वैश्विकी : बेदखली के खौफ से झुके-झुके हैं नवाज

Last Updated 16 Apr 2017 03:17:28 AM IST

भारत और पाकिस्तान के बीच पिछले एक वर्ष के दौरान संबंधों में जमी बर्फ के पिघलने के आसार उस समय और कम हो गए जब इस्लामाबाद के सैन्य प्रतिष्ठान ने एक पूर्व भारतीय नौसैनिक अधिकारी कुलभूषण जाधव को बगैर पुख्ता सबूतों के बंद दरवाजे के पीछे मौत का फरमान सुना दिया.


वैश्विकी : बेदखली के खौफ से झुके-झुके हैं नवाज

आतंकवाद एवं जासूसी के मामले में कथित संलिप्तता को लेकर जाधव के मामले की सुनवाई कानून की उचित प्रक्रियाओं का पालन किए बगैर जितनी जल्दबाजी और हड़बड़ी में पूरी की गई उससे पाकिस्तान जाधव के मामले को  आतंकवाद और जासूसी की कथित चादर में लपेटकर वैश्विक बिरादरी को बताना चाहता है कि भारत उसके खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा दे रहा है. ऐसा करके वह अंतरराष्ट्रीय जगत में भारत को बदनाम करके उस पर वैश्विक दबाव बनाना चाहता है.

वैश्विक आतंकवाद से मुकाबला करने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पाकिस्तान के खिलाफ जिस तरह लगातार आक्रामक कूटनीति और तेवर अख्तियार किए हैं कि उससे पाकिस्तान वैश्विक मंच पर अलग-थलग पड़ता जा रहा है. जाधव के मामले में पाकिस्तान की फौरी कार्रवाई इसी हताशा का परिणाम है. पाकिस्तानी सेना की यह कार्रवाई आगे चलकर नवाज शरीफ की लोकतांत्रिक सरकार को कमजोर करने वाली साबित हो सकती है. जाधव के मसले पर पाकिस्तान के अंदर भारत विरोध के नाम पर कट्टरपंथी शक्तियां लामबंद होकर सैन्य प्रतिष्ठान का समर्थन कर रही हैं, और भारत को नीचा दिखाने का यह माकूल अवसर मान रही हैं. पाकिस्तान के घरेलू स्तर पर भारत विरोधी भावनाओं का राजनीतिक लाभ वहां के सैन्य प्रतिष्ठान को ही मिलने वाला है, नवाज शरीफ की सरकार को नहीं. वैसे भी वहां परंपरागत रूप से शासन में सेना की सर्वोच्चता स्थापित हो चुकी है.  अगर जाधव के मामले में लोकप्रियता हासिल करके सेना प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को अपदस्थ करके सत्ता पर काबिज हो जाए तो किसी को हैरानी नहीं होनी चाहिए.

भारत और पाकिस्तान के बीच जारी तनाव से वहां की सरकार और विशेष रूप से सेना ऊर्जा और वैधता हासिल करती है. भारत के साथ जानबूझ कर तनाव पैदा करके वह पश्चिमी देशों को द्विपक्षीय संबंधों में हस्तक्षेप करने का अवसर मुहैया कराती है ताकि भारत पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाया जाए और कश्मीर के मामले का अंतरराष्ट्रीयकरण हो. यही वजह है कि जैसे ही ट्रंप प्रशासन ने दोनों देशों के बीच जारी तनाव को कम करने के लिए हस्तक्षेप करने का प्रस्ताव उछाला तो पाकिस्तान ने तुरंत उसका स्वागत किया जबकि भारत ने खारिज कर दिया. दलाईलामा की अरुणाचल प्रदेश की यात्रा को लेकर चीन की भारत को धमकी ने पाक सेना के मनोबल को शिखर पर पहुंचाने का काम किया है. हालांकि भारत ने चीन को जिस तरह अपने तरीके से तवज्जो नहीं दी, उससे बहुतों को निराशा हुई होगी. बहरहाल, भारत ने जाधव के मामले में पाक के अड़ियल व वियना संधि के प्रतिकूल रवैये पर जिस तरह का कड़ा रुख अपनाया है, वह अपेक्षित है. इससे यह लगता है कि अगर पाकिस्तान ने अगर अपने रवैये पर पुनर्विचार नहीं किया तो तल्खी और बढ़ेगी.

डॉ. दिलीप चौबे
लेखक


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