ब्रह्मपुत्र : जीवन रेखा बचाना जरूरी

Last Updated 12 Dec 2017 04:16:16 AM IST

ब्रह्मपुत्र मूल के तिब्बती हिस्से में अपने हिस्से में अपनी हरकतों को लेकर चीन एक बार फिर विवाद में है.




ब्रह्मपुत्र : जीवन रेखा बचाना जरूरी

हालंकि यह पहली बार नहीं है कि तिब्बती हिस्से वाले ब्रह्मपुत्र नद पर चीन की अनैतिक हरकतों को लेकर विवाद खड़ा हुआ हो. चीन पर इससे पहले भी बांध निर्माण के अलावा भारत आने वाले तिब्बती प्रवाहों में परमाणु कचरा डालने का आरोप भी लग चुका है. इस बार लगा आरोप ज्यादा संगीन इसलिए है कि इस बार मामला बांध निर्माण का न होकर, प्रवाह के मार्ग को ही चीन की ओर मोड़ लेने हेतु 1000 किलोमीटर लंबी सुरंग बनाने को लेकर है. यह सुरंग तिब्बत से लेकर चीन के ज़िगजियांग क्षेत्र के तकलीमाकन रेगिस्तान तक जायेगी.

भारत के जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग द्वारा पेश तथ्यों के मुताबिक प्रयोगशाला में उच्च तकनीकी फोटोमीटर के जरिए जांचे गये नमूनों में निनांग का गंदलापन 0 से 5 के मान्य स्तर की तुलना में 425 पाया गया. विभाग ने आशंका व्यक्त की कि यदि सियांग नदी और ब्रह्मपुत्र नद में गंदलेपन का यह स्तर कायम रहा, तो जलीय जीव व वनस्पतियों की भारी मात्रा में क्षति हो सकती है. ज़िला आयुक्त ने चेतावनी जारी की कि यह स्थिति बनी रही तो सियांग का जल उपयोग लायक ही नहीं बचेगा. हालांकि अपनी प्रारम्भिक जांच में केन्द्रीय जल संसाधन व नदी विकास मंत्रालय सियांग और ब्रह्मपुत्र में आये कीचड़ व नदी मार्ग में पैदा हुई बाधा का कारण 17 नवम्बर को तिब्बत में आये भूकंप को बताया था; किंतु असम सरकार के जल संसाधन मंत्री केशव गोगोई द्वारा ब्रह्मपुत्र के पानी को ‘पीने लायक नहीं’ घोषित किए जाने के बाद केन्द्र ने जांच के लिए विशेषज्ञ दल भेजने की बात की है और विदेश मंत्रालय द्वारा इस मसले को चीनी पक्ष के समक्ष उठाने के संकेत दिए गये हैं. विशेषज्ञों के मुताबिक, इस स्थिति की वजह भारतीय हिस्से में हुई कोई कारगुजारी भी हो सकती है. मसले को लेकर वजह या कूटनीति चाहे  जो हो, हक़ीकत यही है कि ब्रह्मपुत्र को भारत आने से पूर्व ही चीनी भू-भाग की ओर से मोड़ लेने का ख्याल अपने आप में काफी चिंताजनक और खतरनाक है. इसकी अनदेखी अनुचित होगी.

ब्रह्मपुत्र का मूल स्रोत, तिब्बत के आंगसी ग्लेशियर में स्थित है. ब्रह्मपुत्र को इसके तिब्बती भू-भाग में ‘सांगपो’ नाम से जाना जाता है. तिब्बत और भारत के हिस्से में कई प्रवाह ब्रह्मपुत्र से मिलते हैं. सियांग उनमें से एक है. ब्रह्मपुत्र का विशाल प्रवाह भारत में 918 किलोमीटर और बांग्लादेश में 363 किलोमीटर की तुलना में यह प्रवाह तिब्बत में ज्यादा लंबाई (1625 किलोमीटर) तय करता है. एक विशाल और वेगवान प्रवाह होने के कारण ही ब्रह्मपुत्र  को नदी न कहकर, नद कहा जाता है. खासियत यह कि ब्रह्मपुत्र, चार हज़ार फीट की ऊंचाई पर बहने वाला दुनिया का एकमात्र प्रवाह है. जल की मात्रा के आधार पर देखें, तो भारत में सबसे बड़ा प्रवाह ही है. वेग की तीव्रता (19,800 क्यूबिक मीटर प्रति सेकेण्ड) के आधार पर देखें, तो ब्रह्मपुत्र दुनिया का पांचवां सबसे शक्तिशाली जलप्रवाह है. बाढ़ की स्थिति में यह ब्रह्मपुत्र के वेग की तीव्रता एक लाख क्यूबिक मीटर प्रति सेकेण्ड तक जाते देखा गया है. ब्रह्मपुत्र की औसत गहराई 124 फीट और अधिकतम गहराई 380 फीट आंकी गई है. ब्रह्मपुत्र, जहां एक ओर दुनिया के सबसे बड़े बसावटयुक्त नदद्वीप-माजुली की रचना करने का गौरव रखता है, वहीं एशिया के सबसे छोटे बसवाटयुक्त नदद्वीप उमानंद की रचना का गौरव भी ब्रह्मपुत्र के हिस्से में ही है. सुंदरबन, दुनिया का सबसे बड़ा डेल्टा क्षेत्र है. सच्ची बात यह है कि इतना बड़ा डेल्टा क्षेत्र निर्मिंत करना अकेले गंगा के बस का भी नहीं था. ब्रह्मपुत्र ने गंगा के साथ मिलकर सुंदरबन का निर्माण किया.

असलियत यह है  कि ब्रह्मपुत्र, पूर्वोत्तर भारत की संस्कृति भी है, सभ्यता भी और अस्मिता भी. ब्रह्मपुत्र, पूर्वोत्तर भारत की लोकास्थाओं में भी है, लोकगीतों में भी और लोकगाथाओं में भी. चूंकि एक नद के रूप में ब्रह्मपुत्र एक भौतिकी भी है, भूगोल भी, जैविकी भी, रोज़गार भी, जीवन भी, आजीविका भी, संस्कृति और सभ्यता भी. ब्रह्मपुत्र का यात्रा मार्ग इसका जीता-जागता प्रमाण है. हम ब्रह्मपुत्र नद को पूर्वोत्तर भारत की एक ऐसा नियंता कह सकते हैं, जिसके बगैर पूर्वोत्तर भारत की समृद्धि की कल्पना का चित्र अधूरा ही रहने वाला है. अत: ब्रह्मपुत्र मूल पर चीन की अनैतिक हरकतों की अनदेखी एक ऐसी भूल होगी; जिसकी भरपाई पूवोत्तर भारत के लिए केन्द्र सरकार का भेजा समूचा बजट और योजनाएं भी मिलकर न कर सकेंगी.

अरुण तिवारी


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