सिर्फ दो सौ करोड़ खर्च कर प्रतिवर्ष पांच सौ करोड़ बचाने का तरीका खोजा रेलवे ने
पता नहीं यह बात रेलवे को अर्से से क्यों नहीं समझ में आयी कि सिर्फ दो सौ करोड़ रुपए खर्च करके प्रतिवर्ष पांच करोड़ रुपए बचाये जा सकते हैं। लेकिन देर से ही सही, रेलवे ने ट्रेनों की धुलाई और फिट करने के लिए अपने सिक/पिट लाइनों का विद्युतीकरण करने का बीड़ा उठाया।
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इसका नतीजा यह रहा कि सिक/पिट लाइनें फिट हो गयीं। इससे इन लाइनों पर बिजली उपलब्ध कराने के लिए जेनरेटर और अन्य उपकरणों को चलाने के लिए डीज़ल का उपयोग भी बंद हो गया। इससे डीज़ल पर होने वाला खर्च रूका और कार्बन उत्सर्जन से प्रदूषण भी शू्न्य पर पहुँच गया।
दरअसल रेलवे को अपने ट्रेनों को चलाने के लिए रोजाना उनकी धुलाई और तकनीकी रूप से फिट किया जाता है। इसके लिए सिक/पिट लाइनों में 750 वोल्ट की बिजली की जरूरत होती है। लेकिन बड़ी संख्या में सिक/पिट लाइनों में बिजली की जरूरत डीजल जेनरेटरों से पूरी की जाती थी।
जब व्यापक स्तर से इसका आकलन किया किया गया तो पता चला कि ऐसी 411 सिक/पिट लाइनों में डीज़ल पर प्रतिवर्ष 500 करोड़ रुपए से अधिक ख़्ार्च हो जाते हैं। यदि इन लाइनों का विद्युतीकरण कर दिया जाए तो पर्यावरण के बचाने के साथ-साथ प्रतिवर्ष पाँच करोड़ रुपए से अधिक की बचत की जा सकती है।
अंतत: रेल मंत्रालय ने वर्ष 2016 में यह निर्णय किया कि वर्ष 2018 से सौ प्रतिशत एलएचबी कोच का उत्पादन किया जाएगा। इन कोचों को मेंनटेन रखने के लिए 750 वोल्ट के बिजली जरूरत होगी।
इसी क्रम में देशभर 411 सिक/पिट/वाशिंग लाइनों का विद्युतीकरण का भी बीड़ा उठाया गया। इसके लिए रेलवे मंत्रालय ने 210 करोड़ रुपए की कार्ययोजना को मंजूरी दी।
परिणामस्वरूप आज एक वर्ष के उपरांत 411 पिट/सिक लाइनों में से 316 लाइनों का काम पूरा हो गया है। शेष लाइनों का काम चल रहा है। अगले तीन महीने में यह कार्य भी पूरा हो जाएगा। इससे रेलवे को बड़ी उपलब्धि हासिल हुई है।
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