बासठ नहीं, दो हजार सत्रह है
यह प्रश्न लंबे समय से देश को मथता रहा है कि आखिर चीन से कैसे निपटा जाए? इस समय चीन ने लगातार जिस तरह की धमकी और चेतावनी की भाषा का इस्तेमाल किया है, वैसा दो देशों के बीच सामान्य संबंधों में कभी नहीं होता.
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भारत ने पहले तो पूरा धैर्य दिखाया. लेकिन अंत में उसने 11 बिंदुवार जवाब दे दिया है. यह जवाब बिल्कुल अपरिहार्य हो गया था. जबरदस्ती सड़क बना रहे थे चीनी सैनिक, सिक्किम में प्रवेश किया उन्होंने, हमारे बंकर तोड़े उन्होंने और उल्टे भारत पर ही आरोप कि आपके सैनिकों ने हमारी सीमा में प्रवेश किया. चीन के सरकारी अखबार ‘ग्लोबल टाइम्स’ तो यह कहने लगा कि भारत को कानून सिखाने का वक्त आ गया है और चीन को इस बार भारत को पीछे हटने को मजबूर करना चाहिए. चीन ने नाथू ला दर्रे से कैलाश मानसरोवर की यात्रा तक रोक दी. एक ओर तो चीन के राष्ट्रपति कहते हैं कि भारत और चीन मिलकर 21 वीं सदी को एशिया की सदी बनाएंगे और दूसरी ओर इस तरह का व्यवहार!
चीन चुंबी घाटी के डोकलम में जो सड़क बना रहा था वह भी सीधे-सीधे एक छोटे देश भूटान की जमीन को हड़पने की कार्रवाई है. भारत का भूटान से सुरक्षा समझौता है तो भारतीय सैनिक चीन को ऐसा करने से हर हाल में रोकेंगे. भूटान अपनी सुरक्षा के लिए हम पर निर्भर है. तिस पर भी चीन सीधे-सीधे युद्ध की धमकी दी कि आपने यदि इस तरह अपना रवैया जारी रखा तो 1962 की तरह युद्ध में फिर आपको हराएंगे. युद्ध की बात कहां से आ गई? खैर, वित्त एवं रक्षा मंत्री अरु ण जेटली ने इसका जवाब दे दिया कि चीन हमें 1962 का भारत न समझे. दरअसल, 1962 और 2017 के भारत में बहुत अंतर है. चीन को ऐसे ही जवाब की जरूरत है.
विदेश मंत्रालय ने भी अपने कड़े जवाब में सबसे पहले चीन के उस आरोप को खारिज किया कि भारतीय सैनिकों ने उसकी सीमा में प्रवेश किया था. यह भी साफ किया है कि मौजूदा विवाद असल में भूटान और चीन के बीच है. लेकिन भूटान का रक्षा सहयोगी होने के कारण भारत थिंपू की सीमा के अंदर सड़क बनाने की कोशिशों का विरोध कर रहा है. लिहाजा, भूटानी भूभाग से चीन अपनी सेना हटा ले.
भारत ने हालांकि भारत ने चीन की तरह युद्धजनित भाषा का प्रयोग नहीं किया. इसने कहा है कि दोनों देशों के बीच 2012 में एक समझौता हुआ था कि चुंबी घाटी से जुड़ा सीमा विवाद सभी पक्षों के साथ बातचीत से सुलझाया जाएगा. भारत ने चीन को याद दिलाया कि उसके साथ जुड़े अपने सीमा विवाद को सकारात्मक बातचीत के जरिये सुलझाने पर हमने हमेशा जोर दिया है और चुंबी घाटी का सीमा विवाद भी इसी तरीके से हल किया जाना चाहिए. यह एक परिपक्व देश की संयमित कूटनीतिक भाषा है. तत्काल चीन बातचीत के लिए सहमत हो गया है. भारत के साथ द्विपक्षीय व्यापार में उसके व्यापक आर्थिक हित जुड़े हुए हैं. बावजूद इसके वह सामरिक दृष्टि से भारत की तुलना में अपना वर्चस्व कायम करने की रणनीति पर चल रहा है. भारत की सीमा में घुसने तथा सेना के साथ धक्का-मुक्की की यह पहली घटना नहीं है. पिछले डेढ़ महीनों में चीनी सैनिक लगभग 120 बार भारतीय सीमा में घुस चुके हैं. वर्ष 2016 में चीनी की घुसपैठ की करीब 240 घटनाएं हुई.
