Modi's Swadeshi 2.0 mantra: मोदी जी का ‘स्वदेशी 2.0’ मंत्र आत्मनिर्भर भारत की नई परिभाषा
Modi's Swadeshi 2.0 mantra: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) जिस आत्मनिर्भर भारत का आह्वान कर रहे हैं, उसका मूल उद्देश्य केवल आर्थिक स्वतंत्रता तक सीमित नहीं है। यह संदेश देश की घरेलू क्षमताओं को सशक्त बनाने, आयात पर निर्भरता घटाने और स्थानीय उद्योगों को प्रोत्साहन देने के साथ-साथ विकास की दिशा को व्यापक सामाजिक सरोकारों से भी जोड़ता है, जिसमें महात्मा गांधी की ‘स्वदेशी अपनाओ’ और पंडित दीनदयाल उपाध्याय की ‘अंत्योदय’ की परिकल्पना स्पष्ट तौर पर समाहित है।
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र को संबोधित करते हुए एक बार फिर भारतीयता के उस गूढ़ भाव “स्वदेशी” को जन-जन का मंत्र बना दिया है।
उन्होंने कहा, “हर घर स्वदेशी का प्रतीक बने, हर दुकान स्वदेशी से सजे।” यह केवल आर्थिक नीति का आह्वान नहीं, बल्कि राष्ट्रीय पुनर्जागरण का शंखनाद है।
‘स्वदेशी 2.0’ का यह विचार भारत को न केवल आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाएगा, बल्कि सांस्कृतिक आत्मविश्वास और वैश्विक सम्मान की नई ऊंचाइयों पर भी पहुंचाएगा।
स्वदेशी: राष्ट्र की आत्मा, न कि केवल एक नारा
भारत में स्वदेशी का विचार हजारों वर्षों से जीवित है। यह केवल व्यापार का तरीका नहीं, बल्कि जीवन का दर्शन है। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान स्वदेशी आंदोलन ने भारत को एकता के सूत्र में बांधा और ब्रिटिश हुकूमत की नींव हिला दी। आज, वही स्वदेशी विचार ‘2.0’ रूप में भारत को आर्थिक गुलामी से मुक्त कराने की दिशा में अग्रसर है।
प्रधानमंत्री मोदी का स्वदेशी 2.0, चीन की निर्भरता को चुनौती देता है और अमेरिका की आर्थिक दादागीरी का जवाब है। यह संदेश देता है कि अब भारत केवल बाजार नहीं, बल्कि दुनिया का ‘निर्माण केंद्र’ (Global Manufacturing Hub) बनेगा।
गांधी जी से मोदी तक: स्वदेशी का पुनर्जागरण
महात्मा गांधी ने कहा था- “स्वदेशी अपनाना आत्मा का आह्वान है।” प्रधानमंत्री मोदी ने उसी विचार को आधुनिक रूप में पुनर्जीवित किया है। स्वच्छ भारत, डिजिटल इंडिया, आत्मनिर्भर भारत-ये सभी अभियान उसी स्वदेशी सोच की कड़ियाँ हैं जिन्हें मोदी ने जन-जन का आंदोलन बना दिया है। अब ‘स्वदेशी 2.0’ उसी श्रृंखला का विस्तार है, जो आर्थिक स्वतंत्रता को सामाजिक शक्ति में बदलने की दिशा में अग्रसर है।
मोदी का विश्वास है कि जिस तरह स्वदेशी आंदोलन ने आज़ादी दिलाई, उसी तरह स्वदेशी 2.0 भारत को “आर्थिक महासत्ता” बनाएगा।
स्वदेशी 2.0: आत्मनिर्भरता का आर्थिक ब्लूप्रिंट
आज दुनिया राजनीतिक अस्थिरता, आपूर्ति संकट और व्यापारिक असंतुलन से जूझ रही है। ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी का यह संकल्प कि भारत अपने संसाधनों, कौशल और नवाचार के बल पर खुद की अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाएं, समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है।
भारत अब केवल उपभोक्ता नहीं, बल्कि उत्पादक राष्ट्र के रूप में उभर रहा है। हथियार, ड्रोन, मोबाइल, औषधि, खिलौने, इलेक्ट्रॉनिक्स, जो कभी आयात किए जाते थे, अब भारत उनका निर्यातक बन रहा है।
‘मेक इन इंडिया’, ‘वोकल फॉर लोकल’ और ‘स्टार्टअप इंडिया’ इसी स्वदेशी दृष्टिकोण की परिपक्व अभिव्यक्तियाँ हैं।
आर्थिक राष्ट्रवाद की नई परिभाषा
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था “हर व्यापारी अपने घर के बाहर लिखे- ‘यहां स्वदेशी सामान बिकता है।’ हमें स्वदेशी पर गर्व होना चाहिए, यह हमारी ताकत है।” यह भावनात्मक अपील नहीं, बल्कि आर्थिक राष्ट्रवाद का नया सिद्धांत है।
जब हम भारतीय उत्पाद खरीदते हैं, तो हमारी पूंजी भारतीय हाथों में रहती है। किसान से लेकर मजदूर, कारीगर से लेकर व्यापारी तक, सबके जीवन में रोज़गार और स्थिरता आती है। यही वह आर्थिक श्रृंखला है जो पतंजलि, टाटा, अमूल, बजाज, हैवल्स जैसी भारतीय कंपनियों को विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने की ताकत देती है।
स्वदेशी 2.0: हर नागरिक की जिम्मेदारी
स्वदेशी 2.0 केवल सरकार की नीति नहीं, बल्कि नागरिकों की जिम्मेदारी है। जब हम विदेशी उत्पादों की ओर झुकते हैं, तो हम अनजाने में विदेशी अर्थव्यवस्था को मजबूत करते हैं।
अर्थशास्त्र का सीधा नियम है- “जहां से खरीदते हैं, वही संपन्न होता है।”
इसलिए यदि हम अपने देश में बने उत्पाद खरीदें, तो भारत की जीडीपी बढ़ती है, रुपये की मजबूती कायम रहती है, और नए उद्योगों को जन्म मिलता है। यानी स्वदेशी अपनाना राष्ट्र निर्माण की सीधी भागीदारी है।
स्वदेशी से वैश्विक: आत्मनिर्भरता का मार्ग
जब 140 करोड़ भारतीय “मेड इन इंडिया” को अपनी जीवनशैली बनाएंगे, तब भारत न केवल आत्मनिर्भर होगा बल्कि वैश्विक व्यापार का निर्णायक शक्ति केंद्र भी बनेगा।
स्थानीय उत्पादों की मांग बढ़ेगी, आयात घटेगा, नए उद्योग खुलेंगे, और लाखों रोजगार सृजित होंगे।
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