प.एशिया शांति भंग या यथास्थिति
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रपं द्वारा यरुशलम को इजरायल की राजधानी के रूप में मान्यता देने के फैसले से पूरे अरब जगत में बावेला मच गया है.
प.एशिया शांति भंग या यथास्थिति |
ट्रंप ने पत्रकार वार्ता बुलाकर यह घोषणा की कि अमेरिका अपने दूतावास को तेलअवीव से यरूशलम में स्थानांतरित कर रहा है. उन्होंने अमेरिकी प्रशासन को अपना दूतावास स्थानांतरित करने की प्रक्रिया तुरंत शुरू करने को कहा है. इस फैसले का अरब लीग में शामिल 57 देशों ने विरोध किया है. तुर्की, सीरिया, मिस्र, सऊदी अरब, जॉर्डन, ईरान समेत 10 खाड़ी देशों ने अमेरिका को चेतावनी दी है. चीन, रूस, जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन आदि देशों ने भी इसे तनाव बढ़ाने वाला कदम बताया है. इन्होंने पश्चिम एशिया में नए सिरे से जंग छेड़ने की भी चेतावनी दी है. अमेरिका के मित्र माने जाने वाले सऊदी अरब के किंग सलमान ने ट्रंप से कहा है कि यह विश्व भर के मुस्लिमों को भड़काएगा. मिस्र के राष्ट्रपति अब्दुल फतह अल-सीसी ने ट्रंप से क्षेत्र में हालात खराब न करने की अपील की है. फिलिस्तीन ने तो यहां तक कह दिया है कि इस कदम के बाद पश्चिमी एशिया में शांति की प्रक्रिया खत्म हो गई है.
लेकिन ट्रंप बिल्कुल अप्रभावित हैं. उनका कहना है, 'यह शांति के लिए उठाया गया कदम है जो वर्षो से रुका हुआ था. यरूशलम पर इजरायल का अधिकार है. यह वास्तविकता के अलावा और कुछ नहीं है.' इससे लगता नहीं कि वे पीछे हटने वाले हैं. विरोधी विश्लेषक कह रहे हैं कि ट्रंप ने करीब सात दशकों की अमेरिका की विदेश नीति और इजरायल व फिलिस्तीन के बीच शांति प्रक्रिया को तोड़ते हुए यह विवादित फैसला लिया है. यहां यह बताना जरूरी है कि ट्रंप ने केवल अमेरिका द्वारा पूर्व में लिए गए निर्णय को अमल में लाया है. अमेरिकी दूतावास को तेलअवीव से यरुशलम में स्थानांतरित करने के लिए बिल क्लिंटन के कार्यकाल में 1995 में ही अमेरिकी कांग्रेस में कानून पारित हुआ. इजरायल ने नए दूतावास के लिए 99 साल के लिए एक डॉलर सालाना किराये पर अमेरिका को यरुशलम में जमीन भी उपलब्ध कराई. लेकिन सभी अमेरिकी राष्ट्रपति इसे टालते रहे.
भूमध्य और मृत सागर से घिरा यरुशलम एक ऐतिहासिक शहर है. हिब्रू में इसे यरुशलाइम और अरबी में अल-कुद्स के नाम से जाना जाता है. यरुशलम की आबादी 8.82 लाख है. शहर में 64 प्रतिशत यहूदी, 35 प्रतिशत अरबी और एक प्रतिशत अन्य धर्मों के लोग रहते हैं. शहर का क्षेत्रफल 125.156 वर्ग किमी है. इस पर इजरायल के साथ फिलिस्तीन भी दावा जताता है. 1947 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा यरुशलम के विभाजन की योजना रेखांकित की गई थी. 1948 में इजरायल के आजाद होने के एक वर्ष बाद शहर का विभाजन हुआ. 1949 में युद्ध समाप्त होने पर आर्मिंटाइस सीमा खींची गई. इससे शहर का पश्चिमी हिस्सा इजरायल और पूर्वी हिस्सा जॉर्डन के हिस्से आया. लेकिन 1967 में हुए छह दिनी युद्ध में इजरायल ने जॉर्डन से पूर्वी हिस्सा भी जीत लिया. तब से शहर को इजरायली प्रशासन चला रहा है.
