भू-राजनीतिऔर अर्थव्यवस्था
मौजूदा भू-राजनीतिक तनाव से रुपये या मुद्रास्फीति पर ‘काफी दबाव’ पड़ने के आसार नहीं है।
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ईरान-इस्रइली के बीच युद्ध शुरू होने के बाद से ही आशंका जताई जाने लगी थीं कि तेल एवं गैस की आपूर्ति डगमगाने से वैिक बाजार में तेल के दाम भड़क सकते हैं, जिससे भारत जैसे तमाम विकासशील देशों में महंगाई में उछाल आ सकता है।
लेकिन ग्लोबल रेटिंग एजेंसी एसएंडपी ने कहा है कि वैिक ऊर्जा कीमतें बीते साल के मुकाबले अभी भी कम हैं, जिससे भारत में चालू खाता निकासी और घरेलू ऊर्जा मूल्य पर दबाव सीमित रहेगा।
एसएंडपी के अर्थशास्री विश्रुत राणा का कहना है कि ऊर्जा की कीमतों में मामूली वृद्धि हो सकती है, लेकिन खाद्य कीमतों के बढ़ने मुद्रास्फीति पर अधिक प्रभाव पड़ेगा। भारत अपनी 85 प्रतिशत से ज्यादा कच्चे तेल की जरूरत और लगभग आधी प्राकृतिक गैस की आवश्यकता की पूर्ति आयात से करता है।
इसमें भी तेल का 40 प्रतिशत से ज्यादा और गैस का आधा आयात पश्चिम एशिया से किया जाता है। आयात पर इतनी ज्यादा निर्भरता से भू-राजनीतिक तनाव से चिंतित होना स्वाभाविक है। लेकिन एक नया अनुमान राहतकारी है।
अनुमान है कि 2025 में मुद्रास्फीति औसतन 4 प्रतिशत रहेगी जो 2024 में रही 4.6 प्रतिशत से कम है। इसी प्रकार अनुमान लगाया गया है कि 2025 के अंत तक रुपया 87.5 प्रति डॉलर कमजोर हो सकता है, जो 2024 के अंत तक 86.6 प्रति डॉलर था। मौजूदा भू-राजनीतिक तनाव के कारण वैिक वित्तीय बाजारों में जोखिम से बचने की प्रवृत्ति बढ़ने से रुपये में अस्थिरता आने की आशंका के मद्देनजर एसएंडपी के अनुमान पुरसुकून हैं।
बेशक, भारत वैिक अस्थिरता से अछूता नहीं रहेगा। तेल की ऊंची कीमतें भारत के चालू खाता निकासी बढ़ा सकती हैं, और भारतीय मुद्रा कमजोर हो सकती है। लेकिन अर्थव्यवस्था के बुनियादी कारक मजबूत होने तथा कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस के लिए वैकल्पिक रणनीति की तैयारी से भारत को ज्यादा असर नहीं झेलने पड़ेंगे। इस बीच, सोना टूटा है, और चांदी कमजोर हुई है। शेयर बाजार भी उत्साहजनक हैं।
दरअसल, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के पूर्ण युद्ध विराम की घोषणा के बाद बाजारों में नई उम्मीद जगी है। अफरा-तफरी मचने की स्थितियां कमजोर पड़ना तमाम अर्थव्यवस्थाओं के लिए राहत की बात है।
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