पीएम संबोधन : आह्वान को कैसे समझें
निस्संदेह, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के 31 दिसम्बर को राष्ट्र के नाम संबोधन को लेकर पूरे देश में उत्सुकता थी.
![]() पीएम संबोधन : आह्वान को कैसे समझें |
यह 8 नवम्बर की तरह अचानक घोषित कार्यक्रम नहीं था, जिसे लेकर सस्पेंस कायम हो. यह साफ था कि पुराने 500 और 1000 के नोटों की वापसी के लिए जो 30 दिसम्बर तक का सामन्य समय दिया गया था उसके बाद प्रधानमंत्री का भाषण उस पर केंद्रित होगा और उसमें आगे के कुछ कदमों की घोषणाएं होंगी.
अगर थोड़े शब्दों में कहा जाए तो प्रधानमंत्री के पूरे भाषण में देश को भ्रष्टाचार और कालाधन से मुक्त कर सच्चाई और ईमानदारी के रास्ते पर चलने का आह्वान था, ऐसा न करने वालों के विरुद्ध कार्रवाई की चेतावनी थी तो देश को लेकर यह अदम्य विश्वास कि वाकई ऐसा हो सकेगा. उदाहरण के लिए उन्होंने यह भाव प्रकट किया कि जनशक्ति का समर्थन किसे कहते हैं, उत्तम अनुशासन किसे कहते हैं, अप प्रचार के बावजूद सत्य के लिए संघर्ष करना और ईमानदारी का संकल्प लेकर विजय भाव से काम करना किसे कहते हैं इन सबका उदाहरण देशवासियों ने प्रकट किया है. उनके अनुसार बाहरी शक्तियों के खिलाफ तो देशभक्ति का भाव पैदा होते तो दुनिया देखती है. लेकिन भ्रष्टाचार और काला धन जैसी अपनी ही विकृतियों के खिलाफ इस तरह देशभक्ति को प्रकट करने की घटना हर किसी को नये सिरे से सोचने को प्रेरित करेगा.
प्रधानमंत्री के वष्रात पर दिए गए भाषण को लेकर दो राय हैं. समर्थक इसे भ्रष्टाचार एवं काले धन के विरुद्ध प्रेरक, संकल्प के साथ कार्रवाइयों से भरा और गरीबों, निम्न मध्यम वर्ग एवं मध्यम वर्ग को सहयोग करने वाला बता रहे हैं, इसे आर्थिक विकास को गति देने के लिए उठाए गए कदमों के रूप में उद्धृत कर रहे हैं तो विरोधी इसे बिल्कुल निराशाजनक. कांग्रेस की विरोधी प्रतिक्रियाएं हमारे सामने हैं. सच्चाई इन दोनों के बीच है. इसे समझने के लिए हम इस बात पर विचार करें कि आखिर प्रधानमंत्री के भाषण से उम्मीदें क्या थीं और उन संदभरे में उन्होंने क्या कहा? सबसे पहली उम्मीद तो यही थी कि नोट वापसी का चरण जब खत्म हो गया तो उसका परवर्ती कदम क्या होगा?
यानी इसके बाद भ्रष्टाचार और काले धन को रोकने के लिए और आगे कालाधन पैदा न हो इसके लिए कुछ कदमों की वे घोषणा करते हैं या नहीं. इस दृष्टि से देखें तो निष्कर्ष मिश्रित आएगा. उन्होंने महात्मा गांधी के चंपारण सत्याग्रह शताब्दी की चर्चा करते हुए सत्य को अपनाने का आह्वान किया, यह भी कहा कि बेईमानों को रास्ते पर आना पड़ेगा, उनके लिए आगे का रास्ता बंद है, सरकारी अधिकारियों के लालफीताशाही की चर्चा करते हुए कहा कि इससे जनता को कष्ट होता है इसका अंत करना होगा, बैंकों के जिन कुछ अधिकारियों और उनके साथ सरकारी अधिकारियों ने इस बीच परिस्थितियों का लाभ उठाकर भ्रष्टाचार किया उनको बख्शा नहीं जाएगा आदि.