फिलिस्तीन पूर्वी यरुशलम को भविष्य की अपनी राजधानी के रूप में देखता है. 1980 में इजरायल ने यरुशलम को अपनी राजधानी बनाने का ऐलान किया था. सुरक्षा परिषद ने एक प्रस्ताव पास करके पूर्वी यरूशलम पर इजरायल के कब्जे की निंदा की. यही वजह है कि यरुशलम में किसी भी देश का दूतावास नहीं है. जो भी देश इजरायल को मान्यता देते हैं, उनके दूतावास तेल अवीव में हैं. तेल अवीव में 86 देशों के दूतावास हैं. हालांकि 1980 से पहले यरुशलम में नीदरलैंड और कोस्टा रिका जैसे देशों के दूतावास थे. लेकिन 2006 तक देशों ने अपना दूतावास तेलअवीव स्थानांतरित कर दिया. अंतरराष्ट्रीय समुदाय का एक वर्ग यरुशलम पर इजरायल के आधिपत्य का विरोध करता आया है.
इस शहर के धार्मिंक महत्त्व का भी यहां उल्लेख करना जरुरी है. मुस्लिम, यहूदी और ईसाई तीनों इसे अपना पवित्र शहर मानते हैं. यरूशलम के बड़े हिस्से में सेंट जेम्स चर्च और मठ हैं. यहां पर स्थित पवित्र सेपुलकर चर्च दुनियाभर के ईसाइयों के लिए विशेष महत्त्व रखते हैं, क्योंकि ज्यादातर ईसाई मान्यताओं के अनुसार, ईसा को यहीं सूली पर लटकाया गया था. इसके अलावा, यहीं पर वह जगह भी है जहां ईसा फिर जीवित हुए थे. मुस्लिमों के लिए यह इसलिए विशेष है क्योंकि यहां पर पवित्र गुंबदाकार डोम ऑफ़ रॉक यानी कुब्बतुल सखरह और अल-अक्सा मस्जिद है. यह एक पठार पर स्थित है जिसे मुस्लिम हरम अल शरीफ या पवित्र स्थान कहते हैं, इसको इस्लाम की तीसरी सबसे पवित्र जगह माना गया है.
मुस्लिम मानते हैं कि पैगंबर अपनी यात्रा के दौरान मक्का से यहां आए थे. यहां पर उन्होंने सभी पैगंबरों से दुआ की थी. कुब्बतुल सखरह से कुछ ही की दूरी पर एक आधारशिला रखी गई है, जिसके बारे में मुस्लिमों का मत है कि मोहम्मद यहीं से जन्नत की ओर गए थे. यहूदियों के लिए यह इसलिए विशेष है क्योंकि यहां पर उनकी भी सबसे पवित्र जगह है जिसे वह कोटेल या पश्चिमी दीवार कहते हैं. माना जाता है कि यहां कभी पवित्र मंदिर खड़ा था, ये दीवार उसी बची हुई निशानी है. यहां मंदिर में अंदर यहूदियों की सबसे पवित्रतम जगह होली ऑफ होलीज है. यहूदी मानते हैं कि यहीं पर सबसे पहली उस शिला की नींव रखी गई थी, जिस पर दुनिया का निर्माण हुआ, जहां अब्राहम ने अपने बेटे इसाक की कुर्बानी दी. पश्चिमी दीवार, होली ऑफ होलीज की वह सबसे करीबी जगह है, जहां से यहूदी प्रार्थना कर सकते हैं.
आगे क्या होगा कहना कठिन है. पश्चिम एशिया शांति प्रक्रिया के लिए संयुक्त राष्ट्र के दूत निकोलय म्लाडेनोव कह रहे हैं कि येरुशलम के भविष्य पर इजरायल और फिलिस्तीनियों से चर्चा की जानी चाहिए. क्या आज तक बातचीत नहीं हुई? हुई तो उसका परिणाम क्या निकला? अमेरिका को भी इसके विरुद्ध होने वाली प्रतिक्रियाओं का आभास है. इसलिए अमरीकी सरकार के कर्मचारियों और उनके परिवारवालों से कहा गया है कि वे निजी यात्रा पर येरुशलम के पुराने शहर और पश्चिमी तट के इलाकों में न जाएं. तो होगा क्या? यह ऐसा प्रश्न है जिसका जवाब भविष्य की गर्त में छिपा है. लेकिन ट्रंप ने यथास्थिति में फंसे पश्चिम एशिया के विवाद में पत्थर मार दिया है, जिसके परिणामों को लेकर लेकिन पूरी दुनिया में चिंता स्वाभाविक है.
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