आइएस रक्त्तबीज न बनने पाये

Last Updated 18 Dec 2017 04:35:57 AM IST

यह मानने में अब कोई हर्ज नहीं है कि दुनिया में सबसे मजबूत और खूंखार माने जाने वाले आतंकवादी संगठन आइएसआइएस अब संगठन के तौर पर अपनी अंतिम सांसें गिन रहा है.


इराक से आइएस खत्म.

इराक से उसको पूरी तरह खत्म किए जाने की घोषणा वाकई दुनिया के लिए ऐतिहासिक दिन था. इसके पहले 9 जुलाई को मोसुल की आइएस से आजादी की घोषणा भी ऐसी ही ऐतिहासिक घटना थी. जैसे ही इराक के प्रधानमंत्री हैदर अल अबादी ने इस्लामिक स्टेट को इराक से पूरी तरह खदेड़ने का दावा किया पूरा देश खुशियों से झूम उठा. वास्तव में आज की स्थिति में इराकी सेना ने पूरे इराक-सीरिया सीमा को अपने नियंत्रण में ले लिया है. इराक और सीरिया दो ऐसे देश थे जो आतंकवादी संगठन आइएस के केन्द्र हो गए थे और वहीं से उसका प्रमुख अबू बकर अल बगदादी पूरी दुनिया में खिलाफत यानी खलीफा के साम्राज्य की स्थापना के सपने लड़ाकुओं को दिखाता था. निश्चय ही आज की स्थिति में उसका सपना ही ध्वस्त नहीं हुआ, एक समय एक बड़े क्षेत्र के बादशाह की तरह जीने वाले बगदादी और उसके करीबी लड़ाकुओं को छिपने की जगह तलाशनी पड़ रही है.

तो क्या वाकई यह मान लिया जाए कि आइएस का आतंक अब पूरी तरह खत्म होने वाला है? वास्तव में इराक की आइएस पर वर्तमान विजय कोई साधारण घटना नहीं है. आइएस ने 2014 में ही इराक के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया था. बगदाद के उत्तर और पश्चिम में अधिकतर इलाके पर उसका कब्जा था. 2014 में इराक और सीरिया में आइएस का करीब 34 हजार वर्ग मील इलाके पर कब्जा था. इराक के करीब 40 प्रतिशत भाग पर उसका कब्जा था. बगदादी ने इराक और सीरिया के एक बड़े हिस्से को अपना कथित इस्लामी साम्राज्य और खुद को उसका खलीफा घोषित कर रखा था. लगभग एक करोड़ लोगों पर उसका शासन था. मोसुल, तिकरित, फल्लुजा जैसे बड़े शहरों पर उसका कब्जा होने के कारण इराक पंगु देश बन गया था. एक समय ऐसा लगता ही नहीं था कि आएस से इराक कभी मुक्त हो सकेगा. लेकिन यह हो चुका है. वैसे इराक आइएस के खिलाफ जीत की घोषणा पहले ही कर चुका है, लेकिन प्रधानमंत्री और सेना प्रमुख हैदर अल-अबादी ने कहा था कि जब तक रेगिस्तानी इलाके से आइएस का सफाया नहीं होता तब तक ऐसा नहीं कहा जा सकता. इराकी सेना ने अमेरिकी गठजोड़ में और कुर्द लड़ाकों के साथ मिलकर निनवेह और अनबर के बीच अल-जजीरा क्षेत्र को आइएस के कब्जे से मुक्त कराने के लिए बड़ा अभियान छेड़ा था.

सीरिया से सटे रेगिस्तानी इलाके में आइएस की हार के साथ ही इराक में इस आतंकी संगठन के कब्जे में अब कोई इलाका नहीं बचा है. सीरिया सीमा के नजदीक टिगरिस और यूफरेटिस नदियों के बीच इस बंजर इलाके में आबादी बहुत कम होने से भी सेना को सफाई अभियान में काफी सहायता मिली. इराक के करीबी सहयोगी ईरान ने पिछले महीने ही आइएस पर जीत की घोषणा कर दी थी. इराक ही नहीं, सीरिया में भी आइएस लगभग खात्मे के करीब है. ऐसा लगता है कि जल्द ही सीरिया भी आइएस मुक्त हो जाएगा.

