मुद्दा : आग का गोला बनते अस्पताल
उत्तर प्रदेश राज्य की राजधानी लखनऊ के किंग जार्ज मेडिकल कॉलेज (केजीएमयू) के ट्रामा सेंटर में लगी आग में छह मरीजों की दर्दनाक मौत यह बताने के लिए पर्याप्त है कि देश के सरकारी हो या निजी सभी अस्पतालों में हादसे से निपटने के पुख्ता इंतजाम नहीं है.
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आग की विभत्सता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि धुआं फैलने के कारण मरीजों और तीमारदारों के बीच भगदड़ मच गई और वे इधर-उधर भागने लगे. हालांकि, चिकित्सकों और कर्मचारियों ने हिम्मत दिखाते हुए आग के बीच फंसे मरीजों को सुरक्षित बाहर निकालने में सफल रहे.
गौर करें तो केजीएमयू में आग लगने की यह पहली घटना नहीं है. दो माह पहले फिजियोलॉजी विभाग की प्रयोगाला में भी आग लगी थी. गौर करें तो देश के अन्य राज्यों के सरकारी और निजी क्षेत्र के अस्पताल भी भीषण आग की चपेट में आ चुके हैं. पिछले महीने ही ओडिशा की राजधानी भुवनेर स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज ऐंड एसयूएम हॉस्पिटल के आईसीयू वार्ड में शार्ट सर्किट से लगी आग में 24 से अधिक लोगों की जान चली गई. गत वर्ष पहले कोलकाता के नामी-गिरामी निजी अस्पताल एडवांस मेडिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट (आमरी) में दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से आग लगी थी, जिसमें 90 से अधिक लोगों की जान गई. उचित होगा कि सरकारें सरकारी अस्पतालों को बेहतर सुरक्षा से लैस करने के साथ सभी सुरक्षा विहिन गैर-जिम्मेदार निजी अस्पतालों को भी पुख्ता सुरक्षा इंतजाम करने के लिए कड़ा कानून बनाएं. ऐसा इसलिए कि अस्पतालों में आग लगने की घटनाएं लगातार बढ़ रही है. सच तो यह है कि सरकारी हो या निजी सभी अस्पतालों के पास सुरक्षा का कोई पुख्ता इंतजाम नहीं है और मरीजों की जिंदगी भगवान भरोसे है.
याद होगा अभी पिछले वर्ष ही मध्य प्रदेश के सतना जिले के एक निजी अस्पताल में भीषण आग की घटना में 32 नवजात शिशु खाक होते-होते बचे. यहां ध्यान देना होगा कि सिर्फ अस्पताल ही आग की जद में नहीं हैं बल्कि देश के सार्वजनिक स्थल भी आए दिन आग की भेंट चढ़ रहे हैं. क्या सरकारी भवन, अस्पताल, फैक्टरी, रेल, स्टेशन, सड़क, वायुयान, निजी संरक्षण गृह, समारोह स्थल, स्कूल और आस्था केंद्र सभी आग की जद में हैं. लेकिन त्रासदी है कि अभी तक इस विपदा से निपटने की कोई ठोस व कारगर रणनीति नहीं बन सकी है. गौर करें तो विगत वर्षो में देश में भीषण आग की कई घटनाएं घटी हैं, जिसमें सैकड़ों जान गई है और करोड़ों की संपत्ति का नुकसान हुआ है. अभी पिछले वर्ष ही केरल के कोल्लम में पुत्तिंगल देवी मंदिर में आतिशबाजी से लगी आग में सौ से अधिक लोगों की दर्दनाक मौत हुई. गत वर्ष ही उज्जैन जिले के बड़नगर में पटाखे की फैक्टरी में भीषण आग में 18 से अधिक लोगों को जान गई. गत वर्ष आंध्रप्रदेश के पूर्वी गोदावरी जिले में भारतीय गैस प्राधिकरण लिमिटेड (गेल) की पाइपलाइन में लगी आग से हुए विस्फोट में तकरीबन डेढ़ दर्जन से अधिक लोगों की जान गई. मुंबई में छत्रपतिािवाजी टर्मिनस स्टेशन पर एक इमारत धूं-धूं कर जल उठी वहीं यूपी के कानपुर में सिंलेंडर में लीकेज के चलते आग लगने से पांच लोगों की जान चली गई.
आग की लपटों से स्कूल भी अछूते नहीं हैं. दिसम्बर 1995 में हरियाणा के मंडी डबवाली में स्कूल के एक कार्यक्रम के दौरान पंडाल में आग लगने से तकरीबन 442 बच्चों की मौत हो गई. 6 जुलाई, 2004 को तमिलनाडु के कुंभकोणम जिले में आग से 91 स्कूली बच्चों ने दम तोड़ दिया. इस हृदय विदारक घटना के बाद केंद्र व राज्य सरकारों ने आपदा प्रबंधन को चुस्त-दुरुस्त करने का वादा किया. सभी स्कूलों को फरमान जारी किया कि वे अपने यहां अग्निशमन यंत्रों की व्यवस्था सुनिश्चत करें. दिखावे के तौर पर स्कूलों ने उपकरणों की व्यवस्था तो की लेकिन वे हाथी दांत ही साबित हो रहे हैं. उसका कारण यह है कि इन अग्निशमन यंत्रों का इस्तेमाल कैसे हो इसकी जानकारी स्कूल कर्मियों को नहीं है. देश में जब भी इस तरह के हादसे होते हैं अक्सर सरकार और जिम्मेदार संस्थाएं मुआवजा थमाकर परे हट जाती है. लेकिन उनकी जिम्मेदारी बनती है कि वह आग से बचाव के लिए ठोस रणनीति बनाएं और सुरक्षा मानकों का पालन कराएं. सुरक्षा मानकों की अनदेखी का ही नतीजा है कि देश भर में आग की घटनाओं में तेजी आई है और अकारण लोगों को मौत के मुंह में जाना पड़ रहा है.
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