बाइडेन की कूटनीति
विदेश नीति के जानकार यह कयास लगा रहे हैं कि यूक्रेन संकट अमेरिका के लिए दलदल साबित हो सकता है।
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अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के बयान, व्यवहार और कूटनीति से ऐसा प्रतीत होता है कि रूस-यूक्रेन युद्ध अमेरिका के लिए वियतनाम की पुनरावृत्ति करा सकता है। रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध के बीच पहली बार भारत और अमेरिका के रिश्तों में मनमुटाव पैदा हुआ जब राष्ट्रपति बाइडेन ने कहा कि रूसी हमले के विरुद्ध समर्थन जुटाने में भारत का रवैया ढुलमुल रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन की यह कूटनीतिक भूल और नासमझी भी थी कि भारत किसी सैनिक गुट में शामिल होकर अपनी स्वतंत्र विदेश नीति और रणनीतिक स्वायत्तता का परित्याग कर सकता है।
वास्तव में क्वाड के स्वरूप को लेकर दुनिया में फैली अटकलबाजी पर कुछ सीमा तक उसी समय विराम गया था, जब अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया की सैन्य संगठन ऑक्स का निर्माण हुआ था। नये हालात में क्वाड का महत्त्व समान विचार वाले देशों के बीच गैर-सैन्य और गैर-रणनीतिक क्रियाकलापों पर केंद्रित होगा। रणनीतिक विश्लेषक ब्रह्म चेलानी ने भी बाइडेन के बयान की आलोचना करते हुए कहा है कि जब भारत की सीमा पर चीनी सैनिकों का जमावड़ा हुआ था और नई दिल्ली को चीनी सैनिकों के हमलों की आशंका थी, तब बाइडेन ने अपने मुंह पर ताला लगा रखा था। जाहिर है अमेरिकी प्रशासन को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने डैमेज कंट्रोल की कोशिशें तेज कर दी। अमेरिका के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नेड प्राइस ने कहा है कि भारत मुक्त एवं खुले हिंद-प्रशांत के संयुक्त दृष्टिकोण का अहम साझेदार है।
इन्होंने स्वीकार किया कि भारत ने रूस के साथ रक्षा साझेदारी इसलिए बढ़ाई क्योंकि तब अमेरिका इसके लिए तैयार नहीं था। अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन अब रूस के विरुद्ध लामबंदी तेज करने के लिए ब्रसेल्स पहुंच गए हैं। इसके बाद पोलैंड जाएंगे। बाइडेन पोलैंड के राष्ट्रपति आंद्रेजेज डूडा के साथ यूक्रेन संकट पर चर्चा करेंगे। यूक्रेन संकट पर भारत के ढुलमुल रवैये की आलोचना करने के बाद ब्रसेल्स और पोलैंड की यात्रा करने के बाद बाइडेन आक्रामक कूटनीति का प्रदर्शन कर रहे हैं। बाइडेन की इस कूटनीति का उद्देश्य यूक्रेन संकट का समाधान करना और साथ ही रूस को आगे बढ़ने से रोकना है।
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