निषेध के फैसले के निहितार्थ

Last Updated 30 Jan 2017 05:26:41 AM IST

जब डोनाल्ड ट्रंप चुनाव जीत गए तो ऐसे लोगों की संख्या कम नहीं थी, जो मानने लगे थे कि वो चुनाव प्रचार के दौरान अपने आक्रामक तेवरों से अलग व्यावहारिक तौर पर शासन का संचालन करेंगे.


निषेध के फैसले के निहितार्थ

किंतु ट्रंप, जो कहा सो किया के रास्ते पर चल रहे हैं. उन्होंने कहा था कि, पद ग्रहण करते ही सबसे पहले ट्रांस पैसिफिक पार्टनरशिप संधि को खत्म करेंगे. उन्होंने वैसा ही किया. मैक्सिको सीमा से उन्होंने दीवार लगाने की बात की थी. उस पर वे अड़े हैं, योजना भी बना चुके हैं और इसे लेकर तनाव इतना बढ़ गया कि मैक्सिको के राष्ट्रपति ने अमेरिका दौरा तक रद्द कर दिया.

उनका जो सबसे कठोर और दुनिया में हलचल मचाने वाला फैसला हमारे सामने आया है वह है, सात मुस्लिम देशों के नागरिकों के प्रवेश का निषेध, शरणार्थियों के लिए ना और देश के कट्टरपंथियों व आतंकवादियों को बाहर खदेड़ने की घोषणा. मीडिया की आलोचनाओं का तो उन पर असर ही नहीं है. मीडिया को वे झूठा और मक्कार घोषित कर चुके हैं. ऐसे में यह प्रश्न स्वाभाविक तौर पर उठता है कि आखिर ट्रंप कहां तक आगे जाएंगे एवं इनके परिणाम क्या होंगे? ट्रंप ने अमेरिका के रक्षा मुख्यालय पेंटागन का पहला दौरा किया और इस कार्यकारी आदेश \'प्रोटेक्शन ऑफ द नेशन फ्रॉम फॉरेन टेररिस्ट एंट्री इनटू द युनाइटेड स्टेट्स\' पर हस्ताक्षर कर दिए. इसके अनुसार मुस्लिम देशों इराक, ईरान, सीरिया, सूडान, लीबिया, सोमालिया और यमन के लोगों के लिए वीजा पर तत्काल रोक लगा दी गई है. छह देशों के लोगों के लिए 90 दिन तक अमेरिका में प्रवेश निषेध हो गया है, सीरिया के लिए यह आदेश अनिश्चितकालीन है.

अमेरिका में शरणार्थियों को स्वीकारने संबंधी कार्यक्रम, जिसे \'यूएस रिफ्यूजी एडमिशन्स प्रोग्राम\' कहते हैं, को 120 दिन के लिए बंद कर दिया गया है. यानी अगले चार महीनों तक कोई शरणार्थी अमेरिका में स्वीकार नहीं किया जाएगा. आगे भी ये तभी शुरू किया जाएगा, जब ट्रंप मंत्रिमंडल के सदस्य अच्छी तरह जांच कर लेंगे. अच्छी तरह जांच से क्या तात्पर्य है यह हमें स्मझना होगा. आदेश पर हस्ताक्षर के बाद ट्रंप ने कहा कि हम एक नया कानून बनाने जा रहे हैं, जिसके मुताबिक इस्लामिक कट्टरपंथियों और आतंकवादियों को देश को बाहर खदेड़ दिया जाएगा. हम उन्हें देश में देखना ही नहीं चाहते. ट्रंप ने यह भी कहा कि वह कट्टरपंथी इस्लामी आतंकवादियों से अमेरिका को सुरक्षित कर रहे हैं. ऐसे आदेश और घोषणाओं पर दुनिया में हलचल मचना लाजिमी है. दुनिया में ऐसा करने वाला अमेरिका पहला देश हो गया है. मजहब के आधार पर देशों के नागरिकों को अपने देश में प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने का आधुनिक इतिहास में कोई उदाहरण नहीं है. ओबामा प्रशासन ने कभी आतंकवाद को मुसलमानों तक सीमित नहीं किया था. ट्रंप यही कर रहे हैं.



