नवाज शरीफ का न्यायिक तख्तापलट

Last Updated 31 Jul 2017 06:00:35 AM IST

तो नवाज शरीफ को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री पद से हटना पड़ा.


नवाज शरीफ का न्यायिक तख्तापलट.

सर्वोच्च न्यायालय यदि उन्हें प्रधानमंत्री पद के अयोग्य करार देता है तो फिर उनके पास चारा क्या बचता है? किंतु यह जो प्रचार चल रहा है कि पनामा पेपर्स लीक में उनका एवं उनके परिवार का नाम आने के कारण उन्हें दोषी माना गया है तो वह गलत होगा. यह बात ठीक है कि सुप्रीम कोर्ट में मामला जाने का आधार वही बना और उसके कारण नवाज शरीफ एवं उनके परिवार पर पहले से लगे भ्रष्टाचार के आरोप भी सम्मिलित कर दिए गए, लेकिन उन पर तो अभी मुकदमा आरंभ भी नहीं हुआ है. ध्यान रखिए 5 न्यायाधीशों की पीठ ने अपने आदेश में कहा है कि शरीफ और उनके बच्चों बेटी मरियम, बेटे हुसैन और हसन के खिलाफ मामला दर्ज किया जाए.

सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल अकाउंटेबिलिटी कोर्ट को 6 हफ्ते के अंदर मामला दर्ज करने और छह महीने में सुनवाई पूरी करने का आदेश दिया है. यह अजीब बात है कि अगर उन पर अभी मुकदमा दर्ज होना है, उसकी सुनवाई होनी है तो फिर सजा किस बात की मिली है? न्यायालय की 5 सदस्यीय पीठ ने माना कि वे सच बोलने वाले एवं ईमानदार नहीं हैं. इस बात पर हमारे यहां आश्चर्य व्यक्त किया जा सकता है कि केवल इतने पर किसी को प्रधानमंत्री पद के अयोग्य ठहरा दिया जा सकता है! दरअसल, पाकिस्तानी संविधान के अनुच्छेद 62 और 63 में सांसद बनने की योग्यता और अयोग्यता के जो प्रावधान दर्ज हैं, उनमें ऐसा संभव है. इसके अनुसार सांसद को 'सादिक' और 'अमीन', यानी सिर्फ  सच बोलने वाला और ईमानदार होना चाहिए. यह एक ऐसी कसौटी है जिस पर खरा उतरना शायद ही किसी के लिए संभव होगा. इसके आधार पर उन्हें न्यायालय ने पद से हटा दिया. जो विश्लेषक इसे न्यायालय द्वारा तख्ता पलट की संज्ञा दे रहे हैं, वे गलत नहीं हैं.

न्यायालय ने एक ज्वाइंट इन्वेस्टिगेटिव टीम (जेआईटी) यानी संयुक्त जांच दल का गठन किया था. उसने अपनी रिपोर्ट न्यायालय में सौंपी और उसके आधार पर न्यायालय ने शरीफ को अयोग्य करार दे दिया. हम मानते हैं कि छह सदस्यीय जेआईटी ने 10 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट को जो रिपोर्ट दिया, उसमें शरीफ परिवार पर व्यापक भ्रष्टाचार की बू मिलती है. रिपोर्ट में कहा गया है कि 1990 में प्रधानमंत्री के तौर पर उन्होंने भ्रष्टाचार किया. अपने दूसरे कार्यकाल में शरीफ परिवार ने लंदन में संपत्तियां खरीदी थीं. इसे घोषित संपत्ति में शामिल नहीं किया गया. जेआईटी ने यह भी कहा कि शरीफ परिवार यह साबित नहीं कर सका कि इन संपत्तियों की खरीद के लिए उनके पास धन सही स्रेतों से आए. संयुक्त जांच दल ने अपनी रिपोर्ट में शरीफ पर एक साथ 15 मामले दोबारा चलाने की सिफारिश की है. इन मामलों में तीन 1994 से 2011 के बीच पीपीपी सरकार के दौरान दर्ज हुए थे, जबकि 12 अन्य परवेज मुशर्रफ के शासनकाल में. जेआईटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि नवाज शरीफ के बच्चे जिस शाही अंदाज में रहते हैं, वह उनकी कमाई से मेल नहीं खाता. शरीफ परिवार के लंदन के 4 अपार्टमेंट से जुड़ा मामला उन 8 मामलों में शामिल है, जिनकी नेशनल अकाउंटेबिलिटी ब्यूरो ने दिसम्बर 1999 में जांच शुरू की थी.



