दिल्ली सरकार को अदालत की फटकार
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने RRTS -रीजनल रैपिड ट्रांजिट सिस्टम-प्रोजेक्ट के निर्माण के लिए धन देने में असमर्थता जताने को लेकर दिल्ली सरकार को सोमवार को फटकार लगाई और उसे पिछले तीन वित्तीय वर्षो में विज्ञापनों पर खर्च किए धन का ब्योरा देने का निर्देश दिया।
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दिल्ली सरकार को यह धनराशि आरआरटीएस खंड के निर्माण के लिए देनी है, जो राष्ट्रीय राजधानी को राजस्थान और हरियाणा से जोड़ेगा। जस्टिस एसके कौल और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ ने ‘AAP’ सरकार को दो हफ्तों के भीतर विज्ञापन पर खर्च का ब्योरा देते हुए हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया। दिल्ली सरकार के वकील ने पीठ को बताया था कि दिसम्बर, 2020 में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र परिवहन निगम-एनसीआरटीसी-से दिल्ली सरकार ने धन मुहैया कराने में कोविड के कारण स्थिति खराब होने के चलते असमर्थता जताई थी।
उसके बाद केंद्र से दिल्ली सरकार को मिलने वाला जीएसटी मुआवजा भी पिछले वित्तीय वर्ष से रोक दिया गया है, इसलिए आप सरकार के लिए प्रोजेक्ट के लिए धन मुहैया कराना मुश्किल हो गया है। यह महत्त्वाकांक्षी ‘कॉमन प्रोजेक्ट’ है, जिसकी जन-उपादेयता है। दरअसल, यह महत्त्वाकांक्षी परियोजना टाइम रनआउट का शिकार हो रही है, इसलिए इस पर सालाना 1,500 करोड़ रुपये की लागत बढ़ रही है, और अभी तक इसकी लागत पांच हजार करोड़ रुपये बढ़ चुकी है।
ऐसे में दिल्ली सरकार द्वारा धन मुहैया कराने से पीछे हटना गैर-जिम्मेदाराना कृत्य है। दिल्ली सरकार को इस परियोजना में 1,180 करोड़ रुपये का योगदान करना है, लेकिन अभी तक उसने 865 करोड़ रुपये ही जारी किए हैं, वह भी अदालत के हस्तक्षेप के बाद पर्यावरण मुआवजा निधि से। जाहिर है कि जनोन्मुखी परियोजना को लेकर राजनीति की जा रही है, और कोशिश हो रही है कि धन मुहैया कराने से मुकर कर किसी तीसरे पक्ष को भी कठघरे में ले आया जाए।
बेशक, इस प्रकार का आचरण उचित नहीं कहा जा सकता। राजनीति करने के फेर में इस बात को अनदेखा किया जा रहा है कि इस परियोजना पर खर्च पूंजीगत परिव्यय है, जिससे आधारभूत संरचना का विकास होगा। हाल के वर्षो में सरकारें पूंजीगत परिव्यय के बरक्स लोकलुभावन मदों पर खर्च करने पर आमादा दिखाई दे रही हैं। छवि चमकाने के लिए विज्ञापन और प्रचार पर जमकर खर्च कर रही हैं, भले ही उनका बजट ही क्यों न गड़बड़ा जाए और वे जरूरी जिम्मेदारी तक न निभा पाएं।
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