वस्तुत: ट्रंप जो कुछ कह रहे हैं और उनके आदेश में जो लिखा गया है, उससे पूरी दुनिया में एक नई स्थिति पैदा हो गई है. उदाहरण के लिए कार्यकारी आदेश में कहा गया है कि कई विदेशी मूल के आतंकवादी 9/11 के बाद से आतंकवाद फैलाने के आरोप में सजा पा चुके हैं. इनमें से कई तो पर्यटक, छात्र बनकर या रोजगार वीजा या फिर शरणार्थी बनकर अमेरिका में दाखिल होते हैं. यह कैसे सुनिश्चित किया जाएगा कि किसके प्रवेश करने से अमेरिका को दिक्कत होगी और किसके करने से नहीं होगी? यह कैसे पता लगेगा कि कौन अमेरिका में संविधान और कानून से छेड़छाड़ करेगा?

जाहिर है, इन देशों के जो नागरिक अमेरिका में रह रहे हैं या जिनको अमेरिका की नागरिकता मिल गई है उनकी संभवत: नए सिरे जांच की जाएगी. जो इन देशों के नहीं हैं और उनके इस्लामी आतंकवाद से जुड़े होने के संदेह की बात जांच एजेंसियों ने की तो उनके लिए भी वहां रहना मुश्किल हो जाएगा. खदेड़ने का मतलब यही निकाला जा सकता है कि इसमें जिन पर भी थोड़ा संदेह हुआ, उसे देश से बाहर धकेल दिया जाएगा. यह सवाल भी उठ रहा है कि जो आदेश अभी 90 दिनों के लिए है वह आगे बढ़ेगा या अभियान चलाकर जांच-परख करने के बाद फिर से वीजा देना आरंभ किया जाएगा? ट्रंप के तेवर को देखते हुए तत्काल यह कहना मुश्किल है कि वाकई 90 दिन पूरा होते स्थिति बदल जाएगी. यही बात शरणार्थियों के संदर्भ में भी लागू होती है. कहा जा रहा है कि नए नियम में इस बात की पुख्ता व्यवस्था करने की कोशिश की जाएगी कि जिसे शरणार्थी का दर्जा दिया गया है वे अमेरिका की सुरक्षा के लिए कोई खतरा पैदा नहीं करें.

हम यहां उन लोगों को उद्धृत करना नहीं चाहते, जिनने इस आदेश की आलोचना की है या जो ट्रंप से आदेश को वापस लेने का अनुरोध कर रहे हैं. उनमें अनेक संगठन और नामी लोग शामिल हैं. कुछ संगठन संघीय न्यायालय का दरवाजा खटखटाने की भी घोषणा कर रहे हैं. किंतु इससे ट्रंप तत्काल प्रभावित होंगे ऐसा नहीं  लगता. जो व्यक्ति पेंटागन का पहला दौरा करने के साथ ऐसे आदेश पर हस्तक्षर करता है वह इसका अर्थ भी समझता है. ट्रंप 11 सितम्बर 2001 के हमलों की याद दिलाते हुए कहते हैं कि हम न तो उसकी की सीखें भूलेंगे और न ही उन जवानों को जिन्होंने पेंटागन में जान गंवा दी थी. वो हमारे श्रेष्ठतम जवान थे. साफ है कि हस्ताक्षर के साथ ही ट्रंप जिस दिशा में आगे बढ़ गए हैं, उनमें तत्काल पूर्ण विराम दूर तक दिखाई नहीं देता है. तो फिर होगा क्या? इसका उत्तर देना कठिन है.

आतंकवादी एवं कट्टरपंथी दुनिया भर में अमेरिका के खिलाफ वातावरण बनाने की फिर से प्रबल कोशिश करेंगे, जो वे पहले से कर रहे हैं. यह कहा जाएगा कि देखो, अमेरिका किस तरह मुसलमानों से भेदभाव करता है. हालांकि, इस्लामिक सहयोग संगठन के 56 देशों में से केवल सात पर ही उन्होंने प्रतिबंध लगाया है, लेकिन यह सामान्य नहीं है. वैसे 11 सितम्बर हमले में सबसे ज्यादा सऊदी अरब के नागरिक शामिल थे और उसकी योजना अफगानिस्तान और पाकिस्तान में बनाई गई थी तो इन देशों को आदेश से बाहर क्यों रखा गया? इसका जवाब यह दिया गया है कि इनका निषेध नहीं होगा, किंतु इनके नागरिकों के साथ पूरी कड़ाई बरती जाएगी. देखते हैं क्या होता है?

अवधेश कुमार


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