नटुना द्वीप को लेकर इंटरनेशनल ट्रिब्यूनल में अर्जी देगा. चीन अपनी सैनिक क्षमता को हिन्द महासागर तक फैला चुका है.
चीन की नजर में हिन्द महासागर भारत का नहीं है. अगर हिन्द महासागर भारत का नहीं है तो साउथ चाइना सी भी चीन का नहीं है, इसी बात को सिद्ध करने के लिए एक नया समीकरण बना है, जिसमें भारत की भूमिका अहम है. भारतीय समुद्री नीति के तहत एडेन से लेकर मालेका द्वीप तक भारत की सुरक्षा और व्यापार जुड़ा हुआ है. 70 प्रतिशत से ज्यादा व्यापार इसी समुद्री मुहाने से होता है. चीन के आगाज और अमेरिका की ढील ने इस महत्त्वपूर्ण क्षेत्र में एक अंतरर्विरोध पैदा कर दिया है. इसकी वजह से दक्षिण पूर्व एशिया के देश सशंकित हैं. इसलिए 1992 के बाद से दोनों पक्षों के बीच संबंधों की कई परत बन गई है. भारत आसियान संबंध के संदर्भ में दोनों बातें अहम हैं. चीन का डर और व्यापार की गुंजाइश एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं.
चीन की दादागिरी अगर निष्कंटक रही तो भारत का पक्ष कभी भी मजबूत नहीं हो पाएगा. साथ ही चीन श्रीलंका में हम्बनटोटा और पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट के जरिये भारतीय उपमहाद्वीप में भारत को न केवल घेरने की कोशिश कर रहा है बल्कि अपनी ताकत का एहसास भी करवाता है. भारत के संपर्क ने चीन को फिर से सोचने के लिए मजबूर कर दिया है कि क्या चीन का ‘वन बेल्ट वन रोड’ समीकरण भारत को नजरअंदाज कर बनाना संभव हो पाएगा? भारत और आसियान के देश 1950 के दशक से ही जुड़े हुए हैं. 1960 के बाद अमेरिकी सोच के कारण भारत आसियान देशों से दूर होता चला गया. पुन: इसकी शुरुआत 1992 में नई ‘लुक ईस्ट पॉलिसी’ के तहत हुई. लेकिन मोदी की सोच ने इसमें नई जान डाल दी. ‘लुक एक्ट नीति’ के तीन अहम कारक हैं; व्यापार, जुड़ाव और संस्कृति. प्रधानमंत्री की वैश्विक दृष्टि भारतीय विदेश नीति को निरंतर विश्व के अग्रणी देशों के बीच लाकर खड़ा कर रही है. मिनी मल्टी पोलेरिटी से एक नई इकाई की गुंजाइश एशिया के राजनीतिक पटल पर दिखाई दे रही है. पिछले दिनों बौद्ध दिवस के उपलक्ष्य में दक्षिण एशिया के 4 और पूर्व एशिया के दो देशों के साथ सांस्कृतिक आयाम जोड़ने की पहल की गई थी. 2017 में पैसिफिक देशों से चतर्भुज बनाकर सामरिक समीकरण की तैयारी की गई थी. प्रधानमंत्री की सोच महज चीन के साथ प्रतिद्वंद्विता तक सीमित नहीं है बल्कि आर्थिक-सामरिक शक्ति के रूप में भारत की पहचान स्थापित करने की है.
उस मकसद को पूरा करने की कोशिश की जा रही है. 10 देशों के राष्ट्राध्यक्ष से द्विपक्षीय वार्ता भी होगी. सिंगापुर फिलहाल आसियान का चेयरमैन है. सिंगापुर की 18 फीसद आबादी भारतीयों की है. व्यापार की अद्भुत संभावना है. इंडोनेशिया तीसरा सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है. भारत और इंडोनेशिया का साथ, एक नई शक्ति का आगाज होगा. भारत वियतनाम संबंध उतना ही अहम है. दुनिया की निगाहें भारत के गणतंत्र दिवस के परेड पर कम, नये कूटनीतिक सोच पर ज्यादा होगी.
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