गुजरात : फिर उसी डाल पर

Last Updated 12 Dec 2017 04:21:05 AM IST

आखिरकार पाकिस्तान के विदेश विभाग के प्रवक्ताओं को भारत को इसका ताना देने का मौका मिल ही गया कि वह अपने यहां के चुनाव में नाहक पाकिस्तान को न घसीटे; अपने बल-बूते पर ही लड़े.


गुजरात : फिर उसी डाल पर

बेशक, सत्ताधारी पार्टी के प्रवक्ता और केंद्रीय विधि मंत्री, रविशंकर प्रसाद ने बिना देरी किए, इसका खंडन किया है कि सत्ताधारी पार्टी ने और वास्तव में खुद प्रधानमंत्री ने, गुजरात के चुनाव में पाकिस्तान को घसीटने की कोशिश की है. उन्होंने पाकिस्तान को चेताया है कि वह भारत को नसीहत देने की कोशिश न करे!  सचाई यह है कि खुद रविशंकर प्रसाद भी अपनी लंबी किंतु उखड़ी-उखड़ी सी सफाई में कम से कम इससे इनकार नहीं कर पाए कि गुजरात के दूसरे चरण के चुनाव के लिए अनेक जनसभाओं में, प्रधानमंत्री मोदी ने प्रत्यक्ष रूप से पाकिस्तान और पाकिस्तानी शासन पर, गुजरात के चुनाव में दखल देने और वास्तव में खुद प्रधानमंत्री के खिलाफ हस्तक्षेप करने के आरोप लगाए हैं. चूंकि सत्ताधारी पार्टी प्रधानमंत्री द्वारा ऐसे आरोप लगाए जाने से इनकार करने में असमर्थ है, इन आरोपों को सच सिद्ध करने से कम किसी भी खंडन से पाकिस्तान की आपत्ति का जवाब नहीं दिया जा सकता है. और भाजपा ठीक यही करने में असमर्थ है.