चीन का रवैया बहुत साफ है. वह सीमा विवाद को सुलझाना नहीं चाहता है. इससे सामरिक दृष्टि से वह हमसे बेहतर स्थिति में है. अरु णाचल को वह भारत का भाग मानने को तैयार नहीं है. पाकिस्तान से प्राप्त अक्साई चीन को वह निगल चुका है. चीन पाक आर्थिक गलियारा में वह हमारी चिंता और विरोध का संज्ञान लिए बगैर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर को शामिल कर चुका है. उसकी वन रोड वन बेल्ट की योजना में भी भारत की वाजिब चिंताओं की अनदेखी है. अमेरिका ने हिन्द महासागर तथा एशिया प्रशांत क्षेत्र में हमारी भूमिका को स्वीकार किया है, जो उसे नागवार गुजर रहा है. हम पाकिस्तान को लेकर बहुत बात करते हैं लेकिन अगर आतंकवाद के प्रायोजन को छोड़ दीजिए तो चीन के साथ उससे कम समस्याएं एवं परेशानियां नहीं हैं. जिस चुंबी घाटी में वह सड़क बना रहा है, वह हमारे उत्तर-पूर्वी राज्यों को देश के बाकी हिस्सों से जोड़ने वाले सिलीगुड़ी गलियारा, जिसे चिकेन नेक भी कहते हैं, से केवल 50 किलोमीटर ऊपर है. यह भारत के सामरिक हितों के साथ-साथ आतंरिक सुरक्षा की दृष्टि से यह कितना महत्त्वपूर्ण हिस्सा है. चीन द्वारा उस क्षेत्र को हड़पकर सड़क बनाने का निर्णय करने के पीछे भारत को सामरिक दृष्टि से कमजोर करने की सोच न हो, ऐसा संभव नहीं.
चीन किसी कदम पर वहां सड़क न बनाए इसकी पूरी कोशिश करनी होगी. जिस तरह से चीन ने हमें 1962 की धमकी दी है, हम भी उसे साफ कह सकते हैं कि अगर आपने इस क्षेत्र में सड़क बनाया तो भारत किसी सीमा तक जा सकता है. इसी तरह,सीपीइसी पर भी केवल सामान्य विरोध तक भारत को सीमित नहीं रहना चाहिए. उसे साफ कहना चाहिए कि वह इलाका हमारा है, जिस पर पाकिस्तान ने कब्जा किया हुआ है. अगर आप वहां कोई भी निर्माण करते हैं तो वह भारत से संबंधों की कीमत पर होगा. सच कहा जाए तो चीन ने भारत के सामने निर्णय करने की भी घड़ी ला दी है और परीक्षा की घड़ी भी. जो देश अपने हिस्से के लिए डटकर खड़ा नहीं होता उसका कोई साथ नहीं देता.
क्या हम तिब्बत को स्थायी रूप से चीन का गुलाम बने रखना चाहते हैं? कभी तिब्बत आजाद देश था और वह चीन के साथ हमारे लिए बफर स्टेट की भूमिका में था. उसने तिब्बत पर कब्जा करके हमारी सीमा तक स्वयं को विस्तारित कर लिया है. यह न भूलिए कि चीन के डर से कुछ देश न बोले, लेकिन उसके खिलाफ देशों की संख्या कम नहीं है. दक्षिण चीन सागर को हड़पने पर वियतनाम, लाओस, सिंगापुर, ताईवान, फिलिपीन आदि देश उसके खिलाफ हैं. जापान के साथ उसका विवाद है. मंगोलिया के साथ उसका विवाद है. इसके अलावा, दक्षिण कोरिया से लेकर ऑस्ट्रेलिया जैसे देश चीन की नीतियों के मुखर विरोधी हैं. इन देशों से आज हमारे अच्छे संबंध हैं. कल अगर टकराव भी होता है तो चीन के साथ पाकिस्तान को छोड़कर शायद ही कोई देश आएगा. कोई आए या न आए चीन से आपको एक न एक दिन निपटना ही होगा.
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