पनामा लीक्स के अनुसार नवाज शरीफ के बेटों हुसैन और हसन के अलावा बेटी मरियम नवाज ने टैक्स हैवन माने जाने वाले ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड में कम-से-कम चार कंपनियां शुरू कीं. इन कंपनियों से इन्होंने लंदन में बड़ी संपत्तियां खरीदीं. शरीफ परिवार ने इन संपत्तियों को गिरवी रखकर डॉएचे बैंक से करीब 70 करोड़ रु पये का कर्ज लिया. इसके अलावा, दूसरे दो अपार्टमेंट खरीदने में बैंक ऑफ स्कॉटलैंड ने उनकी मदद की. इसके अनुसार इस पूरे कारोबार और खरीद-फरोख्त में अघोषित आय लगाई गई. साफ है कि नवाज शरीफ और उनके परिवार पर पूरा मामला केवल पनामा पेपर्स तक सीमित नहीं है. हालांकि, शरीफ और उनका परिवार इन सारे आरोपों को खारिज करता रहा है. यह संभव है कि उनके परिवार पर लगे आरोप सही हों. लेकिन सामान्य न्यायिक प्रक्रिया यह कहती है कि आरोपित को न्यायालय में पूरी तरह अपना पक्ष रखने दिया जाए, पक्ष-विपक्ष के साक्ष्यों की जांच हो..दोनों पक्षों के वकील उनसे जिरह करें और पूरी सुनवाई के बाद तब कोई त्रुटिरहित न्यायिक फैसला दिया जाए. इस मामले में अभी यह सब होना बाकी है.

जेआईटी की रिपोर्ट की प्रकृति हमारे यहां पुलिस छानबीन के आधार पर दायर होने वाले आरोप पत्र के समान थी. केवल आरोप पत्र के आधार पर किसी को सजा नहीं दी जा सकती है. इसलिए नवाज परिवार को सर्वोच्च न्यायालय ने कोई सजा नहीं दी है. नवाज परिवार की नियति आगे उन पर नेशनल अकाउंटेबिलिटी कोर्ट के फैसले पर निर्भर करता है. किंतु इससे नवाज के निजी राजनीतिक भविष्य पर तो ग्रहण लग ही गया है. इसके बाद वे किसी प्रधानमंत्री द्वारा अपना कार्यकाल पूरा न करने के रिकॉर्ड को तोड़ने से भी वंचित रह गए.  लेकिन दूसरी ओर यह विचार भी प्रकट किया जा रहा है कि अगर सर्वोच्च न्यायालय इस तरह फैसले देता रहा तो भविष्य में भी किसी प्रधानमंत्री के लिए कार्यकाल पूरा करना कठिन हो जाएगा. पिछली सरकार के कार्यकाल में स्वयं नवाज शरीफ ने पीपीपी सरकार पर दबाव डालकर मुशर्रफ द्वारा बर्खास्त मुख्य न्यायाधीश इफ्तीखार चौधरी सहित अन्य न्यायाधीशों को पुनर्बहाल कराया. फिर मुशर्रफ के खिलाफ मुकदमे दायर कराए गए. इससे वहां के सर्वोच्च न्यायालय का चरित्र ही बदल गया है. वास्तव में जिस आधार पर नवाज तथा उनके एक मंत्री और रिश्तेदार सांसद को अयोग्य करार दिया उस पर किसी को भी अयोग्य ठहराया जा सकता है.

पाकिस्तानी मीडिया में ही यह सवाल उठ रहा है कि इमरान खान पर भी विदेश में एक कंपनी बनाने और उसे घोषित न करने का आरोप है. तो उनको भी सजा हो सकती है. ऐसा माना जा रहा है कि नवाज एवं न्यायालय और सेना के बीच संबंध अच्छे नहीं चल रहे थे. न्यायालय ने जो जेआईटी गठित की उसमें सैन्य खुफिया के दो और आईएसआई के तीन सदस्य थे. इस नाते देखा जाए तो शरीफ के खिलाफ यह न्यायालय एवं सेना दोनों का तख्तापलट है.

 

 

अवधेश कुमार


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