वैश्विकी : शांति की धारा मोड़ दी ट्रंप ने
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने यरुशलम को इस्राइल की राजधानी घोषित करके फिलिस्तीन-इस्राइल शांति प्रक्रिया की धारा को उल्टी दिशा में मोड़ दिया है.
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप |
पश्चिम एशिया में शुरू से ही अमेरिकी नीति इस्राइल समर्थक रही है. बावजूद इसके वाशिंगटन का विश्वास था कि यरुशलम के भविष्य का निर्धारण इस्राइल और फिलिस्तीन की आपसी बातचीत के जरिए ही संभव हो सकेगा. ट्रंप ने अमेरिका की दशकों पुरानी विवेकशील पारंपरिक नीति को सिरे से खारिज कर दिया. जाहिर है कि उनके इस कदम ने पश्चिम एशिया को एक बार फिर अशांति और अनिश्चितता के भंवर में धकेल दिया है. इस्राइली प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने इसे भले ही ऐतिहासिक, साहसी और शांति कायम करने की दिशा में सही फैसला बताया है, लेकिन इनकार नहीं किया जा सकता कि आने वाले दिनों में इस्राइल की मुश्किलें बढ़ सकती हैं. अमेरिका के मित्र राष्ट्रों फ्रांस और ब्रिटेन समेत पूरी दुनिया के देशों ने ट्रंप के फैसले की आलोचना की है. मुस्लिम जगत में इसकी तीखी प्रतिक्रिया हुई है. तुर्की और मिस्र जैसे देशों ने भी ट्रंप के फैसले का विरोध किया है. दोनों देशों के इस्राइल के साथ अच्छे संबंध हैं. कुछ देशों के रुख से ऐसा लगता है कि इस्राइल विश्व में अकेला पड़ सकता है.
ट्रंप अपनी पीठ थपथपा सकते हैं कि उन्होंने अपना वादा पूरा किया है. गौरतलब है कि ट्रंप ने अपनी चुनाव घोषणा में वादा किया था कि इस्राइल में अमेरिकी दूतावास को तेलअवीव से यरुशलम स्थानांतरित करेंगे. उन्हें अपनी चुनाव घोषणा को पूरा करने का हक है. लेकिन उनके फैसले से इस दलील को मजबूती मिलेगी कि यहूदी-ईसाई जगत का यह गठजोड़ मुस्लिम विरोधी है. माना जा रहा है कि राष्ट्रपति चुनाव के दौरान ट्रंप को यहूदियों का भारी समर्थन मिला था. उन्होंने यहूदी लॉबी को संतुष्ट करने के लिए इस्राइल-फिलिस्तीन विवाद को लेकर अब तक चली आ रही अमेरिकी नीति की अस्पष्टता को स्पष्ट कर दिया और इस्राइल में अमेरिकी दूतावास को तेलअवीव से यरुशलम स्थानांतरित करने का निर्देश भी दे दिया. हालांकि इस प्रक्रिया में अभी चार-पांच साल का समय लग सकता है.
फिलिस्तीन का हृदय स्थल यरुशलम करीब दो हजार वर्षो से यहूदी, ईसाई और मुसलमानों का बड़ा धार्मिक स्थल रहा है. वे धार्मिक कारणों से इस पर अपने अधिकार के प्रयास करते रहे हैं. 1967 के अरब-इस्राइल युद्ध के बाद जून, 1969 में इस्राइल ने इसे अपने राज्य में मिलाने की घोषणा कर दी थी, जिससे अरब देशों में गुस्सा और क्षोभ दिखाई दिया. समस्या को सुलझाने के प्रयास हुए, लेकिन सार्थक परिणाम नहीं निकला. इसी दौरान यरुशलम स्थित चौदह सौ वर्ष पुरानी अल अक्सा मस्जिद में रहस्यमय ढंग से आग लग गई. पश्चिम एशिया में स्थिति तनावपूर्ण हो गई थी. कुछ देशों ने अग्निकांड के लिए इस्राइल को दोषी ठहराया. यरुशलम पर इस्राइल के दावे को अमेरिकी मान्यता मिलने से यह क्षेत्र फिर तनावग्रस्त हो सकता है. फिलिस्तीन के आतंकवादी गुट हमास ने ऐसी चेतावनी भी दी है. दरअसल, फिलिस्तीन पूर्वी यरुशलम को अपनी राजधानी बनाना चाहता है. हाल के दिनों तक फिलिस्तीन-इस्राइल विवाद से जुड़े पक्षकार भी यरुशलम को फिलिस्तीन की राजधानी बनाने के पक्ष में रहे हैं. लेकिन ट्रंप ने येरुशलम पर इस्राइल के दावे को मान्यता देकर पश्चिमी तट और गाजा पट्टी तक इस्राइल के विस्तार को हरी झंडी दे दी है. यह सवाल भी गंभीर है कि पूर्वी यरुशलम में रहने वाले करीब एक लाख फिलिस्तीनियों की अधिकारों की रक्षा कौन करेगा?
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