प्रतिवाद : हिन्दुत्व और राहुल

Last Updated 13 Dec 2017 05:28:46 AM IST

राहुल गांधी के सोमनाथ मंदिर में दर्शन और दर्शनार्थियों के लिए रखी गई पंजिका में उनके नाम की प्रविष्टि पर कुछ लोगों ने हिन्दुत्व आधारित उनकी पहचान पर उंगली उठाई है.


प्रतिवाद : हिन्दुत्व और राहुल

इस मामले में राहुल को भी वही सब देखना पड़ा है, जैसा उनके दादा फिरोज गांधी और दादी इंदिरा गांधी को मार्च, 1942 में अपनी सगाई के समय भोगना पड़ा था-आलोचना, तिरस्कार और आक्षेप. उनके विवाह की निंदा कुछ भ्रमित लोगों ने फिरोज गांधी के धर्म के आधार पर की थी, जो फारसी धर्म को मानने वाले थे.

अनेक लोगों को पसंद नहीं था कि हिन्दू धर्मानुयायी इन्दिरा पारसी के साथ विवाह करें.  उन दिनों महात्मा गांधी को तमाम ऐसे पत्र मिले थे, जिनमें फिरोज की बेतुकी आलोचना करते हुए तमाम लानत-मलामत की गई थीं. इन्दिरा और फिरोज के विवाह पर नापसंदगी जाहिर की गई थी. गांधी जी बेहद दुखी थे कि नीच मानसिकता वाले लोग फिरोज के धर्म के आधार पर इन्दिरा और फिरोज की आलोचना करने से बाज नहीं आ रहे थे. उन्होंने इस बाबत 2 मार्च, 1942 को एक लेख-‘इन्दिरा नेहरू’ज अंगेजमेंट’ लिखा.

यह लेख ‘कलक्टिड वर्क्‍स ऑफ महात्मा गांधी’ के वॉल्यूम 82 में देखा जा सकता है. इसमें उन्होंने फिरोज को धार्मिक विश्वास के आधार पर निशाना बनाए जाने पर चिंता जाहिर की है. गांधी जी का कहना था कि फिरोज और इन्दिरा धर्म के आधार पर परस्पर निकट नहीं आए थे, बल्कि उनके बीच परस्पर आकषर्ण और सम्मानजनक सामीप्य उस समय पनपा जब फिरोज ने इन्दिरा की मां कमला नेहरू की उस समय बड़े मनोयोग से सेवा की जब वह अस्वस्थ थीं. यूरोप में इन्दिरा के बीमार पड़ने पर उनकी भी देखभाल की. गांधी जी ने अपने लेख में इस बात का उल्लेख किया है कि ‘समय के साथ ऐसे संबंध प्रगाढ़ होते चले जाते हैं, जो समाज को नई दिशा प्रदान करते हैं.’

इसलिए उन्होंने फिरोज और इन्दिरा की आलोचना करने वालों को अपने गुस्से और क्षोभ को परे धकेल कर इस युगल को आशीर्वाद देने का आग्रह किया था. उन्हें दुख था कि ‘अभी हम परस्पर सहिष्णुता के उस मुकाम तक नहीं पहुंच पाए हैं, लेकिन उम्मीद जतलाई थी कि..जैसे-जैसे सभी धर्मो के प्रति सहिष्णुता बढ़ेगी वैसे-वैसे ऐसे विवाहों का स्वागत होने लगेगा.’ आज विधर्मियों के विवाहों पर लव जिहाद के नाम पर होने वाले शोर-शराबे,  घृणा और हिंसा को गांधी जी के विचारों के पैमाने पर जांच-परखना होगा ताकि कोई वैमनस्य न फैलने पाए.

दरअसल, महात्मा गांधी ने उस लेख में प्रतिपादित किया था कि ‘कोई संकीर्ण धर्म जो तार्किक नहीं है, भविष्य में उभरने वाले उस समाज के सामने नहीं टिका रह पाएगा जो मूल्य और प्रकृति के मद्देनजर धन-दौलत, परिवेश-विरासत या जन्म के बजाय प्रतिभा और योग्यता से संचालित होगा.’ जहां 1940 के चालीस के दशक में इन्दिरा नेहरू और फिरोज गांधी को धर्म के आधार पर गुस्से का सामना करना पड़ा था, तो इक्कीसवीं सदी के भारत में उनके पौत्र को अपने विश्वास और धार्मिक पहचान को लेकर शरारती सवाल का सामना करना पड़ रहा है. मात्र इसलिए कि वह  सोमनाथ मन्दिर गए और वहां मन्दिर की विशेष पंजिका में उनका नाम दर्ज हुआ.

जो लोग राहुल गांधी के धार्मिक विश्वास पर प्रश्न उठा रहे हैं, वे संकीर्ण दृष्टि के शिकार हैं, और हिन्दुत्व के व्यापक फलक से उनका कुछ लेना देना नहीं है. ऐसा आचरण हिन्दुत्व का नकार है. अपने लेख में गांधी जी ने स्पष्ट कहा था, ‘हिन्दुत्व की मेरी अवधारणा में हिन्दू कोई संकीर्ण मजहब नहीं है. यह प्राचीन काल से जारी महान क्रांतिकारी प्रक्रिया रही है, और पारसी, यहूदी, ईसाई और मुस्लिम धर्मो के साथ ही नानक और अन्य धर्माचायरे, जो याद पड़ते हों, की शिक्षाओं को बढ़कर स्वीकारती है. जिन लोगों ने भी राहुल के सोमनाथ मन्दिर में दर्शन पर सवाल उठाए हैं, उन्हें आत्मचिन्तन करना चाहिए. स्वयं से पूछना चाहिए कि कहीं वे संकीर्ण धार्मिक सोच के तो शिकार नहीं हैं, उस शानदार हिन्दुत्व से दूर नहीं है, जो सभी मतो-विश्वासों का खुले दिल से स्वागत करता है.

दरअसल, राहुल का कहा जाना कि वे भगवान शिव के उपासक हैं, नेहरू के उन उद्गार के अनुरूप है, जो उन्होंने तारापुर परमाणु संयंत्र को राष्ट्र को समर्पित करते हुए व्यक्त किए थे. जरूरी है कि संकीर्णता को परे धकेला जाए. धार्मिक स्थल पर दर्शनार्थियों के धर्म या विश्वास को व्यापक हिन्दुत्ववादी सोच के बरक्स देखा जाना चाहिए. इसी सोच के चलते आजादी के संघर्ष के दौरान राष्ट्रीय नेतृत्व को नया दृष्टिकोण मिला था, जिससे धर्मनिरपेक्ष मूल्य मजबूत हुए और भारत का विचार घनीभूत हुआ.

सत्यनारायण साहू


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