सुप्रीम कोर्ट : आदेश और राजधर्म का पालन
यह खबर विचलित करने वाली है कि 1800 महिलाओं ने जौहर के लिए पंजीयन कराया है. पुरातनपंथी ‘पद्मावती’ के बहाने जौहर की कुप्रथा का महिमामंडन कर रहे हैं.
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ये पाखण्डी लोग देश को पुन: 15वीं-16वीं सदी की रुढ़ियों के दलदल में धकेल कर अपने पुरुषवादी अहम और बुद्धिहीन मानसिकता का तुष्टिकरण स्त्रियों के माध्यम से, उन्हें ढाल बना कर करना चाहते हैं. क्या करणी सेना का कोई पुरु ष नेता ‘पद्मावत’ फिल्म के प्रदर्शन के विरोध में सचमुच अपने प्राणों की आहुति देने के लिये तैयार है? या यह सारा उपद्रव और वितंडा ‘राजपूत गौरव’ के नाम पर आगामी राजस्थान विधान सभा चुनाव में बीजेपी का टिकट हांसिल कर मंत्री बनने का षड्यंत्र भर है?
सुप्रीम कोर्ट ने फिल्म ‘पद्मावत’ के प्रदर्शन पर प्रतिबंध से संबंधित कुछ राज्य सरकारों द्वारा जारी की गई अधिसूचना/आदेशों को खारिज कर उनके राजनीतिक षड्यंत्र को विफल करते हुए बिल्कुल स्पष्ट आदेश दिया है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर किसी भी प्रकार का प्रतिबंध उचित नहीं है.
माननीय प्रधान न्यायाधीश ने यहां तक कहा कि ‘अगर फिल्म पर प्रतिबंध की बात करेंगे तो 60 प्रतिशत से ज्यादा भारतीय साहित्य पढ़ने लायक नहीं रह जाएगा.’ माननीय न्यायालय ने राज्य सरकारों को स्पष्ट निर्देश दिया है कि कानून-व्यवस्था बनाए रखना राज्यों का संवैधानिक दायित्व है. इस स्पष्ट आदेश के बावजूद मध्यप्रदेश, हरियाणा और गुजरात के मंत्रियों के जो बयान मीडिया में आए हैं, उनमें सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना का स्वर ही ध्वनित हो रहा है. मध्य प्रदेश के गृह मंत्री कह रहे हैं कि ‘आदेश का परीक्षण करने के बाद ही कोई फैसला लेंगे.’ हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री का कथन है कि ‘सुप्रीम कोर्ट ने राज्य का पक्ष सुने बगैर आदेश दिया है.’
गुजरात के गृह मंत्री भी कह रहे हैं कि ‘आदेश का परीक्षण करने के बाद कदम उठाया जाएगा.’ इन मंत्रियों ने यह नहीं कहा है कि वे माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश का सम्मान करते हैं और राज्य में कानून-व्यवस्था बनाये रखने के लिए सख्त कदम उठाए जाएंगे. इन राज्यों के मंत्रियों से बेहतर प्रतिक्रिया राजस्थान के गृह मंत्री ने दी है कि वे ‘सुप्रीम कोर्ट के आदेश का सम्मान करते हैं और राज्य में कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए सब कुछ करेंगे.
‘फिल्म पर प्रतिबंध लगाने वाले राज्यों की मंशा शुरू से ही करणी सेना के उपद्रव से राजनीतिक फायदा उठाने की रही है. बल्कि यह सारा उपद्रव ही प्रायोजित है और बीजेपी शासित राज्यों की सरकारें इस उपद्रव के माध्यम से राजपूत समाज का ध्रुवीकरण कर राजनीतिक फायदा उठाना चाहती हैं. अन्यथा इतनी हिंसा और उपद्रव के बाद भी करणी सेना के स्वयंभू नेता मीडिया में भड़काऊ बयान कैसे दे रहे हैं? उनके विरु द्ध राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत अभी तक कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई है?
अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना करते हुए करणी सेना के अध्यक्ष 25 जनवरी को ‘जनता कर्फ्यू’ लगाने की धमकी दे रहे हैं. इस धमकी का सीधा अर्थ यही है कि गणतंत्र दिवस के एक दिन पूर्व 25 जनवरी को व्यापक पैमाने पर हिंसा और तोड़फोड़ का षड्यंत्र किया जा रहा है. क्या इन राज्य सरकार के मुख्यमंत्री और प्रशासन ने आंखों पर पट्टी बांध रखी है और कानों में तेल डाल रखा है, कि इन्हें न कुछ दिख रहा है और न कुछ सुनाई दे रहा है! करणी सेना पर प्रभावी कार्रवाई न कर ये राज्य सरकारें उन्हें उपद्रव भड़काने की शह ही दे रही हैं. वरना अभी तक करणी सेना के इन स्वयंभू नेताओं को जेल भेज दिया जाना चाहिए था, जो कि उनके लिए सर्वाधिक उचित स्थान होता. क्या जब फिल्म के प्रदर्शन के विरोध मंध व्यापक पैमाने पर तोड़फोड़ और हिंसा होगी, तभी ये राज्य सरकारें अपनी कुंभकर्णी निद्रा से जागेंगी?
आशा है गृह मंत्री ऐसा कोई बयान नहीं देंगे कि कानून-व्यवस्था राज्य सरकारों का मामला है. इसके विपरीत वे इन राज्य सरकारों को स्पष्ट निर्देश देंगे कि वे सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन कराया जाना सुनिश्चित करें और उपद्रव भड़काने वाले करणी सेना के नेताओं को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत जेल भिजवाने का प्रबंध करें. आशा है, राज्य सरकारें समय रहते अटलजी की भावना का आदर करते हुए ‘राज धर्म‘ का पालन अवश्य करेंगी.
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