जीएसटी : आसान होती दिख रही राह

Last Updated 21 Feb 2017 05:58:34 AM IST

वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) परिषद की 18 फरवरी को राजस्थान के उदयपुर में हुई बैठक में राज्यों को होने वाले संभावित नुकसान की भरपाई करने का रास्ता साफ हो जाने के बाद जीएसटी की राह आसान हो गई है.


जीएसटी : आसान होती दिख रही राह

लंबे समय तक टाल-मटोल के बाद अंतत: पांच साल तक राज्यों के नुकसान की भरपाई के नियम-कायदों पर सहमति बन गई है. इसके अलावा, वित्तीय शक्तियों के प्रत्यायोजन, छूट देने की सीमा, कृषि की परिभाषा आदि पूर्व के विवादित विषयों पर भी आम राय बन गई है. विविध वस्तुओं को अपेक्षित स्लैब में रखने पर भी सर्वसहमति से फार्मूला तैयार कर लिया गया है. हालांकि, अभी भी एकीकृत जीएसटी, केंद्रीय जीएसटी, राज्य जीएसटी पर सहमति नहीं बन पाई है.

जीएसटी परिषद की ताजा बैठक की एक और अहम उपलब्धि विविध करों के दर पर सहमति का होना है. सर्वसम्मति बनाने के लिए जीएसटी की परिधि से अनाज को बाहर रखा गया है. साथ ही, एक और विवादित विषय सोने पर कर लगाने के मुद्दे पर भी अंतिम फैसला नहीं लिया गया है, लेकिन तंबाकू से संबंधित उत्पादों पर 65 प्रतिशत कर आरोपित किया गया है. देखा जाए तो जीएसटी की राह का सबसे बड़ा रोड़ा राज्यों को होने वाले नुकसान की प्रतिपूर्ति करने से जुड़ा हुआ था.

अब उस पर केंद्र और राज्यों के बीच आम सहमति बन जाने के बाद जीएसटी के 1 जुलाई से लागू होने की संभावना बढ़ गई है, क्योंकि एकीकृत जीएसटी, केंद्रीय जीएसटी, राज्य जीएसटी मूल रूप से करों के संग्रह एवं उसके बंटवारे से संबंधित हैं, जिन पर सहमति बनने में ज्यादा परेशानी नहीं दिखती. हालांकि, जीएसटी को लक्ष्य के अनुरूप अमलीजामा पहनाने में सरकार को कड़ी मशक्कत करनी पड़ सकती है, क्योंकि जीएसटी परिषद द्वारा जीएसटी से जुड़े तमाम नियमों और मौजूदा समय में चल रहे बैठकों के फैसलों को पहले मसौदे की शक्ल में अनुमोदित करना होगा.

फिर बिल को राज्य सभा और राज्यों की  विधान सभाओं में पारित कराना होगा.  जीएसटी अप्रत्यक्ष कर प्रणाली है, जो मूल्यवर्धित कर (वैट) से अलग है. वैट सिर्फ वस्तुओं पर लगता है, जबकि जीएसटी वस्तुओं एवं सेवाओं दोनों पर लगेगा. जीएसटी को केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर लगाने का प्रस्ताव है. जीएसटी एक्साइज ड्यूटी, सर्विस टैक्स, वैट, एंट्री टैक्स आदि की जगह लागू किया जाने वाला है. दूसरे शब्दों में कहें तो जीएसटी लागू होने के बाद वस्तुओं और सेवाओं पर अलग-अलग लगने वाले सभी कर एक ही कर ‘जीएसटी’ में समाहित हो जाएंगे.

इसके लागू होने से उपभोक्ताओं को देश भर में किसी भी सामान या सेवा का एक शुल्क अदा करना होगा. टीवी, गाड़ी, फ्रिज एक ही कीमत पर मुंबई, दिल्ली, पटना, भोपाल आदि शहरों में उपभोक्ताओं को मिल सकेगा. इतना ही नहीं सेवा के उपभोग के मामले में भी ऐसा ही होगा. अप्रत्यक्ष कर की इस नई व्यवस्था से अर्थव्यवस्था को 60 लाख करोड़ रु पये का फायदा होने का अनुमान है, जिससे सरकार रोजगार सृजन, आधारभूत संरचना का विकास, औद्योगिक विकास को गति, अर्थव्यवस्था को मजबूत आदि करने में समर्थ हो सकेगी. इससे लाजिस्टिक लागत में भी कमी आएगी. रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने भी कहा था कि जीएसटी लागू होने से देश के विकास को गति मिलेगी.

राजन का मानना है कि इसे अमलीजामा पहनाने से एकीकृत कर बाजार का लक्ष्य, कर संग्रह में सुधार और कर के दायरे के विस्तार में मदद मिलेगी. फिलहाल, विमुद्रीकरण के कारण शहरों, कस्बों व ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के संकट पैदा हो गए हैं. सब्जी वाले, रेहड़ी वाले, खोमचे वाले, चाय वाले, मछुआरे, कसाई, छोटे-मोटे होटल व्यवसायी आदि का धंधा या तो चौपट हो गया है, या फिर वे बमुश्किल जीवकोपार्जन कर पा रहे हैं. रियल एस्टेट एवं कुटीर उद्योग में काम करने वाले कामगार बेरोजगार हो गए हैं.

स्थिति सामान्य होने के बाद भी उत्पादन शुरू करने में कल-कारखानों को कुछ वक्त लगेगा. हालत सामान्य होने पर जब उत्पादों की मांग बढ़ेगी तो उनकी पर्याप्त आपूर्ति नहीं होने से मुद्रास्फीति में बढ़ोतरी होने की संभावना है. ऐसे नकारात्मक माहौल में जीएसटी लागू करने से जब केंद्रीय उत्पाद शुल्क, सेवा कर, अतिरिक्त सीमा शुल्क और राज्य स्तर पर वैट, मनोरंजन, विलासिता, लॉटरी कर, बिजली शुल्क आदि जीएसटी में समाहित हो जाएंगे जिससे कारोबारियों को कर की विसंगतियों से छुटकारा मिलेगा. उद्योग-धंधों, देशी-विदेशी निवेश में तेजी आएगी. विकास और गुलाबी अर्थव्यवस्था को बल मिलेगा.

सतीश सिंह
लेखक


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