तेल कीमतें : चिंता का सबब

Last Updated 23 Jan 2018 06:26:15 AM IST

इन दिनों पेट्रोल और डीजल की कीमत पिछले तीन वर्ष के उच्चतम स्तर पर है. 22 जनवरी को देश के विभिन्न राज्यों में पेट्रोल की कीमत 72 से 77 रुपये प्रति लीटर और डीजल की कीमत 62 से 67 रुपये प्रति लीटर पाई गई.


तेल कीमतें : चिंता का सबब

ऐसे में कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों के कारण देश के आम आदमी से लेकर पूरी अर्थव्यवस्था मुश्किल का सामना करते हुए दिखाई दे रही है.

वैश्विक बाजार में कच्चे तेल की कीमत करीब 70 डॉलर प्रति बैरल (प्रति बैरल 159 लीटर) हो जाने से देश में पेट्रोल-डीजल की कीमतें वर्ष 2014-15 के बाद अब सबसे अधिक ऊंचाई पर दिखाई दे रही है. चूंकि भारत में पेट्रोल और डीजल की कीमतें अब वैश्विक  बाजार की कीमतों के आधार पर निर्धारित होती हैं, अतएव पेट्रोल और डीजल की कीमत छोटे-बड़े सभी प्रकार के वाहन चलाने वाले लोगों की जेब को रोजाना प्रभावित कर रही है. वहीं डीजल की बढ़ती कीमत महंगाई बढ़ाते हुए भी दिखाई दे रही है.

देश में करीब 86 फीसद माल की ढुलाई ट्रकों से की जाती है. ऐसे में ढुलाई महंगी होने के कारण विभिन्न वस्तुएं एवं सेवाएं महंगी होते हुए दिखाई दे रही हैं. महंगाई बढ़ने से औद्योगिक क्षेत्र की कम ब्याज दर पर कर्ज की मांग पूरी होना मुश्किल है. वैश्विक स्तर पर काम करने वाली वित्तीय सेवा कंपनी नमुरा ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि चूंकि भारत अपने तेल की कुल जरूरत का करीब 80 फीसदी आयात करता है, अतएव अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों का भारत की अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है. कहा गया है कि कच्चे तेल के भाव में प्रति बैरल 10 डॉलर की वृद्धि होने पर भारत का राजस्व घाटा भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 0.4 प्रतिशत के बराबर  बढ़ जाएगा. रिपोर्ट के अनुसार तेल की उच्च कीमतें झटके के समान हैं, जो वृद्धि दर को कमजोर करती हैं. 

गौरतलब है कि तेल निर्यातक देशों के संगठन ऑर्गेनाइजेशन ऑफ पेट्रोलियम एक्सपोर्टिंग कंट्रीज (ओपेक) द्वारा कच्चे तेल के उत्पादन में कटौती के समझौते और तेल उत्पादन के प्रमुख केंद्र सऊदी अरब और अन्य पश्चिम एशियाई देशों में संघर्ष के हालात के कारण तेल की दरों में तेजी आई है. यकीनन पिछले तीन सालों तक कच्चे तेल की कमजोर कीमतों का जो लाभ भारत को मिला वह अब समाप्त होता दिख रहा है. वर्ष 2014-15 में कच्चे तेल की औसत कीमत 84 डॉलर प्रति बैरल थी. यह कीमत उससे पिछले साल की तुलना में करीब 20 फीसदी कम थी. फिर वर्ष 2015-16 में यह कीमत घटकर 45 डॉलर प्रति बैरल हो गई. 2016-17 में इसमें कुछ बढ़ोतरी हुई और यह बढ़कर 48 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई. लेकिन वर्ष 2017-18 में औसत भाव में सुधार हुआ और तेल की कीमत 54 डॉलर प्रति बैरल अनुमानित है. जनवरी, 2018 में तेल का भाव 70 डॉलर प्रति बैरल दिखाई दे रहा है. नरेन्द्र मोदी सरकार के आने के बाद संयोगवश वैश्विक बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में कमी आने से भारतीय तेल क्षेत्र और सरकार दोनों इससे लाभान्वित होते रहे. कीमतें घटने से तेल कंपनियों का मुनाफा लगातार बढ़ता गया.

