परत-दर-परत : एक रुकता हुआ फैसला

Last Updated 10 Dec 2017 05:05:02 AM IST

सर्वोच्च न्यायालय ने लगभर साल भर पहले जब यह निश्चित किया था कि अयोध्या मामले की सुनवाई 5 दिसम्बर 2017 से होगी, तब उसे अनुमान नहीं था कि यह वह तारीख होगी जब गुजरात में विधान सभा चुनाव का कोलाहल अपनी ऊंचाई पर होगा.


परत-दर-परत : एक रुकता हुआ फैसला

यह शायद पहली बार है, जब चुनाव में उठाये गये किसी मुद्दे की संवेदनशीलता को देखते हुए किसी मुकदमे की सुनवाई स्थगित कर दी गयी है. इससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि 6 दिसम्बर 1992 के दिन जो वातावरण था, वह अभी तक कायम है. उस दिन देश स्पष्ट रूप से तीन वर्गो  में बंट गया था. पहला वर्ग उन लोगों का था, जो बाबरी मस्जिद के विध्वंस से सदमे में थे. ये वे लोग थे, जो यह मान कर चल रहे थे कि ऐसी अराजक घटना हमारे देश में हो ही नहीं सकती. दूसरा वर्ग उन लोगों का था, जो इस बात से खुश थे, क्योंकि वे इस तर्क से सहमत थे कि भगवान राम का मंदिर उनकी जन्मभूमि पर नहीं बन सकता, तो और कहां बन सकता है? सब से बड़ी संख्या उन लोगों की थी, जो बाबरी मस्जिद के वहां होने से प्रसन्न तो नहीं थे, पर यह भी नहीं होना चाहिए कि कोई उन्मत्त भीड़ योजना बना कर एक पूर्व-निश्चित तारीख को मस्जिद को मिसमार कर दे. दूसरे वर्ग के लोगों की संख्या कुछ बढ़ी ही है, कम नहीं हुई होगी. लेकिन समग्र रूप से स्थिति वही है जो पचीस वर्ष पहले थी.

गुजरात चुनाव का असर सर्वोच्च न्यायालय की न्यायिक प्रक्रिया पर क्या पड़ सकता था? अयोध्या विवाद पर अदालत का फैसला कोई एक-दो हफ्ते में तो आ नहीं आ जाता कि उसके औचित्य या अनौचित्य को चुनाव प्रचार का विषय बन सकता था. अयोध्या की अभूतपूर्व घटना की जांच के लिए स्थापित एक-सदस्यीय लिब्राहन समिति को अपनी रिपोर्ट देने में सत्रह साल लग गये. केस भी 1992 से ही चल रहा है, पर कोई अंतिम निर्णय अभी तक नहीं आ पाया है. अत: कोई वाजिब कारण दिखाई नहीं देता कि सुनवाई को 6 फरवरी तक स्थगित कर दिया जाता बल्कि स्थगित न करने से ही फायदा था. मामला चूंकि देश की सब से बड़ी अदालत में है, इसलिए गुजरात चुनाव के दौरान अयोध्या विवाद पर इस पक्ष में उस पक्ष में कुछ बोलने पर औपचारिक रोक लग जाती. लेकिन यह भी सच है कि संघ परिवार न्यायालय को तो जैसे कुछ समझता ही नहीं.
जरा इस स्थिति पर विचार कीजिए. सर्वोच्च न्यायालय में जिस विवाद की सुनवाई होनी है, उसका विषय उस भूमि के स्वामित्व तक सीमित है, जिस पर बाबरी मस्जिद खड़ी थी और जिस पर संघ परिवार राम जन्मभूमि मंदिर बनाना चाहता है. फैजाबाद में एक अलग मुकदमा चल रहा है, जिसका संबंध बाबरी मस्जिद तोड़ने के आपराधिक षड्यंत्र से ही. लेकिन 6 दिसम्बर 1992 को जिन लोगों ने वाकई मस्जिद तोड़ी थी, उनमें से एक के भी खिलाफ कोई मुकदमा नहीं है. तब की उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार ने, जिसके मुख्यमंत्री कल्याण सिंह थे, मस्जिद तोड़ने वालों में से एक को भी गिरफ्तार नहीं किया गया. कल्याण सिंह को एक दिन की जेल हुई लेकिन उनके अपराध की गुरु ता की तुलना में यह सजा अपेक्षित सजा का एक प्रतिशत भी नहीं थी. कल्याण सिंह को सारी घटना के लिए प्रमुख जिम्मेदार मान कर उन पर आपराधिक मुकदमा चलाया जाना चाहिए था और लंबे समय के लिए कारावास की सजा देनी चाहिए थी. यह न होना एक बहुत बड़ी चूक थी. यह चूक हुई, इसीलिए ‘मंदिर वहीं बनायेंगे’ की घोषणा करने वालों का उन्माद बढ़ता ही गया है.
वकील कपिल सिब्बल, जो कांग्रेस के नेता भी हैं, का यह आग्रह विचित्र था कि सर्वोच्च न्यायालय को अयोध्या विवाद की सुनवाई 2019 का लोक सभा चुनाव संपन्न करने के बाद ही करनी चाहिए. अगर सुनवाई स्थगित करने का यह कारण उचित मान लिया जाये, तब तो इस मामले की सुनवाई कभी हो ही नहीं सकेगी, क्योंकि हर साल कोई न कोई चुनाव होता ही रहेगा. लेकिन सिब्बल के आग्रह में एक ऐसी सचाई जरूर है जिससे हम सभी डरते हैं. डर इस बात का है कि मामला इतना नाजुक है कि  न्यायालय के लिए कोई ऐसा फैसला देना बहुत मुश्किल हो जायेगा जो दोनों पक्षों को स्वीकार्य हो.
ऐसी स्थिति बना दी गयी है कि देश में शांति तभी कायम रह सकती है, जब फैसला मस्जिद पक्ष के खिलाफ जाये. लेकिन निर्णय इसके विपरीत हो, तब भी अशांति के बढ़ने की ही संभावना है. अगर फैसला जन्मभूमि मंदर वाले पक्ष के पक्ष में गया, तब देश का माहौल और ज्यादा सांप्रदायिक बनाने की कोशिश की जायेगी. अयोध्या में राम का मंदिर श्रद्धा और शांति के वातावरण में नहीं बनाया जायेगा, बल्कि मुसलमानों का मजाक उड़ाते हुए, मुगल राजाओं का अपमान करते हुए, मुसलमानों को खून का घूंट पिलाते हुए बनाया जायेगा. इसके बाद काशी, मथुरा, आगरा, दिल्ली तथा बहुत-सी दूसरी जगहों की मांग की जायेगी और देश भर में तूफान मचा दिया जायेगा. दूसरी ओर, अगर फैसला बाबरी मस्जिद वालों के पक्ष में हुआ, तब भी ऐसा ही तूफान खड़ा किया जायेगा और अदालत के फैसले का कार्यान्वयन होना असंभव बना दिया जायेगा.

राजकिशोर


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment