विपक्ष की हठधर्मिता
अब स्थापित रूप से यह परंपरा बन गई है कि विपक्ष संसद को सुचारू तौर पर चलने नहीं देगा। मुद्दा चाहे जैसा भी हो, लेकिन विपक्ष उसे बहुत बड़ा बनाकर संसद को ठप करने का हथियार बना लेता है।
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संसद के पिछले कई सत्र इस बात के साक्षी रहे हैं। सोमवार को बजट सत्र की कार्यवाही का पांचवां दिन था, लेकिन राष्ट्रपति के अभिभाषण पर अभी चर्चा तक शुरू नहीं हो सकी है। इस बार विपक्ष ने अडानी समूह को मुद्दा बनाया है। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा की गई अडानी समूह से संबंधित रिपोर्ट पर संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) द्वारा या सर्वोच्च न्यायालय की निगरानी में जांच की मांग कर रहा है।
हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के बाद अडानी समूह की कंपनियों के शेयरों में जो तीव्र गिरावट हुई उसके पीछे विपक्ष कंपनी की धोखाधड़ी के तौर पर ले रहा है और इसमें सरकार की सहकारी भूमिका देख रहा है। विपक्ष की ओर से सरकार पर यह आरोप लगते रहे हैं कि अडानी समूह पर मोदी सरकार पहले भी विशेष कृपालु रही है। राहुल गांधी सरकार पर आरोप लगाते रहे हैं कि अडानी समूह को तरीकों से अनेक लाभ पहुंचाती रही है।
इस पूरे मामले में आश्चर्य की बात यह है कि कांग्रेस या अन्य विपक्षी पार्टियां अडानी समूह और मोदी सरकार के कथित अपवित्र गठबंधन को लेकर कभी भी कोई ठोस और प्रमाणिक आरोप लेकर नहीं आई। खेल विपक्षी दल ही नहीं, भारत के किसी भी हिस्से से अडानी समूह के विरुद्ध ऐसी कोई शिकायत भी दर्ज नहीं हुई जो मीडिया का ध्यान आकषिर्त करती और सरकार पर बाध्यकारी दबाव बनाती। लेकिन जैसे ही एक विदेशी कंपनी ने, जिसकी स्वंय अपने देश में कोई प्रतिष्ठा नहीं है, अडानी समूह पर कथित धांधलियों का आरोप लगाया तो विपक्ष को मनचाहा हथियार मिल गया।
इसे दुखद ही कहा जाएगा कि एक अविश्वसनीय कंपनी पर हमारे देश का समूचा विपक्ष अखंड विश्वास कर रहा है और उसे ध्रुव सत्य मानकर अडानी समूह के साथ-साथ सरकार को भी धांधलियों के आरोपों के घेरे में ले रहा है। इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि विपक्ष देश की सरकार, वित्त मंत्रालय, रिजर्व बैंक, एसबीआई और एलआईसी जैसी सुव्यवस्थित संस्थाओं को न तो प्रमाणिक मान रहा है और न इन संस्थाओं के प्रति भरोसा व्यक्त कर रहा है। बहरहाल, सरकार को विपक्ष की अडानी समूह की गतिविधियों पर जांच बिठाने की मांग को मान लेना चाहिए ताकि धुंध साफ हो सके और संसद की कार्यवाही सुचारू तौर पर चल सके।
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