तमिलनाडु : उलझती जा रही सियासत
जयललिता के विदा होते समय जिस शांति से तमिलनाडु की राजनीति में सत्ता परिवर्तन हुआ उससे लगा ही नहीं कि यह कलयुग है, और तमिलनाडु में भी इसी युग के लोग राजनीति करते हैं.
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पर इससे भी ज्यादा यह लगा कि जयललिता और उनकी मित्र शशिकला की दोस्ती ही नहीं आचरण भी सतयुगी रहा है.
राज्य के अधिकांश लोग ही नहीं हर दल का, हर नेता उनकी मौत से दुखी है. दो महीने बीते नहीं कि सारा कुछ कलयुगी दिखने लगा है. अगर वे जीवित होतीं तो शशिकला के साथ ही सजा पाकर सत्ता से बाहर होतीं. अदालत के दोटूक फैसले से शशिकला का सपना तो टूटा है, पर संपत्ति बिकवा कर क्षतिपूर्ति कराने का अदालती आदेश अगर अमल में आया तो यह नजीर बनेगा. पर राज्य की राजनीति में जो भूचाल आया है, वह कहां जाकर रु केगा, कहना मुश्किल है.
गड़बड़ तो पहले ही शुरू हो गई थी. शशिकला ने न सिर्फ पार्टी प्रमुख की कुर्सी हथिया ली थी, बल्कि जयललिता की अनुपस्थिति में दो बार मुख्यमंत्री का पद संभालने और दोनों बार जस का तस वापस करने वाले ओ. पन्नीरसेल्वम को भी सत्ता से हटाकर खुद मुख्यमंत्री बनने का फैसला करा लिया था. बिना किसी परेशानी के मुख्यमंत्री बन गए पन्नीरसेल्वम ने बिना परेशानी के ही इस्तीफा दे दिया. अब इस्तीफा देने के बाद अचानक उनकी अंतरात्मा जागी और वे न सिर्फ जयललिता की समाधि पर मौन व्रत लेकर बैठे बल्कि कहने लगे कि उनसे जबरन इस्तीफा लिया गया. अब यह एक तरह से अपने हाथ काटकर देने के बाद शिकायत जैसा मामला लगता है. पर चतुर पन्नीरसेल्वम ने उसी राज्यपाल को शिकायत भी की जिन्हें इस्तीफा दे चुके थे. और उनकी साफ दिखती नादानी के बावजूद शशिकला के रंग-ढंग से त्रस्त कमल हासन जैसे कई लोग खुलकर उनके पक्ष में बोलने भी लगे.
राज्यपाल ने भी कमाल किया कि इस्तीफा स्वीकार करने के बाद फिर से उसे वापस कर दिया. पर शशिकला ने भी बेंगलुरु की जेल जाने से पहले इड्डपल्ली पलानीस्वामी को मुख्यमंत्री पद का दावेदार चुनवा कर अपने गुट का दावा आगे कर दिया. चालाक शशिकला को पन्नीरसेल्वम का रुख बदलते ही दाल में खोट लगी तो उन्होंने अपने समर्थक विधायकों को समेटा और कथित पार्टी कार्यकर्ताओं/बाउंसरों की देखरेख में एक होटल में रखा और भारतीय राजनीति में बार-बार दिखा नाटक दोहराया जाने लगा. इस बीच राज्यपाल, जो तमिलनाडु का प्रभार भर लिये हुए हैं, अपना फैसला टालते रहे-अदालती केस के फैसले की आड़ भी मिल गई. उधर, लगभग खाली हाथ हो गए पन्नीरसेल्वम की शिकायत का एक दूसरा पक्ष यह था कि शशिकला पर कई गंभीर मामले चल रहे थे और वे किसी भी सदन की सदस्य नहीं हैं. जाहिर है राज्य की राजनीति के सारे सूत्र अचानक शशिकला की जगह राज्यपाल के हाथ में चले गए हैं, जिनका भाजपा की राजनीति और केंद्र सरकार के निर्देश से गहरा रिश्ता है.
