मेडिकल वीजा : भरेंगे दुश्मनी के जख्म

Last Updated 28 Jul 2017 05:45:51 AM IST

चिकित्सा पर्यटन और द्विपक्षीय संबंध, जाहिरी तौर पर दो अलग-अलग क्षेत्र हैं, लेकिन इनका आपस में बड़ा गहरा नाता है.


मेडिकल वीजा : भरेंगे दुश्मनी के जख्म

अक्सर चिकित्सा पर्यटन दो देशों के मध्य बिगड़े रिश्तों पर मरहम रखने का काम करता है. यही वजह है कि भारत-पाक के आपसी ताल्लुकात चाहे कितने ही खराब दौर से गुजरते रहे हों, भारत ने कभी पाकिस्तानी मरीजों के लिए चिकित्सा वीजा के दरवाजे बंद नहीं किए. पाकिस्तानी जेल में बंद कुलभूषण जाधव के मामले को लेकर दोनों देशों के बीच आए तनाव के चलते फिलहाल भारत ने वहां के नागरिकों के लिए मेडिकल वीजा पर पाबंदी लगा दी है.

दोनों मुल्कों के बीच व्याप्त मौजूदा तनाव के बीच भारत की तरफ से दबाव बनाने की ये रणनीति बहुत कारगर होगी, इसकी संभावनाएं बहुत क्षीण हैं. पाकिस्तान जैसे धूर्त और दोगले चरित्र वाले हमसाए तो ऐसी उम्मीद करना ही बेमानी है. इसका अंदाजा भारत सरकार को भी बखूबी है. यही वजह है कि विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने इसके लिए अपने पाकिस्तानी समकक्ष सरताज अजीज के सिफारिशी पत्र की बाध्यता लगा दी है.

इस तरह देखा जाए तो उन्होंने पाकिस्तानी मरीजों के लिए चिकित्सा वीजा का दरवाजा जरूर बंद कर दिया है लेकिन उसके लिए एक दरीचा जरूर खुली रखी है. उन्हें ये बाध्यता लगाने जैसा सख्त कदम उठाने को तब मजबूर होना पड़ा जब कुलभूषण जाधव की मां को उनके बेटे से मिलने के लिए वीजा देने को लेकर सुषमा स्वराज के जरिए लिखे व्यक्तिगत पत्र पर सरताज अजीज ने कोई जवाब ही नहीं दिया. जाधव की मां को वीजा देना या न देना एक अलग मुद्दा है. मगर सरताज अजीज से विदेश मंत्री सुषमा स्वाराज के पत्र का जवाब देने की उम्मीद तो की ही जा सकती है. ‘दिल मिले या न मिले, हाथ मिलाते रहिए’ के द्विपक्षीय उसूल के तहत सरताज अजीज से कम-से-कम इतने शिष्टाचार की आशा तो सभी को थी.

उनके इस रवैये से खिन्न होकर भारतीय विदेश मंत्रालय ने यहां इलाज कराने की इच्छा रखने वाले सभी पाकिस्तानियों को केवल तभी वीजा देने की शर्त लगा दी, जिसकी स्वयं सरताज अजीज सिफारिश करेंगे. जाहिर है कि इससे न तो पाक सरकार को कोई विशेष फर्क पड़ने वाला था और न ही उनके विदेश मंत्रालय को. इसका सीधा असर उन पाकिस्तानी नागरिकों पर पड़ रहा है जो अन्य देशों की अपेक्षा सस्ते और अच्छे इलाज के लिए भारत आना चाहते हैं. चार महीने का बच्चा रोहान भी ऐसे ही कई पाकिस्तानी मरीजों में एक था, जिसके माता-पिता उसका भारत में इलाज कराना चाहते थे. भला हो विदेशमंत्री सुषमा स्वराज का जिन्होंने ट्विटर पर उस बच्चे के पिता की फरियाद सुन ली और उन्हें वीजा दिलवाने में मदद की. अब रोहान सफल हार्ट सर्जरी के बाद अपने वतन वापस लौट चुका है. पाकिस्तान की तरफ से सरताज अजीज के सिफारिशी पत्र की अपेक्षा करना फिजूल है.

उसे अपने अवाम की फिक्र होती तो खुद को आतंकवाद की नर्सरी बनाकर दहशतगदरे के हाथों अपने ही लोगों को क्यों मरवाता? भारत आकर उपचार कराने की चाह रखने वाले पाकिस्तानी लोगों का मामला भी उसने अपने विदेश मंत्रालय के अधीन दक्षिण एशिया डेस्क पर छोड़ रखा है, जिन्हें ऐसे लोगों से कोई दिलचस्पी नहीं है. भारत से वीजा न मिलने की सूरत में ऐसे पाकिस्तानी मरीजों का स्वास्थ्य मजीद खराब होने और यहां तक कि उनकी मृत्यु तक हो जाने का खतरा है. ऐसे में बड़ा दिल हमें ही दिखाना होगा. इस लिहाज से देखा जाए तो फिलहाल चिकित्सा वीजा के लिए सरताज अजीज के सिफारिशी पत्र की शर्त लगाना विदेश मंत्रालय की एक रणनीतिक त्रुटि है.

सुषमा स्वराज को अपनी इस रणनीतिक गलती का शायद अहसास है, इसीलिए उनका दिल रोहान जैसे मामलों में पसीज जाता है. बहरहाल भारत को पाकिस्तानी मरीजों के लिए अपना चिकित्सा वीजा देने का दायरा बढ़ाना होगा ताकि रोहान और ओसामा जैसे दीगर लोग यहां से स्वास्थ्यलाभ कर हमारे लिए दुआएं करें. पाकिस्तानी जनता में भारत के प्रति भरोसा बढ़े. इससे उन्हें अपनी सरकार के दोगलेपन का भी अहसास होगा. ये हमारी बड़ी कूटनीतिक जीत होगी. भारत को वैसे ही हम दक्षिण एशिया में मेडिकल हब के तौर पर विकसित करने के लिए प्रयासरत हैं. पाकिस्तान से जितने अधिक मरीज भारत आएंगे, उससे हमें उतना ही आर्थिक लाभ भी होगा. साथ ही उससे मिलने वाली ख्याति की गूंज दीगर पड़ोसी मुल्कों में भी सुनाई देगी. यानी पाकिस्तानियों को ज्यादा से ज्यादा मेडिकल वीजा देना हर तरह से हमारे लिए फायदेमंद होगा.

मोहम्मद शहजाद
लेखक


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