उत्तर कोरिया : तानाशाह का पागलपन
सर्वसत्तावादी राज्य और मैरीजुआना के नशे में मदहोश उत्तर कोरिया का तानाशाह किम जोंग संहारक शस्त्रों के सहारे विश्व शांति को निगल जाने को आमादा है.
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इस साल अब तक 14 मिसाइलों का परीक्षण कर चुका है, और उसके दुस्साहस से वैश्विक सामूहिक सुरक्षा पर अस्थिरता का खतरा गहरा गया है.
उ. कोरिया के तानाशाह किम जोंग की कार्यप्रणाली खतरनाक और विध्वंसक है. क्रूर और नृशंस इतनी कि अपने रक्षा मंत्री को महज झपकी लेने पर एंटी एयर क्राफ्ट गन से उड़ा देने जैसे वहशियाना कृत्य से भी उसे गुरेज नहीं. इस देश के लोग अपने तानाशाह से इतने भयभीत हैं कि उसका नाम तक जुबान पर नहीं आने देना चाहते. तकरीबन दो लाख विरोधी जेलों में बंद हैं, इनमें से अनेक यातनाएं झेलते-झेलते पागल हो चुके हैं, या मर चुके हैं. ढाई करोड़ की आबादी में हर तीसरा बच्चा भूखा रहने को मजबूर है, और किम हथियारों के बूते दुनिया को धमका रहा है. उत्तर कोरिया किम इल सुंग की उस विचारधारा को अपना आदर्श वाक्य बताता है, जिसमें कहा गया है कि इंसान हर चीज का मालिक है, और वह सब कर सकता है.
कोरियाई संकट से निपटने के लिए अमेरिका गांधीवादी विकल्प को अभी तक आजमाता रहा है, जबकि उ. कोरिया माओवादी विकल्प के जरिये दुनिया को ठेंगा दिखा रहा है. महज 34 साल की उम्र के किम की हथियारों को लेकर सनक इतनी है कि बीते साल उसने अपने जन्म दिवस की खुशी हाइड्रोजन बम के परीक्षण से मनाई थी. हालांकि दुनिया में अभी तक इस बम का इस्तेमाल नहीं हुआ है, लेकिन इसे अंतरमहाद्वीपीय बैलेस्टिक मिसाइल के जरिये दुनिया में कहीं भी गिरा सकने में उ. कोरिया सक्षम हो गया है.
हाल ही में जब उत्तर कोरिया ने अंतरमहाद्वीपीय बैलेस्टिक मिसाइल का परीक्षण कर दावा किया कि समूचा अमेरिका उसकी जद में है, तो पेंटागन भी स्तब्ध रह गया. अमेरिकी रक्षा विभाग पेंटागन ने दक्षिण कोरिया की सेनाओं के प्रमुखों के साथ हालात से निपटने पर गहन मंत्रणा की. दूसरी और अपने आर्थिक जोन में उ. कोरिया के मिसाइल गिरने की खबरों से स्तब्ध जापान के विदेश मंत्री फुमियो किशिदा ने अमेरिका के विदेश मंत्री रेक्स टिलरसन से टेलीफोन पर बात की तथा उ. कोरिया पर ‘संभावित सबसे भारी दबाव‘ पैदा करने के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का नया प्रस्ताव लागू करने और चीन तथा रूस पर मिलकर काम करने की बात कही. उ. कोरिया को लेकर महाशक्तियां दूसरे विश्व युद्ध के बाद से ही आमने-सामने रही हैं.
25 जून, 1950 को उत्तर कोरिया की साम्यवादी सरकार ने जब दक्षिण कोरिया पर हमला किया था, तब उसे बचाने के लिए संयुक्त राष्ट्र सेना की कमान एक अमेरिकी जनरल मैक ऑर्थर के हाथों में थी. लेकिन तब भी उस युद्ध का निर्णायक समाधान इसलिए नहीं हो सका था कि चीन के युद्ध में उतर आने का अंदेशा था, और आज भी हालात जस के तस हैं. इसके बाद से ही अमेरिका को लेकर उत्तर कोरिया की नीति बेहद आक्रामक रही है, साम्यवादी देश होने से रूस और चीन ने आर्थिक, सामरिक, कूटनीतिक और राजनीतिक मदद लगातार कर इस देश को बेलगाम बना दिया.
यही नहीं, राजनीतिक अस्थिरता के शिकार पाकिस्तान के वैज्ञानिक अब्दुल कदीर खान के सहयोग से उत्तर कोरिया ने परमाणु तकनीक भी हासिल कर ली. हाल का घटनाक्रम बताता है कि उत्तर कोरिया को लेकर संयुक्त राष्ट्र भी बेबस है. दक्षिण कोरिया की 1953 से अमेरिका के साथ रक्षा संधि है, और दक्षिण कोरिया में 28,500 अमेरिकी सैनिक और युद्धपोत नियमित रूप से तैनात रहते हैं. वहीं, चीन और उत्तर कोरिया के बीच 1961 से पारस्परिक सहायता और सहयोग की रक्षा संधि है.
इससे साफ है कि द. कोरिया और उ. कोरिया के बीच युद्ध की परिस्थिति में अमेरिका और चीन आमने-सामने हो सकते हैं. किम जोंग हिटलर की विदेश नीति पर चलता है, जिसके अनुसार यदि अपनी पसंद के अनुसार समझौता न हो सके तो युद्ध का सहारा लेना चाहिए. लेकिन वह चाहता क्या है, इसे उत्तर कोरिया ने कभी दुनिया से साझा करने की जरूरत नहीं समझी. दूसरी ओर साम्यवाद से जो कुछ बच सकता है, उसे बचाओ का अमेरिकी सिद्धांत उ. कोरिया के मामले में पस्त है. इन समूचे हालात में चीन की भूमिका बेहद कुटिल और खतरनाक है. वह बड़ी चालाकी से एशिया-प्रशांत क्षेत्र के अपने विरोधियों को धमकाने के लिए उत्तर कोरिया को सामने कर रहा है. इसलिए वह संयुक्त राष्ट्र की उत्तर कोरिया को रोकने के लिए कड़ी सैन्य कार्रवाई में भी लगातार रोड़े अटका रहा है.
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