इसकी वजह उस आयोजन की बुनियादी प्रकृति में है, जिसे पाकिस्तानी शासन के साथ कांग्रेस नेताओं की षड्यंत्रकारी बैठक की तरह पेश कर यह दिखाने की कोशिश की थी और गुजरात में उनके और उनकी पार्टी के खिलाफ उनकी प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस ने पाकिस्तान के साथ सांठगांठ कर ली है. प्रधानमंत्री ने षड्यंत्र के अपने इस प्रचार के लिए जान-बूझकर, रात्रिभोज-सह कूटनीतिज्ञ मुलाकात के एक पूरी तरह से निजी आयोजन को, न सिर्फ एक षड्यंत्री बैठक बना दिया बल्कि बैठक में हिस्सा लेने वालों की सूची में भी इस तरह काट-छांट कर दी, जिससे इसे गुप्त बैठक बनाने में आसानी हो. प्रधानमंत्री ने आरोप लगाया कि कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर के घर पर हुई बैठक में पाकिस्तान के पूर्व-विदेश मंत्री तथा वर्तमान उच्चायुक्त के साथ, भारत के पूर्व-राष्ट्रपति तथा पूर्व-प्रधानमंत्री, मनमोहन सिंह शामिल हुए. यह मानना मुश्किल है कि प्रधानमंत्री का खुफिया विभाग इतना निकम्मा है कि उक्त आयोजन में शामिल हुए अन्य लोगों के नामों के बारे में उसने प्रधानमंत्री को जानकारी ही नहीं दी. वरना इस आयोजन में पूर्व-सेनाध्यक्ष, जनरल अरुण प्रकाश से लेकर, जाने-माने पाकिस्तान विशेषज्ञ चिन्मय गरेखान समेत करीब दर्जन भर, पाकिस्तान के साथ संबंधों का अनुभव रखने वाले कूटनीतिज्ञों तक की उपस्थिति, इसके इरादों के बारे में दूर-दूर तक किसी भी संदेह की गुंजाइश नहीं छोड़ती है. हां! अगर पाकिस्तान के साथ संबंधों की चर्चा मात्र को षड्यंत्र का अपराध बताया जा रहा हो तो बात दूसरी है. लेकिन, उस स्थिति में कांग्रेस के प्रवक्ता यह सवाल पूरी तरह से वाजिब हो जाता कि अगर ऐसा ही है तब मोदी सरकार पाकिस्तान के उच्चायुक्त को वापस क्यों नहीं भेज देती है?
प्रधानमंत्री ने अपनी जनसभाओं में यह आरोप लगाया कि उक्त गुप्त बैठक के अगले ही दिन, मणिशंकर अय्यर ने उन्हें ‘नीच’ कहा था! अय्यर की टिप्पणी को उनके क्षमा मांगने के बावजूद, खुद अपने यानी ‘गुजरात-पुत्र’ के अपमान से गुजरात के अपमान तक बनाकर भरपूर दुहने के बाद, उसे पाकिस्तान के साथ जोड़ने पर भी प्रधानमंत्री ने बस नहीं की. इससे आगे बढ़कर मोदी ने पाकिस्तान सेना के पूर्व महानिदेशक, अरशद रफीक की तथाकथित फेसबुक पोस्ट को इसके सबूत के तौर पर पेश किया कि पाकिस्तान, गुजरात के चुनाव में हस्तक्षेप कर रहा था. जनरल रफीक की फेसबुक पोस्ट में यह कहा बताया गया है कि वरिष्ठ कांग्रेस नेता अहमद पटेल को गुजरात का अगला मुख्यमंत्री होना चाहिए! यहां पहुंच कर पाकिस्तान के खिलाफ आरापों का असली मकसद साफ हो जाता है. खुद प्रधानमंत्री के मुंह से हम यह कहा जाता हुआ सुन रहे थे कि पाकिस्तान, गुजरात में एक मुसलमान को मुख्यमंत्री बनवाने के लिए हस्तक्षेप कर रहा था. पाकिस्तान और हिंदुस्तानी मुसलमानों का हिंदुत्ववादियों द्वारा इस तरह का समीकरण किया जाना, एक जाना-पहचाना पैंतरा है. गुजरात के चुनाव में इसका विस्तार, प्रमुख विपक्षी पार्टी, कांग्रेस तक किया जा रहा है, ताकि हिंदुओं को इस आधार पर गोलबंद किया जा सके कि कांग्रेस तो मुसलमान को गुजरात का मुख्यमंत्री बनाने जा रही है. इससे पहले अहमदाबाद में पटेल के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार होने के पोस्टर लगे थे.
दरअसल, 2002 से गुजरात में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का जो इतिहास रहा है, उसकी पृष्ठभूमि में भाजपा के शीर्ष स्तर से इस तरह का प्रचार करने के अर्थ को आसानी से समझा जा सकता है. इसी आशंका से मुख्य विपक्षी पार्टी, कांग्रेस अब तक अपने चुनाव प्रचार में इस संबंध में अतिरिक्त रूप से सचेत रही है कि उसे मुसलमानों के साथ नहीं जोड़ दिया जाए. राहुल गांधी के लिए ‘हम भी हिंदू’ छवि गढ़ने से लेकर, चुनाव प्रचार में मुसलमानों तथा खास तौर पर 2002 के मुस्लिम-विरोधी नरसंहार का जिक्र तक न करने से लेकर, अहमद पटेल की नेतृत्व की दावेदारी के अति-तत्पर खंडन तक, सारे पैंतरे इसी के लिए अपनाए गए हैं. लेकिन अब दिखाई दे रहा है कि कांग्रेस के ये सारे बचाव-उपाय नाकाफी साबित होने जा रहे हैं. शुरुआती चरण से ही मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने अपना चुनाव प्रचार गुजरात के विकास के मुद्दे को छोड़कर, मुसलमानहीन-गुजराती अस्मिता, गुजराती गौरव आदि की ओर ज्यादा से ज्यादा मोड़ना शुरू कर दिया था. चुनाव प्रचार के मध्य-भाग तक आते-आते सोमनाथ, राहुल के मंदिरों में जाने तथा अयोध्या में राम मंदिर तथा राम में आस्था तक के सवाल उछालने के जरिए, हिंदू होने के नाम पर गुजरातियों के ध्रुवीकरण की कोशिशें शुरू हो गयीं. और गुजरात में मतदान का पहला चरण हो जाने के बाद, जिसमें खास तौर पर पाटीदारों की बगावत ने भाजपा की चिंताएं बढ़ा दी हैं, अब पाकिस्तान और मुसलमान के समीकरण के जरिए, बहुसंख्यक सांप्रदायिकता के नारों का खुला खेल शुरू हो गया है. इसके चक्कर में अगर दुनिया भर में भारत की भद्द पिटती है तो भाजपा की बला से.

राजेन्द्र शर्मा


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