यौनकर्म गुनाह नहीं
सर्वोच्च न्यायालय का सेक्स वर्कर्स को लेकर दिया गया हाल ही का आदेश दूरगामी परिणामों वाला है।
यौनकर्म गुनाह नहीं |
वेश्यावृत्ति पर अपने आदेश में अदालत ने कहा है कि सेक्स वर्कर्स को भी सम्मान से जीने का अधिकार है और पुलिस को बेवजह उन्हें परेशान नहीं करना चाहिए। देश के प्रत्येक व्यक्ति को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत सम्मानजनक जीवन का अधिकार है। यौनकर्मी भी कानून के तहत समान सुरक्षा की हकदार हैं। यह आदेश देकर सुप्रीम कोर्ट ने वेश्यावृत्ति को ‘पेशे’ के रूप में भी मान्यता दे दी है। लाखों लोगों के जीवन को प्रभावित करने वाला यह एक ऐतिहासिक फैसला है।
सुप्रीम कोर्ट से नियुक्त एक पैनल ने विभिन्न दिशा-निर्देशों की सिफारिश की है, जिनमें कहा गया है कि जब भी किसी वेश्यालय पर छापा मारा जाता है तो संबंधित यौनकर्मिंयों को गिरफ्तार या दंडित या परेशान नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि स्वैच्छिक यौन कार्य अवैध नहीं है और केवल वेश्यालय चलाना गैरकानूनी है। अदालत ने मीडिया को भी इस बारे में संवेदनशील रुख अपनाने को कहा है। छापे और रेस्क्यू के दौरान यौनकर्मिंयों की तस्वीरें प्रकाशित न करने की हिदायत दी गई है।
पुलिस बलों को यौनकर्मिंयों के साथ सम्मान से पेश आने और शोषण न करने की बात कही गई है। अदालत ने ये निर्देश संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत शक्ति का इस्तेमाल करते हुए़ जारी किए हैं। ये निर्देश तब तक लागू रहेंगे जब तक केंद्र सरकार कानून लेकर नहीं आती है। यही नहीं यौनकर्मियों के बच्चों को लेकर भी अदालत ने संवेदनशील रुख अपनाते हुए ऐसे बच्चों को भी मानवीय गरिमा और सम्मान की बुनियादी सुरक्षा मिलने की बात कही। अदालत के अनुसार अगर कोई सेक्स वर्कर अपना बच्चा होने का दावा करती है, तो यह पुष्टि करने के लिए परीक्षण किया जा सकता है।
कहा जा सकता है कि यह आदेश बेहद दूरगामी असर रखने वाला है। एक अध्ययन के मुताबिक भारत में 11 सौ के करीब रेड लाइट एरिया हैं, और 28 लाख महिलाएं सेक्स वर्कर के तौर पर काम करती हैं। ये भूख, गरीबी, बहलाने या फुसलाए जाने या अवैध व्यापार के कारण यह काम करने को मजबूर हैं। उन पर माफिया और पुलिस का गहरा शिंकजा रहता है। उनकी अरबों रुपए की अवैध कमाई का ये आसान जरिया हैं। यौन कर्म को मान्यता देने से पहले इस गठजोड़ को तोड़ना ज्यादा जरूरी है अन्यथा इन्हें भी अपने धंधे को वैध बताने का जरिया मिल जाएगा।
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