एमसीडी को मेयर का इंतजार
दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) के महापौर, उपमहापौर और स्थायी समिति के सदस्यों का चुनाव तीसरी बार भी नहीं हो सका।
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आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के पाषर्दों ने इस बार भी हंगामा किया जिसके कारण चुनाव प्रक्रिया बाधित हो गई। पिछले कुछ वर्षो से राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के प्रशासन पर अपना राजनीतिक वर्चस्व स्थापित करने के लिए आप और भाजपा के बीच रस्साकशी चल रही है।
एमसीडी के महापौर और उपमहापौर के चुनाव को लेकर दोनों दलों के बीच जारी टकराव इसका एक नमूना है। इस अनावश्यक टकराव से दिल्ली के विकास कार्यों को गहरा धक्का लग रहा है। दिल्ली की आम जनता चाहती है कि दिल्ली की सरकार और केंद्र की सरकार के बीच सद्भावनापूर्ण रिश्ता कायम हो, जिससे राष्ट्रीय राजधानी का विकास बाधित न हो।
कांग्रेस की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को लोग आज भी याद करते हैं, जिनके कार्यकाल में दिल्ली का जितना विकास हुआ शायद उसके पहले और उसके बाद नहीं हुआ। इसकी एक बड़ी वजह यह भी रही कि शीला दीक्षित और तबके एनडीए के केंद्र सरकार के बीच सद्भावनापूर्ण रिश्ते थे। दिल्ली के मुख्यमंत्री और आप के संयोजक अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी ने आक्रामक राजनीतिक संस्कृति की शुरुआत की है, लेकिन राजनीति तो संभाव्य की भी कला है।
भाजपा और आप इन दोनों दलों के नेताओं एवं कार्यकर्ताओं को इस बात पर भी गंभीरता से विचार करने की जरूरत है कि भारत में शहरीकरण की प्रक्रिया तीव्र गति से आगे बढ़ रही है। शहरीकरण की तीव्र गति शहरी स्थानीय शासन के लिए चुनौती बनती जा रही है। अनुमान लगाया जा रहा है कि आने वाले दस वर्षो में 40 फीसद से अधिक भारतीय आबादी शहरों में निवास करेगी। जाहिर है शहरी स्थानीय निकायों की भूमिका और महत्त्वपूर्ण हो जाएगी।
भारत में शहरी स्थानीय निकाय जमीनी लोकतंत्र को पुख्ता बनाने में आधार बनाते हैं। वैश्विक स्तर पर भी विशेषकर उन देशों में जहां लोकशाही है वहां शहरी निकाय लोकतंत्र की जड़ें मजबूत करने का काम करते हैं।
इन तथ्यों के आलोक में कहा जा सकता है कि दिल्ली नगर निगम के चुनाव हुए दो महीने हो गए हैं, लेकिन अब तक शहरों को नया महापौर नहीं मिला है। अब यह मामला सर्वोच्च अदालत में पहुंच गया है। लेकिन महत्त्वपूर्ण सवाल यह भी है कि ऐसे मामलों में राजनीतिक दलों की जवाबदेही होती है या नहीं?
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