सिफारिशें हों लागू
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पुलिस महानिदेशकों और महानिरीक्षकों के 57वें अखिला भारतीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए पुलिस बल को अधिक संवेदनशील बनाने के साथ प्रौद्योगिकियों से प्रशिक्षित करने का सुझाव दिया है।
सिफारिशें हों लागू |
भारत में पिछले तीन दशकों से ज्यादा समय से पुलिस तंत्र में व्यापक सुधारों को लेकर बहस चल रही है। हालांकि इन प्रयासों से कुछ सकारात्मक बदलाव अवश्य आए हैं, लेकिन वे पर्याप्त और संतोषजनक नहीं हैं। शायद यही वजह है कि प्रधानमंत्री मोदी ने इस ज्वलंत मुद्दे को रेखांकित करते हुए पुलिस प्रणाली में आवश्यक सुधार करने पर जोर दिया है। आमतौर पर पुलिसकर्मियों के विरुद्ध उनकी शक्तियों का दुरुपयोग करने से लेकर गैरकानूनी गिरफ्तारी, हिरासत में बलात्कार और हत्या करने की शिकायतें हैं। आए दिन समाचार पत्रों में हिरासत में हिंसा, बलात्कार और मौत की घटनाओं से संबंधित खबरें छपती रहती हैं।
इससे पता चलता है कि भारतीय पुलिस की कार्यशैली कितनी असभ्य, अशिष्ट और असंवेदनशील है। कानून के राज और विधि के शासन में अगर हिरासत में इस तरह की घटनाएं होती हैं तो यह किसी भी सभ्य समाज के माथे पर कलंक है। यह भी गौर करने वाली बात है कि पुलिसकर्मियों पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगाते रहते हैं। जाहिर है कि पुलिस की कार्यप्रणाली में सुधार के लिए एक ऐसी निरीक्षण प्रणाली का विकास किया जाना चाहिए जिससे पुलिसकर्मियों की जवाबदेही सुनिश्चित की जा सके।
पुलिस के सामने अपराधों को जल्द-से-जल्द सुलझाने और अपराधी को पकड़ने की चुनौती होती है। इसके लिए बुनियादी ढांचे का आधुनिकीकरण करने की दिशा में पहल करनी होगी। प्रधानमंत्री ने राज्य पुलिस और केंद्रीय एजेंसियों के बीच तालमेल बढ़ाने का सुझाव दिया है। अगर इस सुझाव का क्रियान्वयन किया जाए तो निश्चित रूप से राज्यों की पुलिस और केंद्रीय पुलिस बलों दोनों की कार्यक्षमता बढ़ेगी। पुलिस विभाग में सुधार लाने के लिए अनेक समितियों का गठन हुआ है।
अनेक आयोग बने हैं। लेकिन दुर्भाग्य है कि उनकी सिफारिशों को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। कहा जा सकता है कि पुलिस सत्ता-प्रतिष्ठान और राजनीतिक ढांचे में यह इच्छाशक्ति नहीं है कि पुलिस तंत्र में चले आ रहे यथास्थितिवाद में बुनियादी बदलाव ला सके। अगर पुलिस तंत्र संवेदनशील और आधुनिक बनाना है तो समितियों और आयोगों की सिफारिशों को लागू करना होगा।
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