यूनेस्को : कुंभ की स्वीकार्यता

Last Updated 14 Dec 2017 05:52:09 AM IST

यह भारत राष्ट्र के लिए गर्व की बात है कि कुंभ मेले को संयुक्त राष्ट्र संघ के शैक्षणिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन ‘यूनेस्को’ ने अपनी प्रतिष्ठित मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहरों की सूची में शामिल कर लिया है.


यूनेस्को : कुंभ की स्वीकार्यता

यूनेस्को के अमूर्त सांस्कृतिक धरोहरों के दायरे में मौखिक परंपराओं और अभिव्यक्तियों, प्रदर्शन कलाओं, सामाजिक रीतियों-रिवाजों और ज्ञान इत्यादि को ही सम्मिलित किया जाता है.
हाल ही में यूनेस्को ने भारत की सांस्कृतिक विरासत योग और नवरोज को भी अमूर्त सांस्कृतिक धरोहरों की सूची में शामिल किया है. इस तरह कुंभ मेले और योग समेत भारत की कुल 14 धरोहर मसलन छाऊ नृत्य, लद्दाख में बौद्ध भिक्षुओं का मंत्रोच्चारण, संकीर्तन-मणिपुर में गाने-नाचने की परंपरा, पंजाब में ठठेरों द्वारा तांबे व पीतल के बर्तन बनाने का तरीका और रामलीला इत्यादि यूनेस्को की सूची में शामिल हो चुकी हैं.
यूनेस्को ने कुंभ मेले को अपनी सांस्कृतिक धरोहरों की सूची में शामिल करने का जो तक दिया है, उसके मुताबिक प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में लगने वाला कुंभ मेला धार्मिक उत्सव के तौर पर सहिष्णुता और समग्रता को रेखांकित करता है. यह खासतौर पर समकालीन दुनिया के लिए अनमोल है. कुंभ मेले को लेकर यूनेस्को की यह उदात्त व पुनीत भावना इसलिए भी सारगर्भित है कि कुंभ हिन्दुओं के लिए ही महज एक धार्मिक उत्सव भर नहीं है बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक विरासत की एक महान पूंजी भी है, जिसमें त्याग, तपस्या और बलिदान का भाव निहित है. दुनिया भर के करोड़ों लोग कुंभ मेले की पवित्रता से अभिभूत होकर खींचे चले आते हैं.

शास्त्रों में कहा गया है कि ‘माघे वृष गते जीवे मकरे चंद्र भाष्करौ, अमवस्याम तदा कुंभ प्रयागे तीर्थ नायके.’ यानी माघ का महीना और गुरु, वृष राशि पर होते हैं. सूर्य और चंद्रमा मकर राशि पर होते हैं और अमावस्या होती है तब प्रयागराज तीर्थ में कुंभ पर्व पड़ता है. उल्लेखनीय है कि प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन व नासिक इन चारों स्थान पर प्रति बारहवें वर्ष कुंभ महापर्व का आयोजन होता है. प्रयाग में गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम, हरिद्वार में गंगा, उज्जैन में शिप्रा और नासिक में गोदावरी के तट पर कुंभ महापर्व का आयोजन होता है. हरिद्वार और प्रयाग में दो कुंभ पवरे के बीच 6 वर्ष के अंतराल में अर्धकुंभ भी लगता है. शास्त्रीय और खगोलीय गणनाओं के अनुसार कुंभ महापर्व की शुरुआत मकर संक्रांति के दिन से होता है और कई दिनों तक चलता है. मकर संक्रांति के होने वाले इस योग को ‘कुंभ स्नान योग’ कहते हैं. शास्त्रों के अनुसार यह दिन मांगलिक होता है और ऐसी मान्यता है कि इस दिन पृथ्वी से उच्च लोकों के द्वार खुलते हैं और कुंभ में स्नान करने से आत्मा को जीवन-मरण के बंधन से मुक्ति मिल जाती है. शास्त्रों में कुंभ स्नान की तुलना साक्षात स्वर्ग दर्शन से की गई है. पौराणिक मान्यता है कि महाकुंभ के दरम्यान गंगा का जल औषधिपूर्ण और अमृतमय हो जाता है और इसमें स्नान करने वाले तमाम विकारों से मुक्त हो जाते हैं.
कुंभ मेले के इतिहास में जाएं तो इसका प्रारंभ कब हुआ कोई निचित प्रमाण नहीं है. चूंकि वैदिक और पौराणिक काल में इतिहास लिखने की परंपरा नहीं रही और कुंभ तथा अर्धकुंभ स्नान में आज की तरह कोई प्रशासनिक व्यवस्था का स्वरूप भी नहीं था इसलिए कुंभ मेले का कोई लिखित ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं है. लेकिन शास्त्रों में कुंभ मेले का विशद वर्णन उपलब्ध है. गुप्त काल में कुंभ के सुव्यवस्थित होने के साक्ष्य उपलब्ध हैं. जहां तक प्रमाणिक तथ्यों का सवाल है तो शिलादित्य हषर्वर्धन के समय प्रयाग की महत्ता के साक्ष्य उपलब्ध हैं. हालांकि शास्त्रों में जाएं तो कुंभ से जुड़ी कई कथानकें भारतीय जनमानस में व्याप्त हैं. इनमें सर्वाधिक मान्य कथानक देव-दानवों द्वारा समुद्र मंथन से प्राप्त अमृत कुंभ से अमृत बूंदे गिरने को लेकर है.
ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु की सलाह पर दैत्यों को पराजित करने के लिए देवताओं ने समुद्र मंथन कर अमृत निकाला और अमृत कला पर कब्जा जमाने की होड़ में कला से अमृत की कुछ बूंदे प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में गिर पड़ी. इसी वजह से यहां कुंभ लगता है. कुंभ की सारगर्भित महत्ता, भव्यता और पवित्रता के परिप्रक्ष्य में ही ‘यूनेस्को’ ने इसे अपनी प्रतिष्ठित मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहरों की सूची में शामिल कर इसके महत्त्व को दुनिया भर में स्थापित किया है.

रीता सिंह


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