विस चुनाव : खो गए असली मुद्दे

Last Updated 19 Dec 2017 06:17:49 AM IST

गुजरात में पहले जो कड़े मुकाबले वाला चुनाव लग रहा था, वह आखिर में भाजपा के लिए आसान जीत साबित हुआ.


विस चुनाव : खो गए असली मुद्दे

बेशक, कांग्रेस ने मुकाबला किया, अपने मत प्रतिशत में भी थोड़ा इजाफा किया लेकिन प्रधामंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के गृह प्रदेश में भाजपा को पराजित नहीं कर सकी. हिमाचल प्रदेश में एक और आसान जीत के साथ भाजपा ने उन राज्यों की उस सूची में एक और राज्य शामिल कर लिया है, जो उसने कांग्रेस से छीने हैं. हिमाचल की विजय भाजपा को उसके ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ के एक कदम और करीब ले आई है. बेशक, भाजपा ने दोनों राज्यों में विजय हासिल की है, लेकिन दोनों जगह पार्टी से ज्यादा वहां प्रधानमंत्री मोदी की जीत हैं. चुनाव के दौरान देखने में आया जब कांग्रेस ने भाजपा को कड़ी चुनौती पेश की तो मोदी ने अकेले दम खुद को प्रचार में झोंक कर अपनी पार्टी जीत दिला दी. यह भी नहीं भूलना चाहिए कि मणिशंकर अय्यर जैसे नेताओं ने अपनी टिप्पणी से मोदी को कांग्रेस के खिलाफ अभियान में धार लाने में मदद की.

हिमाचल प्रदेश में भाजपा की जीत को लेकर शायद ही किसी को संशय रहा हो क्योंकि इस राज्य का रिकॉर्ड रहा है कि यह बारी-बारी से सत्ताधारी पार्टी को बदलता रहा है. चूंकि बीते पांच साल से कांग्रेस की सरकार थी, इसलिए इस बार भाजपा की सरकार बनना तय था, लेकिन गुजरात में भाजपा की चुनावी विजय से अनेक लोगों को हैरत हुई है. कारण, वहां भाजपा को अनेक दिक्कतों का सामना तो था, साथ ही, 22 साल से चली आ रही उसकी सत्ता से उपजे असंतोष का भी सामना था. हार्दिक पटेल के पटेल आंदोलन से परेशानी बढ़ गई थी. जिग्नेश मेवाणी के नेतृत्व में दलित आंदोलित थे. 

ओबीसी खासकर ठाकोर मतदाताओं को अल्पेश ठाकोर से भाजपा के खिलाफ काफी हद तक लामबंद कर दिया था. फिर, राज्य में मोदी की मौजूदगी नहीं होने से भी भाजपा समस्या बढ़ गई थी. लेकिन तमाम अड़चनों के बावजूद भाजपा ने गुजरात में एक और जीत हासिल की. हालांकि इसकी सीटों की संख्या में कमी आई. अलबत्ता, इसके मत प्रतिशत में जरूरी थोड़ा इजाफा दर्ज किया गया. यह 47.8 फीसद से मामूली बढ़कर 49 फीसद दर्ज किया गया. पार्टी ने हिमाचल में भी शानदार जीत हासिल की जहां उसे 44 सीटें मिली.

दरअसल, चुनाव अभियान के आखिर के दो सप्ताहों में स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जिस तरीके से आक्रामक प्रचार किया उससे भाजपा के पक्ष में विजयी माहौल बन गया. सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डवलपिंग सोसाइटीज द्वारा मतदान उपरांत किए गए सव्रे से संकेत मिल गया था कि मोदी के अभियान ने मतदाताओं को बड़ी संख्या में भाजपा के पक्ष में लामबंद कर दिया था. इससे चुनाव के ऐन पहले वोट करने संबंधी फैसला करने वाले मतदाता भाजपा के पक्ष में चले गए. मोदी के प्रचार के उपरांत भाजपा के पक्ष में मतदाताओं का झुकाव स्पष्ट देखा जा सकता है.

