अब बिना डिग्री प्रोफेसर बनाने की तैयारी

Last Updated 23 Aug 2022 12:44:03 PM IST

विश्वविद्यालय एवं उच्च शिक्षण संस्थान जल्द एक नयी श्रेणी के तहत शिक्षक संकाय के रूप में प्रतिष्ठित विशेषज्ञों को नियुक्त कर सकेंगे और इसके लिए औपचारिक पात्रता एवं प्रकाशन से जुड़ी अर्हताएं अनिवार्य नहीं होंगी।


अब बिना डिग्री प्रोफेसर बनाने की तैयारी

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) की पिछले सप्ताह हुई 560वीं बैठक में यह निर्णय लिया गया और प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस’ (पेशेवर प्रोफेसर) योजना के अगले महीने अधिसूचित किये जाने की संभावना है।  आयोग द्वारा मंजूर इस योजना के मसौदा दिशा-निर्देश के अनुसार इंजीनियरिंग, विज्ञान, मीडिया, साहित्य, उद्यमिता, सामाजिक विज्ञान, ललित कला, लोक सेवा, सशस्त्र बल आदि क्षेत्रों के विशेषज्ञ इस श्रेणी में नियुक्ति के पात्र होंगे।

मसौदे के अनुसार जिन लोगों ने विशिष्ट पेशों में विशेषज्ञता साबित हो या जिनका सेवा या अनुभव कम से कम 15 वर्षो का हो, विशेष रूप वे वरिष्ठ स्तर पर हों ‘प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस’ श्रेणी के लिए पात्र होंगे। अगर उनका शानदार पेशेवर अनुभव या कार्य हो, तब इसके लिए औपचारिक अकादमिक पात्रता अनिवार्य नहीं होगी। इसके आगामी शैक्षणिक सत्र से प्रभावित होने की संभावना है। इसमें कहा गया है कि इन विशेषज्ञों को प्रोफेसर स्तर पर शिक्षक संकाय के रूप में नियुक्ति के लिए निर्धारित प्रकाशन एवं अन्य पात्रता दिशानिर्देशों से छूट होगी।  
दिशा-निर्देशों के अनुसार हालांकि उनके लिये कर्तव्यों एवं जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिये जरूरी कौशल आवश्यक होगा।

आयोग ने निर्णय किया है कि उच्च शिक्षण संस्थानों में ‘प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस’ की संख्या मंजूर पदों के 10 प्रतिशत से अधिक नहीं होगी। इस योजना के तहत शिक्षक संकाय को तीन श्रेणियों में बांटा जाएगा। उनमें से पहली श्रेणी उद्योगों द्वारा पोषित ‘प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस’ की होगी जबकि दूसरी श्रेणी उच्च शिक्षण संस्थानों द्वारा अपने संसाधनों से पोषित पदों की होगी तथा तीसरी श्रेणी मानद आधार पर नियुक्ति की होगी। इसमें कहा गया है कि ऐसे पदों पर नियुक्ति नियत अवधि के लिए होगी। इनकी नियुक्ति विश्वविद्यालय या कालेजों के मंजूर पदों से इतर होगी। इससे मंजूर पदों की संख्या एवं नियमित शिक्षक संकाय की भर्ती प्रभावित नहीं होगी। यह योजना कार्यरत या सेवानिवृत्त शिक्षकों के लिये नहीं होगी।

इस श्रेणी के तहत नियुक्त लोगों को वेतन संस्थान एवं विशेषज्ञों के बीच साझा रुप से सहमत समेकित राशि के रुप में दिया जाएगा। शुरुआत में इन पदों पर एक वर्ष के लिए नियुक्ति की जाएगी तथा प्रारंभिक अवधि पूरा होने के बाद उच्च शिक्षण संस्थानों द्वारा मूल्यांकन करने के बाद अवधि को बढाने के बारे में निर्णय लिया जा सकता है। उच्च शिक्षण संस्थान मूल्यांकन एवं अवधि विस्तार के लिए अपनी प्रक्रिया तय कर सकते हैं। ऐसे पदों की सेवा अवधि तीन वर्षो से अधिक नहीं हो सकती और असाधारण परिस्थितियों में इसे एक वर्ष के लिये बढ़ाया जा सकता है।

सहारा न्यूज ब्यूरो
नई दिल्ली


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