बजट : दलितों-आदिवासियों को उनका हक दें

Last Updated 16 Feb 2017 04:19:34 AM IST

केंद्र सरकार ने अपने बजट में दलितों, आदिवासियों का बड़ा ‘कल्याण’ किया है. उनके लिए बजट आवंटन की श्रेणी में ही ‘कल्याण’ को चस्पा कर दिया है.


बजट : दलितों-आदिवासियों को उनका हक दें

साल 2017-18 में अनुसूचित जातियों के लिए जो बजट आवंटन किया गया है, उसका शीषर्क है-‘अनुसूचित जातियों के कल्याण के लिए आवंटन’. एक श्रेणी और है, जिसका शीषर्क है-‘अनुसूचित जनजातियों के कल्याण के लिए आवंटन’. इससे पहले तक अनुसूचित जाति उप योजना और अनुसूचित जनजाति उप योजना के तहत ये आवंटन किए जाते थे. तो इससे सरकार के बड़े दिल का पता चलता है. लेकिन क्या श्रेणियों के नाम बदलने के साथ-साथ सरकार ने सचमुच इन वर्गों के लिए अपने दिल को बड़ा किया है? दिल खोलकर आवंटन किया है?

बजट विश्लेषण के बाद तो ऐसा कतई नहीं लगता. अनुसूचित जाति के लिए बजट आवंटन में 35 फीसद और अनुसूचित जनजाति के लिए कल्याण के लिए 30 फीसद की वृद्धि की गई है. लेकिन अगर सच्चाई इससे एकदम उलट है. असली सच यह है कि अनुसूचित जातियों के लिए आवंटन में 44 हजार करोड़ रुपये से अधिक और अनुसूचित जातियों के लिए 18 हजार करोड़ रुपये से अधिक की कमी कर दी गई है. यह कैसे संभव है?

दरअसल, पिछले कई सालों के विचार के बाद इस साल बजट में योजनागत व्यय और गैर योजनागत व्यय का विलय कर दिया गया है. 2010 में रंगराजन समिति ने इन दोनों मदों को एक करने की सिफारिश की थी. वैसे, 2010 में गठित एक कार्यबल ने एक सिफारिश और की थी. यह कार्यबल योजना आयोग के सदस्य नरेन्द्र जाधव की अध्यक्षता में गठित किया गया था. इस कार्यबल का कहना था कि अगर इन दोनों मदों को एक कर दिया जाए तो उस स्थिति में अनुसूचित जातियों के लिए कुल बजटीय आवंटन का कम से कम 4.63 फीसद और अनुसूचित जनजाति के लिए 2.39 फीसद हिस्सा निश्चित किया जाना चाहिए. मतलब अगर आप देश के लिए सौ रुपये खर्च करने वाले हैं तो आपको दलितों के लिए कम से कम 4 रु पये 63 पैसे खर्च करने ही चाहिए. इसी तरह आदिवासियों के लिए सौ में से कम-से-कम 2 रुपये 39 पैसे खर्च करने चाहिए. इससे पहले तक राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में इन वर्गों की आबादी के हिसाब से आवंटन किए जाते थे. अनुसूचित जाति-जनजातियों के लिए काम करने वाली संस्थाओं, जैसे एनसीडीएचआर, का कहना है कि सरकार ने योजनागत और गैर योजनागत व्यय को इस बजट में एक तो कर दिया लेकिन जाधव दिशा-निर्देशों को लागू नहीं किया. जिस हिसाब से बजट आवंटन किया गया है, उस हिसाब से इस साल के बजट में से दलितों को सिर्फ 2.5 फीसद और आदिवासियों को सिर्फ 1.53 फीसद हिस्सा दिया गया है. सरकार ने इस साल दलितों के लिए 52,393 करोड़ रु पये का और आदिवासियों के लिए 31,295 करोड़ रुपये का बजट आवंटन किया है.

दरअसल, जब आप कल्याण की बात करते हैं तो उसमें छूट की हमेशा गुंजाइश रहती है. हम किसी को दे रहे हैं तो कुछ कम भी दे सकते हैं. लेकिन जब बात अधिकार की होती है तो आपको उसे हर हाल में उसके हिस्से का देना ही होता है. कल्याण केंद्रित दृष्टिकोण ही इस बजट की दूसरी सबसे बड़ी भूल है-कम-से-कम दलितों और आदिवासियों के मामले में. एनसीडीएचआर के पॉल दिवाकर और बीना पल्लीकल को इसी कल्याण शब्द पर आपत्ति है. उनका कहना है कि सरकार को अधिकार केंद्रित दृष्टिकोण रखना चाहिए, कल्याण केंद्रित नहीं. मगर यह सोचा जाना चाहिए कि कल्याण केंद्रित दृष्टिकोण विकास के र्वटकिल मॉडल से प्रेरित होता है- इसमें राज्य ऊपर होता है-जनता नीचे. जबकि अधिकार केंद्रित दृष्टिकोण विकास का हॉरिजोंटल मॉडल देता है, जिसमें सभी एक पंक्ति में होते हैं. सरकार या प्रशासन के तौर पर हम दलितों, आदिवासियों के कल्याण की बात करते हैं तो हमें अपनी सोच को ही सुधारने की जरूरत है. इन वर्गों ने अपने सुधार और कल्याण के लिए बहुत सारा काम खुद ही किया है. इसलिए बिना भेदभाव किए उन्हें उनका अधिकार दीजिए. नागरिकों का अधिकार होता है, शिक्षा, स्वास्थ्य, बुनियादी सुविधाएं-बजटीय आवंटन में अपनी हिस्सेदारी. दलितों, आदिवासियों को भी वही चाहिए. आप उन्हें वह दीजिए- बाकी का काम वे खुद कर लेंगे.

माशा
लेखिका


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