उन्होंने यह भी कहा कि ऐसे हालात बनाने होंगे कि ईमानदारी प्रतिष्ठित हो, वह दबे नहीं. तो इसमें भावनात्मक रूप से हमको आपको कुछ क्षण के उद्वेलित करने के तत्व तो थे, हम यह भी नहीं कहते कि प्रधानमंत्री के इरादे में कोई छल होगा, उन्होंने एक माहौल भी ईमानदारी और सच्चाई के पक्ष में बनाई. लेकिन आगे के कदमों को लेकर ठोस बातों का अभाव था. शायद वे नूतन वर्ष की शुरु आत में आगे तुरंत कोई बड़ा झटका देना नहीं चाहते हों.
दूसरी अपेक्षा और देश का ज्यादा ध्यान बैंकों से धन निकालने की सीमा खत्म करने को लेकर थी. इस संबंध में उन्होंने इतना ही कहा कि बैंक जल्दी-से-जल्दी सामान्य क्रियाकलापों की ओर लौटें खासकर दूरवर्ती और ग्रामीण क्षेत्रों में इस पर ध्यान केंद्रत किया जा रहा है. साफ है कि आगे धीरे-धीरे ही बैंकों से धन निष्कासन की सीमा हटाई जाएगी अभी नहीं. वैसे एटीएम से ढाई हजार की सीमा को साढ़े चार हजार पहले ही किया जा चुका है. तो यह घोषणा करने की आवश्यकता प्रधानमंत्री को नहीं थी.
किंतु उन्होंने बैंकों से सीमाएं हटाने की कोई निश्चित समयावधि घोषित नहीं की, इससे यह अनुमान लगता है कि जितना रुपया प्रचलन में चाहिए उसकी पूर्ति होने में समय लग रहा है. उन्होंने यह तो कहा कि अर्थव्यवस्था में नकदी का अभाव तकलीफदेह है तो नकदी का प्रभाव और तकलीफदेह. हमारा प्रयास है कि इसका संतुलन बना रहे. यानी न ज्यादा नकदी हो और न कम. इस तरह कहा जा सकता है कि इसकी ओर ध्यान तो है कि नकदी को एक सीमा तक ही रखा जाएगा किंतु वह सकल घरेलू उत्पाद का कितना होगा इस पर शायद अभी अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है.
बड़े शहरों में 9 लाख और 12 लाख रुपयों में घर मिलने की स्थिति अभी नहीं है. इसलिए इतने में यदि आप छूट देते हैं तो भी इसके लाभार्थी बड़े शहरों में कम होंगे. किसानों के लिए और करने की जरूरत है. हो सकता है शेष बातें हमें बजट में सुनने को मिले, लेकिन इस समय ये घोषणाएं थोड़ी छोटी लगतीं हैं. भ्रष्टाचार की जननी राजनीतिक भ्रष्टाचार को माना जाता है. यह सच है कि अगर राजनीति में भ्रष्टाचार खत्म हो जाए तो कम-से-कम शीर्ष स्तर पर बड़े भ्रष्टाचार काफी हद तक रुक जाएंगे. प्रधानमंत्री से इस विषय पर विस्तार से ठोस बात करने की उम्मीद थी. उन्होंने इसकी चर्चा तो की. यह कहा कि वक्त आ चुका है कि सभी राजनेता और राजनीतिक दल ईमानदार नागरिकों की भावनाओं का आदर करें, जन आक्रोश को समझें..पारदर्शिता को प्राथमिकता देते हुए भ्रष्टाचार एवं कालाधन से मुक्त करने के लिए कदम उठाएं.
यानी प्रधानमंत्री ने यह तो स्वीकार किया कि राजनीतिक क्षेत्र में भी भ्रष्टाचार व काला धन है और उसे खत्म करने की जरूरत भी है. लेकिन इसे सभी दलों से अपील तक सीमित करने से बहुत कुछ होने वाला नहीं है. फिर भी प्रधानमंत्री ने देश में ईमानदारी, सच्चाई के माहौल और व्यवहार की पुनस्र्थापना और किसानों, गरीबों एवं निम्न मध्यम वर्ग, मध्यम वर्ग, छोटे कारोबारियों पर ध्यान दिया है, इसका स्वागत किया जा सकता है.
| Tweet![]() |