आम बजट : निवेश का चक्र चले
वर्ष 2017-18 का केंद्रीय बजट एक फरवरी को वित्त मंत्री अरुण जेटली पेश करेंगे.
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नये बजट से संबंधित संकेत उभर कर आ रहे हैं कि वर्ष यह पिछले सभी बजटों से कई बातों में अलग होगा. आजादी के बाद पहली बार देश का कोई बजट फरवरी के आखिरी दिन के बजाय एक फरवरी को प्रस्तुत होगा. यह नोटबंदी के दर्द पर मरहम लगाने के परिप्रेक्ष्य में पिछले बजटों की तुलना में भारी लोक-लुभावन प्रावधानों वाला पहला बजट होगा. साथ ही, नोटबंदी के प्रमुख लक्ष्यों काले धन की रोकथाम, डिजिटल लेन देन को बढ़ाना और आर्थिक गतिविधियों में नकदी का चलन कम करने के प्रोत्साहनदायक प्रावधान करने वाला बजट होगा.
निश्चित रूप से नया बजट उद्योग-कारोबार के परिदृश्य के मद्देनजर प्रोत्साहनदायक अपेक्षित है. नए बजट में कौशल विकास, ढांचागत, श्रम कानून और भूमि अधिग्रहण के लिए बड़े पैमाने पर सुधार दिखाई दे सकते हैं. ‘मेक इन इंडिया’ के तहत ऑटोमोबाइल उद्योग, उसके कंपोनेंट्स और विमानन क्षेत्र को बढ़ावा देने के साथ-साथ इलेक्ट्रॉनिक्स, खाद्य प्रसंस्करण, चमड़ा, टेक्सटाइल्स और गारमेंट उद्योग को आगे बढ़ाने के बड़े हुए आवंटन बजट में हो सकते हैं.
इसके तहत लोगों की क्रय शक्ति और रोजगार बढ़ाने की गरज से सार्वजनिक व्यय बढ़ाने के कदम आगे बढ़ते हुए दिखाई देना अपेक्षित है. वित्त मंत्री द्वारा नये बजट में पूंजीगत खर्च वर्ष 2016-17 के 2.47 लाख करोड़ रुपये के बजट अनुमान से बढ़कर 2.8 लाख करोड़ रुपये के आसपास किया जा सकता है. सड़क, रेलवे, जहाजरानी, आवास परियोजनाओं सहित बुनियादी ढांचा क्षेत्र पर विशेष बल दिया जाना अपेक्षित है. इससे पैदा होने वाली मांग निजी निवेश को प्रोत्साहन दे सकती है.
बजट में नोटबंदी के दर्द पर मरहम लगाने के मद्देनजर किसान, निम्न-मध्यम वर्ग और युवा वर्ग के लिए विशेष राहतकारी योजनाएं दिखाई दे सकती हैं. इसके साथ-साथ शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छता और पेयजल जैसे क्षेत्रों पर भी निवेश में वृद्धि अपेक्षित है. स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए तीन गुना बजट आवंटित किया जा सकता है. बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं के लिए सवा लाख करोड़ रुपये के करीब बजट हो सकता है जबकि पिछले बजट में इस मद के लिए 40 हजार करोड़ रुपये दिए गए थे. ग्रामीण विकास मंत्रालय को 1.06 लाख करोड़ रुपये का भारी-भरकम आवंटन हो सकता है. पिछली बार यह राशि 86,000 करोड़ रुपये थी. इसमें ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी उन्मूलन के लिए नई योजना की घोषणा की जा सकती है.
वहीं किसानों के लिए कर्ज भुगतान अवधि और ब्याज दर में ढील भी अपेक्षित है. बजट के तहत मनरेगा, प्रधानमंत्री आवास योजना, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के लिए 33 फीसद बजट आवंटन बढ़ाना अपेक्षित है. पड़ोसी देशों से मिल रही सामरिक चुनौतियों के कारण रक्षा बजट में भी 10 फीसद वृद्धि अपेक्षित है. चूंकि इस बार बजट के साथ ही मिला हुआ रेल बजट प्रस्तुत होगा, ऐसे में बजट में रेलवे के बुनियादी ढांचे और सुरक्षा के लिए विशेष बढ़ा हुआ आवंटन दिखाई दे सकता है.