जनवरी, 2016 तक पेट्रोल और डीजल की कीमतों में मई, 2014 की तुलना में करीब 20 फीसद की गिरावट आई. केंद्र सरकार का पेट्रोलियम उत्पादों का सब्सिडी बिल भी प्रति वर्ष कम होता गया. यह बिल वर्ष 2013-14 के 85,000 करोड़ रुपये से घटकर वर्ष 2016-17 में 27,000 करोड़ रुपये रह गया. इस अवसर का लाभ उठाते हुए पेट्रोलियम उत्पादों पर कर भी बढ़ाया गया ताकि घटती कीमतों का लाभ लिया जा सके. वर्ष 2014-15 से 2016-17 तक के तीन वर्षो में उत्पाद शुल्क संग्रह की औसत सालाना वृद्धि दर करीब 46 फीसद रही. इस प्रकार अर्थव्यवस्था राजकोषीय मजबूती की राह पर बढ़ती गई. स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि कच्चे तेल की घटी हुई कीमतों ने मोदी सरकार को बहुत खुशहाली दी है.

लेकिन केंद्र सरकार यह मानकर 2018-19 का केंद्रीय बजट तैयार कर रही है कि कच्चे तेल के औसत दाम 65 डॉलर प्रति बैरल रहेंगे. इस समय जबकि अंतरराष्ट्रीय बाजारों में कच्चे तेल की कीमतों में मौजूदा बढ़े हुए स्तर से गिरावट का कोई संकेत नहीं है. ऐसे में जरूरी है कि सरकार अपना पूरा ध्यान अपनी ऊर्जा नीति को नये सिरे से तैयार करने पर केंद्रित करे ताकि मौजूदा हालात के लिहाज से बेहतरीन नीति तैयार की जा सके . चूंकि देश तेजी से विकास कर रहा है और 2030 तक आने वाले वर्षो के दौरान ऊर्जा संबंधी मांग बहुत तेजी से बढ़ेगी. इस अवधि में यह मांग दुनिया के किसी भी अन्य देश की तुलना में तेज होगी. कच्चे तेल के आयात पर इसकी निर्भरता में भी इजाफा होगा. ऐसे में जरूरत इस बात की होगी कि सरकार एकीकृत ऊर्जा नीति तैयार करे.

सरकार को नवीकरणीय ऊर्जा बाजार पर ध्यान देना होगा. यहां कुछ बातें ध्यान देने लायक हैं. वर्ष 2016 में बिजली क्षमता बढ़ाने के लिए सौलर फोटोवॉल्टिक तकनीक का प्रयोग अत्यधिक लाभप्रद रहा है. बीते पांच सालों में सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा की नीलामी कीमतें तेजी से कम हुई हैं. नवीकरणीय ऊर्जा तेजी से अपनी हिस्सेदारी बढ़ा सकती है.
इस समय सरकार के सामने चिंता यह है कि वह तेल कीमतों को ऊंचे स्तर पर बने रहने से पैदा हने वाले करोड़ों उपभक्ताओं के असंतोष से राजनीतिक जोखिम का सामना करे या फिर राजकोषीय बुद्धिमता को तिलांजली देकर पेट्रोल-डीजल पर एक्साइज डय़ूटी कम करे और पेट्रोलियम पदार्थों पर सब्सिडी बढ़ाए. लेकिन इससे राजकोषीय घाटा बढ़ने पर भारतीय अर्थव्यवस्था की सुधरी हुई रेटिंग फिर पिछड़ जाएगी. संभावना है कि आगामी विधान सभा चुनावों के मद्देनजर सरकार वित्तीय अनुशासन की डगर के कुछ पीछे हटते हुए दिखाई देगी. लोगों को राहत देने के लिए सरकार पेट्रोल-डीजल पर लगाए जा रहे उत्पाद शुल्क और राज्य सरकारें वेट में उपयुक्त कमी करेंगी. साथ ही, केंद्र सरकार पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों पर काबू पाने के लिए पेट्रोल और डीजल को वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) में शामिल करके आम आदमी को राहत देगी.

जयंतीलाल भंडारी


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