जाहिर तौर पर अब राज्य की राजनीति बहुत उलझी दिख रही है. अदालत के फैसले में राजनीति और भ्रष्टाचार के रिश्ते पर गहरी चोट डालने की क्षमता है. जस्टिस पी.सी.घोष और जस्टिस अमिताव राय की बेंच ने न सिर्फ कर्नाटक हाई कोर्ट द्वारा दी गई सजा को उलट दिया बल्कि चार साल जेल और संपत्ति बेचकर दस करोड़ रुपये देने का फैसला करके मिसाल कायम की. उल्लेखनीय है कि ट्रायल कोर्ट ने भी यही फैसला दिया था, जिस पर हाई कोर्ट ने रोक लगा दी थी. दोषी तो जयललिता, शशिकला, उनकी भाभी इलावर्सी और उनके भतीजे सुधाकरन हुए पर जाहिर तौर पर अब मुख्य नुकसान शशिकला को उठाना होगा. एक खास मुकाम पर पन्नीरसेल्वम के विरोध के साथ आए फैसले ने उनकी राजनैतिक महत्त्वाकांक्षाओं को तो लगभग समाप्त कर दिया है, पर इससे तमिलनाडु ही नहीं देश की राजनीति में भी एक खौफ पैदा होगा.
दो महीने पहले जयललिता की मौत के समय भी हल्की राजनीति हुई थी. तब मुख्यमंत्री का चुनाव तो आसानी से हो गया पर पार्टी प्रमुख, जिसे महासचिव कहा जाता है, से लेकर सत्ता के असली समीकरणों को संभालने और संचालन की होड़ लगी. बाद में जब शशिकला को, जिनकी राजनीति जयललिता के करीब रहने और एक बार जहर देकर मारने की कोशिश करने से लेकर संपत्ति बनाने और सत्ता के दुरु पयोग तक सीमित मानी जाती थी, भी आराम से महासचिव बना दिया गया. तब एक ही बात की शिकायत हुई कि पन्नीरसेल्वम और शशिकला एक ही जाति के हैं. दूसरी जातियों के लोग परेशानी महसूस करेंगे. पर तभी यह लग गया था कि पन्नीरसेल्वम, थम्बीदुरै और शशिकला की शीर्ष तिकड़ी के साथ इस खेल में भाजपा समेत बाकी दलों की नजर भी है, बल्कि जब जया बीमार थीं और उनके बचने की उम्मीद खत्म हो रही थी, तब उनका हाल जानने के नाम पर दिल्ली के नेताओं ने बार-बार चेन्नै जाकर अपने दांव चलने शुरू कर दिए थे.
शशिकला पार्टी प्रमुख और विधायक दल की नेता चुनी गई थीं पर अब उनकी स्थिति क्या होगी. कल तक अन्नाद्रमुक थेवरों के हाथ में गया लगता था, अब थम्बीदुराई और पलानीस्वामी के चलते गवांडियरों के हाथ चला गया लगता है. कार्यकारी मुख्यमंत्री पन्नीरसेल्वम ने दबाव की शिकायत की है. राज्यपाल चाहें तो उन्हें काम करते रहने और उपयुक्त अवसर पर सदन में बहुमत साबित करने को कह सकते हैं. वे उत्तर प्रदेश में जगदम्बिका पाल बनाम कल्याण सिंह जैसी स्थिति के निपटारे के लिए सदन में वोटिंग करा सकते हैं. उनके पास तीसरा विकल्प विधान सभा को भंग करने का भी है. वे विधान सभा को स्थगित रखकर राष्ट्रपति शासन भी चला सकते हैं. कौन-सा विकल्प चुनते हैं, यह विद्यासागर राव और केंद्र सरकार पर निर्भर करेगा. वैसे, थम्बीदुरै के साथ होने से शशिकला गुट ताकतवर लगता है लेकिन आम जन में उसके प्रति एक गुस्सा है. अभी भी जयललिता की मौत को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं हैं, और जब पन्नीरसेल्वम कहते हैं कि उन्हें अस्पताल में जया से मिलने भी नहीं दिया गया तो काफी लोगों की सहानुभूति उनके साथ हो जाती है. राज्य की राजनीति ही नहीं यह अदालती फैसला मुल्क की राजनीति के लिए भी नया दौर लाएगा. यह बात उतने भरोसे से नहीं कही जा सकती.
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