वित्त मंत्री बजट में न केवल प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष करों की दर कम करके करों को तार्किक बनाते हुए दिखाई दे सकते हैं, वरन कर प्रशासन में भी सुधार की नई व्यवस्था करते हुए दिख सकते हैं. बजट में छोटे आयकरदाताओं की क्रय शक्ति बढ़ाकर मांग में वृद्धि करने के मद्देनजर इनकम टैक्स छूट की सीमा बढ़ाए जाने की अपेक्षा की जा रही है. बजट के तहत वित्त मंत्री से अपेक्षा की जा रही है कि पिछले वर्ष 2016-17 के बजट में ढाई लाख रुपये की जो छूट सीमा है, उसे बढ़ाकर तीन लाख रुपये किया जाए तथा धारा 80सी के तहत मिलने वाली 1.5 लाख रुपये की छूट को बढ़ाकर 2 लाख रुपये किया जाए.
आवास क्षेत्र में मांग बढ़ाने के लिए आवास ऋण पर भुगतान किए जाने वाले ब्याज के लिए कटौती सीमा 50 हजार रुपये बढ़ाई जा सकती है. बजट में या तो टैक्स स्लैब बढ़ाई जा सकती है, या फिर सबसे निचले स्लैब के लिए टैक्स रेट घटाई जा सकती है. इससे अधिक लोग टैक्स चुकाने के दायरे में आएंगे. ऐसे में 2.5-5 लाख के स्लैब को बढ़ाया जा सकता है, और इस पर टैक्स रेट में कमी की जा सकती है. निश्चित रूप से बजट प्रावधानों के तहत वित्त मंत्री आयकरदाता आधार बढ़ाए जाने के नए कदम उठाते हुए दिखाई दे सकते हैं. नए बजट में आयकर विभाग को विस्तारित करने के लिए भी विशेष प्रावधान हो सकते हैं.
चूंकि वर्ष 2017-18 में सरकार के समक्ष कदम-कदम पर वित्तीय मुश्किलें दिखाई दे रही हैं, और नये बजट में विकास और राहत के लिए भारी संसाधनों को जुटाना कोई सरल काम नहीं है. ऐसे में राजकोषीय घाटा बढ़ता हुआ दिखाई दे सकता. अर्थ विशेषज्ञों का मानना है कि बजट में वित्तीय अनुशासन महत्त्वपूर्ण है, लेकिन मौजूदा आर्थिक परिवेश में पूंजीगत खर्च को बढ़ावा देना समय की मांग है. मौजूदा दौर में वैश्विक मंदी को मात देने के लिए राजकोषीय घाटे के लक्ष्य में नरमी बरतनी उपयुक्त है. ऐसे समय जब प्रमुख विकसित और विकासशील देश सरकारी खर्च बढ़ा रहे हैं, तब भारत के लिए भी इसी रणनीति पर आगे बढ़ना उपयुक्त है.
अतएव बजट के तहत सरकार राजकोषीय घाटे की चिंता छोड़कर ग्रामीण विकास, बुनियादी ढांचा और सामाजिक क्षेत्र पर व्यय और पूंजीगत व्यय बढ़ाने के मद्देनजर राजकोषीय घाटे का लक्ष्य सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 3.5 फीसद तक रख सकती है. आशा करें कि बजट में वित्त मंत्री अर्थव्यवस्था को गतिशील बनाए रखने के लिए एक ओर आम आदमी की क्रय शक्ति बढ़ाने के लिए ग्रामीण विकास, बुनियादी ढांचा और रोजगार बढ़ाने वाली सार्वजनिक परियोजनाओं पर व्यय बढ़ाएंगे वहीं दूसरी ओर, उद्योग-कारोबार और निर्यात क्षेत्र के चेहरे पर मुस्कराहट देने के लिए उपयुक्त राहतकारी बजट प्रावधान करते हुए दिखाई देंगे. ऐसा होने पर ही नए बजट से बाजार में मांग पैदा हो सकेगी और फिर से रुका हुआ निवेश चक्र आरंभ हो सकेगा. उम्मीद है कि बजट यह काम बखूबी करेगा.
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