इस बात पर ध्यान दिया जाना जरूरी है कि गुजरात के करीब 35% मतदाताओं ने मतदान के दो-एक दिन पहले ही इस बाबत फैसला किया था कि किसे वोट करना है. चुनाव अभियान के शुरुआती हफ्तों के दौरान कांग्रेस ने आक्रामक अभियान के साथ बढ़त ले ली थी, और इस तरीके से भाजपा को बैकफुट पर ला दिया था. लेकिन उसकी यह स्थिति आखिर तक बनी रह सकी. नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में आक्रामक प्रचार आरंभ होने पर कांग्रेस का अभियान पटरी से उतर गया. खासकर मोदी पर मणिशंकर अय्यर की टिप्पणी के बाद तो स्थिति ही बदल गई. भाजपा ने इस टिप्पणी के बाद तो गुजरात के सम्मान और अस्मिता का खुलकर कार्ड खेलते हुए कांग्रेस को रक्षात्मक बना दिया. नतीजतन, उसका समूचा चुनाव अभियान पटरी से उतर गया. विभिन्न जाति-समुदायों के हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवाणी, अल्पेश ठाकोर और छोटू वसावा जैसे नेताओं को साथ लेकर कांग्रेस ने इन समुदायों के मतों को पहले की तुलना में बड़ी संख्या में अपने पक्ष में करने में सफलता पाई. लेकिन इससे भी कांग्रेस से चुनाव जीतने के हालात नहीं बन पाए.

कांग्रेस को उम्मीद थी कि पाटीदार मतदाताओं का बड़ा हिस्सा उसे मिलेगा लेकिन चुनावोपरांत  सव्रे से संकेत मिलता है कि 40 फीसद से भी कम पाटीदार मतदाताओं ने ही उसके पक्ष में वोट किया. जिग्नेश मेवाणी से भी कांग्रेस को उतनी मदद नहीं मिली जितनी उसे उम्मीद थी. इसी प्रकार ओबीसी मतदाता भी कांग्रेस और भाजपा के बीच बंट गए. अलबत्ता, पाटीदार मत कम मिलने की भरपाई कांग्रेस ने खासी संख्या में आदिवासी मतदाताओं के वोट पाकर कर ली. पहले भी आदिवासी मतदाता बड़ी तादाद में कांग्रेस के पक्ष में वोट करते रहे हैं. लेकिन इस बार छोटु वसावा कांग्रेस के साथ नहीं होते तो भाजपा शायद कांग्रेस के इस परंपरागत वोट में सेंध लगा देती. बहरहाल, गुजरात में भाजपा की विजय का यह मतलब नहीं है कि राज्य में पार्टी के लिए सब कुछ ठीक है. हिमाचल और गुजरात में बड़ी संख्या में मतदाताओं का सत्तारूढ़ सरकारों के प्रति असंतोष व्यापा हुआ था. विमुद्रीकरण और जीएसटी उनके आक्रोश की प्रमुख वजहें थीं. किसान भी असंतुष्ट थे. युवा भी परेशान हैं. लेकिन दोनों ही जगहों पर कांग्रेस इन वगरे के असंतोष और गुस्से को भाजपा के खिलाफ वोट में तब्दील नहीं कर पाई.

गुजरात में हार्दिक की विशाल रैलियों से भाजपा सरकार को महसूस हो गया था कि पाटीदारों और युवाओं में उसके प्रति बहुत ज्यादा गुस्सा था. लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उनके गुस्से और असंतोष को गुजरात की पहचान और अस्मिता की बात कहकर अपनी पार्टी के खिलाफ वोट में नहीं तब्दील होने दिया. लेकिन अब यही हकीकत है कि गुजरात में भाजपा ने 49 फीसद मत प्रतिशत के साथ चुनाव जीत लिया है, और कांग्रेस 42 फीसद मत पाकर शिकस्त खा बैठी है. हिमाचल प्रदेश में हालांकि कांग्रेस को शिकस्त मिली है, लेकिन यह भी सच है कि उसका मत प्रतिशत 42 फीसद रहा. बेशक, प्रधानमंत्री मोदी ने भाजपा को जीत दिला दी है, लेकिन इसके बावजूद उसके वे युवा मतदाता उससे छिटक चुके हैं, जिनने भाजपा के पक्ष में वोट किया था. 

संजय कुमार


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