बेरोजगारी : हताशा में युवा शक्ति

Last Updated 19 Dec 2017 06:09:53 AM IST

हमारे देश में बढ़ती बेरोजगारी सिर्फ इसलिए चिंता का विषय नहीं मानी जाती है कि इससे लाखों परिवारों की रोजी-रोटी का सवाल जुड़ता है, बल्कि इसका खतरा यह भी है कि बेरोजगार नौजवान आबादी अपराधों की तरफ बढ़ती है.


बेरोजगारी : हताशा में युवा शक्ति

देश के विभिन्न हिस्सों में अपराधों, लूट आदि में पढ़े-लिखे युवाओं का शामिल होना साबित कर रहा है कि रोजगारविहीनता देश और समाज के सामने कैसे-कैसे संकट उपस्थित कर सकती हैं. इन चिंताओं को केंद्र में रखते हुए यूपी-टीईटी यानी शिक्षक पात्रता परीक्षा के नतीजों को देखें तो कह सकते हैं कि भविष्य में ऐसी चुनौतियां काफी ज्यादा बढ़ सकती हैं.

असल में हाल में आए यूपी-टीईटी के नतीजे चौंकाने वाले माने जा सकते हैं. परीक्षा में तीन लाख 49 हजार अभ्यर्थियों ने पंजीकरण कराया था, जिनमें से दो लाख 76 हजार ने परीक्षा दी. नतीजों से पता चला है कि सिर्फ 11 फीसदी अभ्यर्थी उत्तीर्ण हो सके. 89 फीसद के फेल हो जाने के कई निहितार्थ हैं. पहला, युवाओं को जो शिक्षा मिल रही है, उसका स्तर इतना निम्न है कि किसी भी प्रतियोगी परीक्षा के लायक नहीं बनाती. यदि यह मानें कि स्तर कायम रखने के लिए परीक्षा को काफी कठिन बनाया गया है, तो इसका दूसरा संकेत और भी चिंताजनक है. यह कि ऐसी दशा में बेरोजगार रह जाने वाले युवाओं का प्रतिशत बढ़ेगा. वे व्यवस्था से निराश होकर ऐसे रास्तों पर बढ़ सकते हैं जो  देश व समाज के लिए नये संकट खड़े कर देंगे. अचंभे की बात है कि युवाओं में रोजगार दिलाने वाली व्यवस्था और प्रतियोगी परीक्षाओं के प्रति अरुचि दिखने लगी है.

इस साल सेंटर फॉर मॉनिटिरंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के आंकड़ों में बताया गया था कि बहुत से शिक्षित बेरोजगार डिग्री के बाद भी नौकरी की तलाश नहीं कर रहे. जनवरी, 2017 में बेरोजगार युवाओं की संख्या 40 करोड़ 84 लाख थी. लेकिन बेरोजगारी के कारण नौकरी तलाश रहे युवाओं की संख्या 2 करोड़ 59 लाख थी. सात महीने बाद जुलाई के आखिर तक बेरोजगारों की तादाद घटकर 40 करोड़ 54 लाख हो गई. दूसरी ओर इस दौरान नौकरी ढूंढने वाले लोगों की तादाद भी घटकर 1 करोड़ 37 लाख हो गई. सवाल है कि आखिर, बेरोजगार युवा नौकरियां क्यों नहीं तलाश कर रहे? क्या व्यवस्था और परीक्षा प्रणाली से नाराज हैं. हो सकता है कि उन्हें नौकरियों की चाहत न हो. अपना व्यवसाय खड़ा करना चाहते हों. सरकार ने स्किल इंडिया आदि योजनाओं के तहत उद्यमशीलता को बढ़ावा देने वाली जो योजनाएं शुरू कीं, मुमकिन है कि उनका फायदा ले रहे हैं. यह भी कहा जा सकता है कि बाजार की मांग के मुताबिक और ज्यादा स्किल विकसित करने के लिए आगे की पढ़ाई कर रहे हैं. पर इनसे ज्यादा बड़ी वजह नाउम्मीदी की लगती है. करीब चार साल पहले सत्ता में आने पर मोदी सरकार ने एक करोड़ नौकरियां पैदा करने का वादा किया था. चूंकि इतनी संख्या में नौकरी नहीं आ रही हैं, इसके अलावा प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता का प्रतिशत भी काफी घट गया है, तो हताश युवा अपनी प्रतिभा और ऊर्जा का इस्तेमाल गलत कार्यों में कर सकते हैं.

सीएमआईई के आंकड़ों के मुताबिक नौकरी खोजने वाले बेरोजगारों की तादाद में कमी उत्तर प्रदेश, बिहार और उड़ीसा में आई है. ये कम विकसित राज्य हैं. जिन बेरोजगार युवाओं ने नौकरी की तलाश छोड़ दी है, उन्हें गैर-कानूनी गतिविधियों में आसानी से शामिल किया जा सकता है. ऐसे में संकट है कि युवा आबादी की हताशा कहीं राक्षसी रूप न धारण कर ले. खुद ही नौकरी की तलाश से मुंह मोड़ लेना  देश के लिए सिरदर्द साबित हो सकता है. समस्या यह है कि खेती-किसानी और पारंपरिक पेशों से पढ़े-लिखे युवाओं का मोहभंग हो गया है, डिग्री लेने के बाद उनकी अपेक्षा व्हाइट कॉर्लड जॉब की होती है, पर ऐसी नौकरियों में कमी युवाओं को आसानी से अपराध की तरफ मोड़ देती है.

हाल के वर्षों में एटीएम, बैंकिंग वेबसाइटों की हैकिंग, साइबर अपराधों से लेकर लूटपाट-छीनझपट आदि मामलों में खुलासों में ज्यादातर पढ़े-लिखे युवाओं का पकड़ा जाना यही सब साबित कर रहा है. सोचना होगा कि रोजगार सृजन  के बजाय नौकरियों से जुड़ी परीक्षाओं को आबादी को नौकरी के दरवाजे पर रोकने के उद्देश्य से बेहद कठिन बना दिया जाएगा तो लगेगे कि पूरा तंत्र समस्या का सिर्फ  एक पहलू देख रहा है. दरवाजे पर रोकने की इस परंपरा का दायरा और बढ़ा तो युवाओं को या तो आंदोलन चलाते देखा जाएगा या फिर अपराध की गली में मुड़ते हुए. सवाल है कि क्या इसकी चिंता हमारी सरकारें कर रही हैं, या नहीं.

मनीषा सिंह


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