भूकंप से तबाही
प्राकृतिक आपदा में सबसे ज्यादा भयावह भूकंप को माना जाता है। सोमवार तड़के तुर्किये और सीरिया में जब लोग नींद के आगोश में थे तो प्रकृति ने अपना सबसे गुस्सैल रूप दिखाया।
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रिक्टर स्केल पर 7.8 तीव्रता के भूकंप ने इन दो देशों में काफी कुछ तहस-नहस कर दिया। अभी तक की जानकारी के मुताबिक करीब 5 हजार से ज्यादा लोग मारे गए हैं। हालांकि विश्व स्वास्थ्य संगठन का मानना है कि इस तबाही में करीब 20 हजार लोगों के मरने की आशंका है। तकलीफ की बात यह है कि पिछले 24 घंटे में भूकंप के 4 बड़े झटके आ चुके हैं। तुर्किये में इससे पहले 1939 में जबरदस्त तरीके से धरती कांपी थी, जिसमें 32,000 लोग मारे गए थे।
बहरहाल, वैसे तो भूकंप का पूर्वानुमान या उसके बारे में सटीक भविष्यवाणी करना अब तक संभव नहीं हो सका है मगर डच वैज्ञानिक फ्रैंक हूजरबीट्स ने 3 दिन पहले ही तुर्किये में भूकंप की भविष्यवाणी की थी। इसके वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल बताए जा रहे हैं। इससे इतर भारत ने मानवीयता का परिचय देते हुए तुर्किये को राहत सामग्री की पहली खेप भेज दी है। राहत की दूसरी खेप भी जल्द पीड़ित देश पहुंचने वाली है।
इस वक्त भारी मुसीबत में घिरे तुर्किये (दक्षिणी तुर्किये) और सीरिया (उत्तरी) के लिए राहत और उससे जुड़ी सामग्रियों को पहुंचाया जाना निहायत जरूरी है। यह जानते हुए कि तुर्किये ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत विरोधी रुख का परिचय दिया, भारत सरकार ने पीड़ितों को मदद मुहैया कराने में कंजूसी नहीं बरती। राष्ट्रीय आपदा प्राधिकरण (एनडीआरएफ) के 200 जवानों के अलावा, खोजी कुत्तों का दस्ता, दवा समेत मेडिकल टीम भी भारत की ओर से तुरंत भेजी गई है।
पर बड़ा सवाल यही कि भूकंप ने लगातार तुर्किये पर कहर क्यों बरपाया है? चूंकि तुर्किये प्रमुख भूकंपीय रेखाओं के ऊपर बसा हुआ है, इसलिए यहां भूकंप से ऐसी तबाही नई बात नहीं है। हां, तुर्किये में भयावहता को देखते हुए भारत को भी सचेत रहने की जरूरत है। हमें इमारतों की मजबूती, उसकी नींव, निर्माण कार्य के प्रति जागरूक रहना होगा। इस तथ्य से कोई इनकार नहीं कर सकता कि मनुष्यों ने प्रकृति के साथ दोस्ताना रवैया छोड़ दिया है।
पर्यावरण को लेकर जब तक हम चौकन्ना नहीं रहेंगे, तब तक प्रकृति का बदला कभी बाढ़ तो कभी भूकंप तो कभी भू स्खलन और भू-धंसाव के रूप में दिखता रहेगा। प्रकृति के प्रति संवेदना दिखाने से ही संकट कम हो सकता है।
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