सीरिया के शहर रक्का से लगभग एक वर्ष की लड़ाई के बाद आइएस कब्जा पिछले अक्टूबर में ही खत्म हो गया. आइएस ने 2014 में ही रक्का पर भी कब्जा किया था और संगठन के अबू बकर अल बगदादी ने इसे अपनी राजधानी का दर्जा दिया था. इसके आधार पर यह माना जा सकता है कि आइएस पर विजय पाने का विश्व का सपना अब शीघ्र ही पूरा होने वाला है. ध्यान रखने की बात यह भी है कि अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता ने लिखित बयान में कहा है कि सुरक्षा बलों, अर्थव्यवस्था और स्थायित्व में मदद के लिए इराक के साथ हमारा सहयोग बरकरार रहेगा ताकि आइएस फिर दोबारा इराक की जनता को न परेशान कर पाए और न इराक की धरती को अपने लिए इस्तेमाल कर पाए.



वास्तव में कोई इसे अमेरिका की इराक में बने रहने की नीति कह सकता है. किंतु एक बार आतंकवादियों को खत्म कर देना या खदेड़ देना ही काफी नहीं है. इसके बाद जिन क्षेत्रों को इन दरिंदों ने नष्ट कर दिया है, उनके पुनर्निर्माण से लेकर वहां से भागे लोगों के पुनर्वास तथा फिर से आतंकवादियों के सिर उठाने से रोकने के लिए कई स्तरों पर सशक्तता से काम करने की आवश्यकता है. इसलिए अमेरिका की इस नीति का तत्काल समर्थन किया जा सकता है. 2014 में जब इस्लामिक स्टेट ने इराक के दूसरे सबसे बड़े शहर मोसुल को अपने कब्जे में लिया था, तो वहां जो नागरिक उससे भिन्न राय वाले दिखते ही उनकी नृशंसता से हत्या करने लगा. इराक सरकार की सुन्नी विरोधी नीतियों से भी आइएस को कब्जा करने में सहायता मिली. पूरा मोसुल शहर बरबाद हो गया. वस्तुत: जिस शहर में भी आइएस के चरण पड़े वही बरबाद हो गया.  इराक और सीरिया से एक करोड़ से ज्यादा लोगों को अपना घरबार छोड़कर भागना पड़ा जिनमें पता नहीं कितने हजार या लाख समुद्र में डूबकर मर गए. इसलिए आइएस के कब्जे के अंत से ही लक्ष्य पूरा नहीं होता.

तो इराक और सीरिया दोनों जगह पुनर्निर्माण तथा पलायन कर गए लोगों को वापस बुलाकर बसाने की बहुत बड़ी चुनौती है. इसमें पूरी दुनिया का सहयोग चाहिए. इराक में हाल में शिया-सुन्नी के बीच जो एकता देखने को मिली है, वह भी उम्मीद पैदा करने वाली है. किंतु, इन सबसे अलग आइएस के खतरे को पूरी तरह खत्म मान लेना उचित नहीं होगा. हां, संगठन के स्तर पर उसका खात्मा अवश्य हो रहा है. बावजूद इसके सच यह है कि बगदादी ने हिंसा और नफरत की जो विचारधारा फैलाई वह विचारधारा मरा नहीं है. दुर्भाग्य की बात है कि अभी भी दुनिया इस पर एकजुट नहीं है. आइएस के जो लड़ाके बचे हुए हैं, वे क्या करेंगे, यह प्रश्न दुनिया के सामने है. हो सकता है वे गुरिल्ला युद्ध आरंभ करें या फिर अलग-अलग देशों में हमला करें. आइएस ने जिस तरह लोन वूल्फ यानी अकेले योजना बनाने से लेकर हमला करने का सूत्र दिया वह दुनिया भर में फैल चुका है.

 

 

अवधेश कुमार


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